,ना कभी तारीख देखी ना कभी दीन को समझा, भेड बकरियों की तरह सिर्फ जिसनें जो बताया उसी को समझा, कीसी एक फतवे की आड लेकर पुरी कौम पर रुआब झाडने निकल पडे है,आइये तारीख का आइना देखते है।*हिन्दुस्तान में।*हीजरी सन 80, इस्वि सन 699 में सबसे पहेले हजरत खालीद बिन वलीद जो सहाबी ए रसुल थे वो आये और बाद में यंहा से तशरीफ़ ले गये।आप के बाद ताबेइन हजरत बदीउद्दीन कुत्बुल मदार, मदारुल आलमीन (रदी) हीजरी 292, इ.स. 895 में आये जो हलब शहर जिसे हम आज अलेप्पु (सीरीया) कहते हे
वो गुजरात के खंभात के किनारे पर ठहरे और वंहा पर अपना चिल्ला कीया और इस्लाम की तबलीग शुरू की जंहा आपने मौला हुसैन (अ.स.) की याद मे डंका बजाया,अलम बनवाये,एक छोटी सी ताजिया बनवायी और इसी तरह से यादे हुसैन मनाना शरु कीया।यह ताजियादारी की शरुआत थी।जिसके बाद सुल्तान महमूद गजनवी सोमनाथ पर ने हमला किया और जीत जाने पर आपके खास सिपहसालार सैयद सालार साहू से अपनी बहन का निकाह किया और उनसे हजरत सैयद मसुद सालार गाजी का जन्म हुआ जो 10 फरवरी 1014 में बताया जाता है, आप अपने वालिद के ही नक्शेकदम पर चलते हुए 4 अक्तूबर 1032 मे जामे शहादत पा गये और जब तक हुकूमत रही ताजियादारी करते रहे।जिसके बाद हुजूर सरकार गरीब नवाज (रदी) जिनका जन्म हीजरी 536 इ.स.1141 में हुआ और आप अपने पिरो मुर्शिद हजरत ख्वाज़ा उस्मान हारुनी का कुर्ब पाकर हिन्द आये और दावतें इस्लाम को पुरनुर किया,आपका विसाल हिजरी 636 इ.स. 1236 मे हुआ,आपने अपनी पूरी जिंदगी सिर्फ जिकरे हुसैन ही कीया और ताजियादारी की और आज भी जारी और सारी हे। आपकी रुबाइ पुरी दुनिया में मशहूर हे।*शाह अस्त हुसैन, बादशाह अस्त हुसैन*
*दीन अस्त हुसैन, दीने-पनाह हुसैन*
*सरदाद न दाद दस्त, दर दस्ते-यज़ीद*
*हक़्क़ा के बिना, लाइलाह अस्त हुसैन.*आइये अब चलते हे तारीख के अगले पडाव पर।तैमूर लंग जो चंगीजखान का वंशज थे वो हिन्द को सिर्फ लुटने की वजह से तारीख 24 सितम्बर 1398 (हीजरी सन 7 रबीउस्सानी 801) में सिर्फ 15 दिन के लिये आए थे जंहा उस्ने दिल्ली में 7 दीन और रात कत्ले-आम की और बाकी के सात दिन वो बिमार हो गया जिसके कारण उसने हिंद छोड दिया और आगे की और चल पडा, और उन की मौत तारीख 17 फरवरी 1405 (16 शाबान 807 हीजरी) में हुइ।*कुछ लोग कहते हैं की ताजियादारी की शरुआत तैमूर ने की?*अब जवाब दो की जब तैमूर हिंद मे आया तब रबीउस्सानी का महीना चल रहा था! तो क्या उसने बिना मुहर्रम के ताजिये बनाये? और वो सिर्फ 15 रोज रुका था तो एसा कोनसा जादुई चिराग उसके पास था जिस्से उसने पुरे हिंद (भारत- पाकिस्तान- अफघानिस्तान और बांग्लादेश) में ताजियादारी शरु करवायी थी!!!और वह दौर जो था उस दौर में औलिया अल्लाह मौजुद थे, मान भी लो की उसने शरुआत की थी तो उस दौर के कीसी वली अल्लाह ने कयो इसे नही रोका?