
आपकी तालीमों तरबियत- आप कुछ बड़े हुएं तो वालिद साहब ने करीमनपुर के एक मदरसे में पढ़ने के लिए बैठाया और पढ़ाने की बहुत कोशिश किया लेकिन तालीम के तरफ आपका रुझान नहीं हुआ हज़ार कोशिशों के बावजूद आप पढ़ लिख नहीं सकें! करीमनपुर के रहने वाले नबी बख़्श साहब जो आपके वालिद के मुरीद और मुत्तक़ी परहेज़गार आदमी थें जिन्हें पद्मावत और हंसजवाहर मुँह ज़बानी याद थी! हज़रत इन्हीं के साथ मस्जिद में रहते और इनसे पद्मावत और हंसजवाहर के अशआर बड़ी शौक से सुनतें रहते थे जिसे सुनते सुनते अक्सर अशआर आपको भी याद हो गए थें।
जायस में सुकूनत- आपकी वालिदा मोहतरमा के विसाल के
आपके वालिद मोहतरम ने दूसरा निकाह किया और जायस में मुस्तकिल तौर पर सुकूनत अख्तियार कर लिया! आपके वालिद मोहतरम आपके सभी भाई बहनों में आपको महबूब रखते थे! आपके वालिद जब भी मुरीदों में जाते आपको अपने हमराह ले जाते थें! घर के सभी लोग आपको चाहते और आपका एहतेराम करते थे! जायस की जिस गली कूचे से आप गुज़रते थे लोग आपसे दुआ करवातें थें बच्चों और मरीज़ों को फुकवाते थे! आप मुहम्मद इस्हाक़ जर्राह मोहल्ला शैख़ाना वहाबगंज बाज़ार के यहाँ अक्सर तशरीफ़ ले जाते थे और उनकी बीवी हज़रत की बड़ी ख़िदमत करती थीं! हज़रत उस घर से बहुत मानूस थे और उन्हें खूब नवाज़ा भी!
आपका हुलिया मुबारक– आपका क़द दरमियाना, बदन भरा हुआ, रंग सांवला, चेहरा भोला भाला मासूमाना रौनक दार, दाढ़ी घनी पुरनूर थी! आपकी आवाज़ मासूमाना पस्त और मुलायम थी! आप हमेशा अरबी पैजामा और लम्बा कुरता और दो पल्ली टोपी ज़ेबतन फ़रमाते थे!
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