
आपका कश्फ़-ओ-करामात- हज़रत सैय्यद जलाल अशरफ़ रहमतउल्लाह अलैह की कश्फ़.ओ.करामात हद्दे शुमार से बाहर हैं जिसे इस अदना किताब में दर्ज करना तवालत का बाइस होगा चुनाँचे यहाँ हम उन्हीं करामातों का ज़िक्र कर रहें हैं जो आपके मुताल्लिक़ मशहूर और मारूफ़ है!
11) इलेक्शन दोनों बराबर हो गयें– जनाब निसार अहमद साहब मौज़ा नियावां ज़िला सुल्तानपुर ने बयान किया की सन १९६१ ईस्वीं में हम और हाजी रियासत अली साहब परधानी के लिए खड़े हुए थे! हाजी रियासत साहब ने हज़रत से दुआ की दरख्वास्त की हज़रत ने फ़रमाया जाओ कामियाब हो जाओगे! उधर मैंने भी अपने हक़ में दुआ करवाया हज़रत ने मेरे लिए भी कामियाबी की दुआ फ़रमाई! चुनांचे जब इलेक्शन हुआ और वोट शुमार किये जाने लगें तो हाजी रियासत साहब की कामियाबी के आसार ज़ाहिर होने लगें और | उनका पल्ला भारी दिखाई देने लगा यहाँ तक कि लोगों में शोर होने लगा की हाजी रियासत साहब जीत गये लेकिन दोनों की गिनती के बाद सिर्फ एक वोट से मेरी कामियाबी का ऐलान हुआ! निसार अहमद साहब का बयान है की दर हक़ीक़त हम दोनों ही बराबर थे और १४७ वोट मुझे और १४७ वोट हाजी रियासत साहब को मिले थे लेकिन मैंने कुछ दे दिलाकर एक वोट का अपनी तरफ इज़ाफ़ा करवा लिया था! हाजी रियासत साहब ने सुल्तानपुर मेरे ख़िलाफ़ (petition) अर्जी दायर किया और मेरे कामियाबी को चैलेंज किया! बिल आख़िर वहां से फैसला हुआ की दोबारा इलेक्शन किया जाए तो मैंने इलाहबाद हाई कोर्ट में उस फैसले के ख़िलाफ़ अपील किया वहां से भी यही फैसला बहाल रहा!
(12) इंटरव्यू में फेल ले लिया गया- जनाब शमशाद अहमद साहब मुन्सिफ़ सद्र आज़मगढ़ साकिन प्रतापगढ़ सिटी
बयानकरते थे की मैं मुन्सिफ़ के इम्तेहान में बैठा था! उस दरमियान उर्स चल रहा था तो मैं उर्स में शामिल हुआ और हज़रत से दुआ का ख्वास्तगार हुआ! सुबह जब मैं जाने लगा तो मेराज मियां के हमराह हज़रत से मुलाक़ात को गया! हज़रत उस वक़्त इस्हाक़ ज़र्राह के घर में आरामफ़रमा थे! उस वक़्त सुबह के चार बजे थें! मैंने हज़रत से मुलाक़ात किया और दुआ की दरख्वास्त की! हज़रत उस वक़्त मूड में थें थोड़ी देर ख़ामोश रहें फिर फ़रमाया जाओ इम्तेहान में पास हो जाओगे! मैं हज़रत की दस्तबोसी के बाद मकान चला आया और इम्तेहान में पास हो गया लेकिन इंटरव्यू में फेल हो गया! मैंने अपने में दिल में सोचा कि हज़रत ने फ़रमाया था की मुन्सिफ़ हो जाऊंगा और इंटरव्यू में फेल हो गया हूँ अब देखो क्या होता है। लेकिन मुझे यक़ीन कामिल था की मैं ज़रूर ले लिया जाऊंगा वरना हज़रत हरगिज़ ना फरमातें चुनांचे चंद ही दिन बाद बगैर किसी इंटरव्यू के ले लिया गया!