* तारीख उठाकर पढे की हिन्द में जित्ने भी औलिया अल्लाह आये तमाम ने ताजियादारी की है।*एक पल के लिए मान भी लेते हे की नाउझोबील्लाह ये सब लोग गलत थे।*उसी नस्ले तैमुर के बाबर की औलाद और हजरत आलमगीर बादशाह औरंगजेब (जन्म- 3 नवम्बर 1618 दाहोद, विसाल 3 मार्च 1707) जो शरीयत के बडे ही पाबंद थे जिन्होंने फतावा आलमगीरी लीखी है,और अपनी जिंदगी में सबसे ज्यादा हुकूमत हिंद पर की थी और इस्लाम का प्रचार और प्रसार कीया था, अब अगर ताजियादारी शरीयत के हिसाब से हराम और बिद्दत होती तो यह बादशाह सबसे पहेले इसे बंद करवा देते।*मगर नही की कयोंकि उन्हे ताजियादारी में कोई बुराइ नजर नही आयी जो आजकल के कुछ को आ रही हे!!*यंहा पर बताते चलूँ की हिन्दुस्तान में आये और बसे हुए हर सिलसिले के बुजुर्गों ने ताजियादारी की है,और उसे बढाया भी है।*लेकिन बरतानी हुकूमत के दौरान जब मुसलमानों से निबटने में हुकूमत को परेशानी होने लगी तब इन अंग्रेजों ने कीसी मौलवी से एक फतवा दिलवा दिया की ताजियादारी हराम है!!!और पुरी कौम जो एक होकर आशुराह के दौरान जिकरे हुसैन करती थी उसे दो खैमो में बाट दिया,और अंग्रेजो की यह चाल कामयाब हुइ कयोंकि जो हुजूम ताजियादारी मे उमड़ता था वो एक फतवे की बुनियाद पर तुटने लगा,और जो मुसलमान कभी कीसी से डरते नही थे वो लोग अंग्रेजी हुकूमत के गुलाम बन गये।और यही साजिश आज भी जारी हे,लेकिन बेवकूफी में कुछ मुसलमान ये समझने को तैयार नही की यह आशुराह का जुलुस और अखाड़े दर असल हमारी कौम की बहाददूरी ओर शुजाअत की निशानी है ,और ये हर हुकुमत पर भारी पड़ताहै,जिस वजह से हुकुमत ए बर्तानिया अपने कारिंदे छोडती हे और अंदरूनी खुराफात पैदा करवाती हे।आज भी जब माहे मुहर्रम आता हे तो यह लोग पैरवी करने नये नये खुराफात पैदा करते हे और भोले भाले इल्म से कोरे लोग इनके बहेकावे में आ जाते हे और हराम हलाल के चक्कर में अपना अहम फरीजा मोहब्बत और मवद्दते अहले बयत से महेरुम रहे जाते हे।किसी को यंहा ताजियादारी जबरन मनवाना नही लेकिन जो लोग अंग्रेजो और मौलवीयो की चाल में अबतक नही फंसे उन्हे नमाज और शरीयत की आड लेकर बरगलाना छोड देना चाहिए
।कोई नही मानते मत मानो लेकिन आप ही सच्चे और पक्के मुसलमान हो ये गुरुर भी दिमाग में से निकाल दो, कयोंकि इस्लाम किसी की बपोती नहीं हे,आप सुफीयां ए किराम को ना मानो,आप कीसी दरगाह को ना मानो ये किसी की अपनी सोच हो सकतीं हैं, लेकिन अपनी सोच कीसी पर मत थोपो,जो बुजुर्गाने दीन लोग ताजियादारी करते थे वो हम से कंही बेहतर थे,और जो लोग ओर खानकाहे कर रहे हे वो भी अकलमंद है,
किसी अहले बेत के चाहने वालो को ताने,तंज और मुखालिफत अपने तक महेदुद रखो।हमने तारीख का आइना दिखा दिया है।
पढो दुरूद
🌹सलल्लाहोअलैह वसल्लम यासीन🌹

