Bad az Shahdat Imam e Hussain Alaihissalam ki karamat

हज़रत जैद इब्ने अरकम रजियल्लाहु तआला अन्हु जो एक सहाबी हैं फ़रमाते हैं कि जब कूफ़ी हज़रत इमाम के सर मुबारक को गली कूचे में फिरा ऱहे थे ! तो में अपने घर की खिडकी में बैठा था ! जब सरे अनवर मेरे करीब आया तो मैंने सरे अनवर को यह आयत पढ़ते हुए सुना :

तर्जमा: क्या तुम्हें मालूम हुआ ! कि पहाड की खोह और जंगल के किनारे वाले ! हमारी एक अजीब निशानी थे ?

मेरे बदन के रौंगटे खडे हो गये ! और मैंने अर्ज किया: ऐ इब्ने रसूलुल्लाह ! बखुदा आपका किस्सा इससे ज्यादा तअज्जुब खेज है !

फिर जब इब्ने ज्याद के पास लाकर नेजों से सर उतारे गये तो हज़रत इमाम के लबे मुबारक हिल रहे थे ! लोगों ने कान लगाकर सुना तो यह आयत तिलावत फरमा रहे थे: ‘

तर्जमा : तुम अल्लाह को उससे गाफिल न समझो ! जो जुल्म करते हैं !

(तजकिरा सफा 68 )

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