(13) दमे का मर्ज़ ख़त्म हो गया– मुहम्मद यूनुस मुसाफ़िर खाना बयान करते थे की विशम्भर दयाल श्रीवास्तव टीचर ए० एच० इण्टर कॉलेज मुसाफ़िर ख़ाना का मकान मक़बरह और बारहदरी के बिल्कुल क़रीब है! एक दिन उनके दरवाज़े पर एक बुढ़िया बैठी हुई थी मास्टर साहब अपने मकान से बाहर निकले तो उस बुढ़िया से खैर खैरियत पूछा तो उसने बताया की हमको दमे का मर्ज़ है ज़रा दम लेने के लिए बैठ गयी हूँ! मास्टर साहब ने उस बुढ़िया से पूछा कि दवा नहीं करती हो क्या? उसने जवाब दिया बहुत दवा किया लेकिन कुछ आराम नहीं मिला! मास्टर साहब ने कहा एक दवा हमारे कहने से कर लो शायद आराम मिल जाये! बुढ़िया ने पूछा वो कौन सी दवा है मास्टर साहब ने कह्म बाबा जलाल अशरफ की बारह दरी बन रही है उसकी मट्टी लेकर जाओ और थोड़ी थोड़ी खाया करो! बुढ़िया उस जगह गयीं और थोड़ी मट्टी वहां से ले लिया और अपने घर चली गयी उस वाक्रेआ के तीसरे दिन मेरी मास्टर साहब से मुलाक़ात हुई इत्तेफ़ाक़ से वह बुढ़िया भी दूर से आते दिखाई दी जब बुढ़िया करीब आ गयी तो मास्टर साहब ने उस से पूछा की तुम्हारी तबियत कैसी है? तो उसने कहा मुझे ऐसा महसूस होता है जैसे मुझे कभी मर्ज़ था ही नहीं और बाबा की वलायत का इक़रार करने लगी!
(14) इरादतमंद को पोस्टमैन की जगह दिला दी– मुबीन अहमद ख़ान मौज़ा छटई के पुरवा हज़रत के इरादतमंदों में शामिल थे। बयान करते थे की डाकखाना लाल के पुरवा में पोस्टमैन की जगह के ख़ाली थी! उस जगह के लिए बहुत से लोग कोशिश में लगे हुए थे और लम्बी रिशवत देने को तैयार थे। मैंने भी अल्लाह का नाम लेकर उस जगह की दरख्वास्त दे दी! उसी दरमियान हज़रत छटई के पुरवा तशरीफ़ लाएं! मैं हज़रत के ख़िदमत में गया और अर्ज़ किया की मैंने पोस्टमैन के लिये दरख्वास्त दी है लेकिन मेरे लिये जाने की कोई उम्मीद नहीं इसलिए की बहुत से लोग उस जगह के लिए कोशिश कर रहे हैं और रिशवत भी देने को तैयार हैं मेरे लिए दुआ फ़रमाइये हज़रत ने फ़ौरन एक तावीज़ लिख कर मुझे दिया और फ़रमाया कि मैं तुमको पोस्टमैन बनाता हूँ! मुबीन अहमद फ़रमाते हैं कि लोग हज़ार मुझसे कहते रहें की तुम नहीं लिए जाओगे लेकिन मुझे यक़ीन कामिल था की हज़रत की बात टल नहीं सकती मैं ज़रूर ले लिया जाऊंगा चुनांचे ऐसा ही हुआ मैं ले लिया गया! हज़रत की दुआ से पोस्टमैन बन गया!
(15) चक्की का पुक पुक करके बंद हो जाना– अब्दुल यार ख़ान छटई के पुरवा बयान करते हैं की यार मुहम्मद और इमाम रज़ा ने छटई के पुरवा के पूरब जानिब एक चक्की लगवाई थी! इमाम रज़ा की वालिदा हज़रत के पास आईं और हज़रत से पूछने लगीं की चक्की चलेगी की नहीं! हज़रत ने फ़रमाया ‘पुक पुक कर के बंद हो जाएगी ने बिल आख़िर यही हुआ हज़ार कोशिशों के बाद भी जब चक्की चलती तो पुक पुक कर के बंद हो जाती थी! वही चक्की जब दूसरे जगह लगाई गयी तो चलने लगी!