
आपका एख़लाक़ और आदात– आप ज़्यादा तर ख़ामोश रहते और टहलते रहते या दौड़ लगाते रहते थे और दहन मुबारक से ज़ी-ज़ी की आवाज़ निकालते रहते और कभी हाथों से इशारा भी फ़रमाते थे! आपकी गुफ्तगू सुनने के लिए कान लगाना पड़ता था और गुफ्तगू करते वक़्त ऐसा महसूस होता कि किसी छोटे बच्चे से गुफ्तगू कर रहें है! हर किसी से गुफ्तगू भी नहीं फ़रमाते थे! बस जिससे बे तकल्लुफ़ हो जाते और जो आपकी ख़िदमत करता सिर्फ़ उसी से आहिस्ता आवाज़ में गुफ्तगू फ़रमाते थें! औरतों और ज़्यादा भीड़ से बहुत घबराते थें अलबत्ता जो औरतें आपकी ख़िदमत में लगी रहती थीं और जो बेतकल्लुफ़ हो जाती थीं उनसे भी गुफ्तुगू फ़रमाया करते थे। बच्चों को बहुत ज़्यादा प्यार करते थे और उनसे गुफ्तगू भी खूब मज़े से करते और उन्हें अपने पास से हटाते नहीं थें! आप अक्सर बच्चों के तरह रूठ जाते थे लोग अक्सर जानवरों और हाथी का तजकिरह कर के बहला फुसला कर गुफ्तगू करते थे! जिस वक़्त ख़फ़ा हो जाते लोग बिलकुल ख़ामोश रहते! आप लोगों से भैया कह कर मुख़ातिब होते और किसी ज़रुरत या तकलीफ़ के वक़्त भी भैया आपकी जुबान मुबारक से सरज़द होता था! आप जब तन्हाई में होते तो पद्मावत या हंसजवाहर के अशआर आहिस्ता आहिस्ता गुनगुनाते रहते थें! जिसको याद फ़रमाते उसका पूरा नाम लेते कभी किसी का आधा अधूरा नाम न लेते और ना ही कभी किसी का नाम बिगाड़ कर लेते थे! जानवरों की तस्वीर बहुत | पसंद फ़रमाते थे कभी किसी जानवर की तस्वीर को हाथ लगाते तो फ़ौरन हाथ पीछे कर लेतें और ये कहते कि भैया काट लेगा! हाथी की सवारी बहुत पसंद थी! मिठाइयों में खोए की मिठाई पसंद फरमाते थें! गोश्त आपकी पसंदीदा ग़िज़ा थी आप फ़रमाते थे कि शेर जंगल का बादशाह है उसकी ग़िज़ा गोश्त है और मै अल्लाह का शेर हूँ इस लिए मुझे भी गोश्त पसंद है! अमीरों के कोठियों से ज़्यादा ग़रीबो के झोपड़े को पसंद फ़रमाते थें! आपको जो भी रूखा सूखा मयस्सर होता खा लेते थें कभी चीनी और बाजरे की रोटी की फ़रमाइश करते और खूब शौक से खाते थें। बीड़ी कसरत के साथ नोश फ़रमाते थें! आप का जब जहाँ जी चाहता पहुँच जाते थे! कोई नज़र पेश करता तो उसे अपने ख़ादिम को दे देते थे! जिसके यहाँ क़याम होता उसको बहुत मानते थे और चाहते थे कि वह एक लम्हे के लिए भी आँखों से ओझल न हो! बहुत सारा रुपय देख कर खुश हो जाते और फ़रमाते भैया बहुत ज़्यादा रूपया है और गिनती इस तरह करते एक, दो, तीन, पाँच, सात, नौ, ग्यारह, तेरह, चौदह, सोलह अपनी आखरी उम्र तक बीस तक गिनती नही गिन पायें! आपने सतरह साल की उम्र में घर छोड़ दिया! हमेशा आलमे मुसाफ़ेरत और सैरो सैयाहत में रहें लेकिन जब भी घर पर कोई मुसीबत आ जाती या कोई हादसा हो जाता तो हज़रत अज़ ख़ुद बगैर किसी इत्तेला के घर पहुँच जाते थे!
आपके जज़्ब में इज़ाफ़ा- आपकी उम्र मुबारक जैसे जैसे बढ़ती जाती थी आपके जज़्ब में वैसे वैसे इज़ाफ़ा होता था! अब आप ख़िलवतनशीनी इख़्तेयार करने लगे और ख़ामोशी पसंद करने लगें! अक्सर आलमे जज़्ब में उठकर टहलने लगते और वीरानों और क़ब्रस्तानों में चले जाते और दौड़ लगाते और दहन मुबारक से जी.जी की आवाज़े निकालते!
आपका सिलसिला बैअतो ख़लाफत–आपका सिलसिला चिश्तिया निज़ामिया अशरफिया है! सिलसिलाए क़ादरिया से भी इजाज़त व ख़लाफत हासिल थी!
आपकी जानशीनी का वाक़ेया– एक साल आप बार बार फ़रमाते रहें की इस साल मैं गद्दी पर बैलूंगा और जायस के मकान के | लिए फ़रमाते.थें कि ये अब सूना हो जायेगा! उसी साल आपके वालिद मोहतरम १६ जून सन १९५८ ईस्वी बमुकाम जायस लू लगने की वजह से वफ़ात पा गये! और आपने मसनदे सज्जादगी को आरास्ता किया!