अज़ाबे इलाही से मुतअल्लिक़…..!अपना ही गोश्त खाने वाले लोग

❀अज़ाबे इलाही से मुतअल्लिक़…..!अपना ही गोश्त खाने वाले लोग

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👉मेराज की रात ज़मीनो अस्मान की सैर के दौरान प्यारे आक़ा ﷺ ने जहाँ मुतीअ व फरमा बरदार बन्दों पर होने वाले इनामाते इलाही का मुशाहदा फ़रमाया तो ना फरमानों को क़हरे इलाही में गिरफ्तार भी देखा, जो अपने गुनाहो की सज़ा में इन्तिहाई दर्दनाक अज़ाबो में मुब्तला थे।
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☆●गीबत के अज़ाब●☆
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☆अपना ही गोश्त खाने वाले लोग

♥हुज़ूर ﷺ का गुज़र कुछ ऐसे लोगों पर हुवा जिन पर कुछ अफ़राद मुक़र्रर थे, इनमे से बाज़ अफ़राद ने उन लोगों के जबड़े खोल रखे थे और बाज़ दूसरे अफ़राद उनका गोश्त काटते और खून के साथ ही उनके मुह में धकेल देते। जिब्राइल ने कहा: ये लोगों की गिबतें और उन की ऐबजोइ करने वाले है।

☆सीने से लटके हुवे लोग…!

♥आक़ा ﷺ का कुछ ऐसी औरतों और मर्दों के पास से गुज़रे जो अपनी छातियों के साथ लटक रहे थे। जिब्राइल ने कहा: ये मुह पर ऐब लगाने वाले और पीठ पीछे बुराई करने वाले है और इनके मुतअल्लिक़ अल्लाह इर्शाद फ़रमाता है: खराबी है उसके लिये जो लोगों के मोहन पर ऐब करे, पीठ पीछे बदी करे।
📚(फ़ैज़ाने मेराज 82 )

♥रसूले अकरम ﷺ का शाबानुल मुअज़्ज़म के बारे में फरमान है : शाबान मेरा__महीना है और रमज़ान__अल्लाह का महीना है।

☆•शाबान के 5 हरुफ़ की बहारे•☆
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●सुब्हान अल्लाह ! माहे शाबानुल मुअज़्ज़म की अज़्मतो पर कुर्बान ! इसकी फ़ज़ीलत के लिये इतना ही काफी है के हमारे आक़ा صلى الله عليه وسلم ने इसे ” मेरा महीना” फ़रमाया।
हज़रत गौषे आज़म رضي الله عنه लफ्ज़ “शाबान” के 5 हरुफ़ के मुतअल्लिक़ नकल फरमाते है :
★ शिन : से मुराद “शरफ” यानी बुज़ुर्गी
★ ऍन : से मुराद “उलुव्व्” यानि बुलंदी
★ बा : से मुराद “बीर” यानि एहसान व भलाई
★ अलिफ़ : से मुराद “उल्फ़त” और
★ नून : से मुराद “नूर” है
तो ये तमाम चीज़े अल्लाह तआला अपने बन्दों को इस महीने में अता फरमाता है, ये वो महीना है जिस में नेकियों के दरवाज़े खोल दिये जाते है, बरकतों का नुज़ूल होता है, खताए मिटा दी जाती है और गुनाहो का कफ़्फ़ारा अदा किया जाता है, और हुज़ूर ﷺ पर दुरुदे पाक की कसरत की जाती है और ये नबिय्ये मुख्तार صلى الله عليه وسلم पर दुरुद भेजने का महीना है।
📚(गुन्यातू-तालिबिन, जी.1 स.341)
📚(आक़ा का महीना, स. 2-3)

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