मिश्कत ए हक़्क़ानिया जीवनी वारिस पाक-40

मुहम्मद अली अजमेरी की शिष्यता की घटना –

मुंशी अब्दुल गनी खाँ साहब रईस पुरवा व गनी खाँ जिला – राय बरेली द्वारा लिखित हैं कि एक महोदय हुजूर हाजी साहब किबला (पूज्य) की सेवा में उपस्थित हुए और तत्काल शिष्य हो गये। मिलने-जुलने के उपरान्त ज्ञात हुआ। उनका नाम मुहम्मद अली था। उन्होंने अपनी शिष्यता की घटना इस प्रकार सुनाई। मेरा निवास स्थान मुहल्ला मदार दरवाजा अजमेर है। मैं पंजाब की अश्वारोही सेना का मुलाजिम था | मेरी सैनिक टुकड़ी कोहाट की ओर गई थी। संयोग से मैं अपनी टुकड़ी से बिछुड़ गया तथा दो दिन तक सिर मारता फिरा, तीसरे दिन एक पहाड़ी पर एक सन्त से भेंट हुई। उन्होंने भोजन करने के लिए एक वृक्ष की ओर संकेत कर कहा कि वहाँ से ले लो। उस स्थान पर भोजन मौजूद था। मैंने इच्छा भर खाया और पानी पिया फिर मैंने उनसे आग्रह किया कि मुझे अपनी पल्टन में पहुंचा दीजिए। उन्होंने आँखें बन्द करके चलने को कहा। अभी दस-बीस पग ही चला था कि जब आँखें खोला तो अपनी सैनिक टुकड़ी के साथ था। मैं सोचता था कि मैं ३ दिन अनुपस्थित था और कोई भी यह बात नहीं पूछता कि तुम कहाँ थे ? अन्त.. बात क्या है? मैंने स्वयं पूछा मैं तीन दिन अपनी टुकड़ी से अलग था मेरी जगह कौन कार्य कर रहा से था? लोगों ने कहा विचित्र प्रश्न है। तुम रोज़ मेरे साथ थे और अपना कार्य करते रहे। अनायास मेरा मन नौकरी से विरक्त हो गया और मैंने त्याग-पत्र दे दिया। कोहाट से प्रस्थान किया डेरा गाजीखान में आया और वहाँ से तीस कोस की दूरी पर
जाकर सैय्यद शाह सुलेमान साहब के मजार शरीफ पर पहुँचा और सोचा यहाँ के गद्दी नशीन का शिष्य हो जाऊं खा पीकर सो गया। उसी रात स्वप्न देखा कि समाधि भवन से वही पहाड़ी वाले महात्मा ने कहा, तुम अपने घर जाओ। यहाँ शिष्य बनना जरूरी नहीं है।’ मैं प्रात: अजमेर के लिये चल पड़ा। अजमेर पहुँचकर तीन दिन ध्यानमग्न ( मुराक़बा में) रहा। तीसरे दिन शुभ सूचना प्राप्त हुई कि अवध की ओर जाओ तुमको गुरू प्राप्त होंगे। मैं यह सोचकर घबरा गया कि अवध के किस-किस नगरों में जाऊं? इसी बीच ढ़ाई दिन के झोपड़े में एक महात्मा फकीर सादिक अली साहब रहते थे। उनसे मैंने ये सभी बातें बतायी । उन्होंने एक मन्त्र पढ़कर सोने को कहा। पुन: मैंने सपना देखा कि एक महात्मा आये और कहा तुम्हारे पीर का नाम हाजी वारिस अली शाह है, वह देवा शरीफ में निवास करते हैं। पैदल चले जाओ, देवा लखनऊ के निकट है, वहाँ मिलेंगे।

अब जो यहाँ आकर आपको देखता हूँ तो मेरे अचम्भे का कोई ओर छोर नहीं रहा। यही कल्याणकारी रूप पहाड़ी पर था और वही रूप शाह सुलेमान के समाधि स्थान पर था। यही हैं जिन्होंने अपना नाम और पता बताया था और स्वयं कहा था लखनऊ से पैदल चले जाओ, देवा शरीफ थोड़ी दूर हैं। वास्तविकता यह है कि सरकार ने हर स्थान और प्रत्येक अवसर पर मेरी सहायता किया था। भगवान को धन्यवाद है कि मैं पूर्ण विश्वास और पुष्टि के साथ शिष्य हुआ। चार दिन देवा में रह कर मुहम्मद अली साहब बिदा हो गये ।

मिसकीन शाह रह० के शिष्य होने की घटना

मिसकीन शाह भी हुजूर वारिस पाक के प्रतिष्ठित फकीरों में से हैं। आपकी जन्मभूमि कोट, जिला-फतेहपुर है। इलाहाबाद के आस-पास आपके अत्याधिक चेले पाये जाते हैं। पूज्य हाजी वारिस पाक से शिष्य होकर जिला बाँदा के राजापुर में नदी के किनारे निवास कर लिए थे। सैय्यद अली असगर साहब निवासी शाहपुर जिला-फतेहपुर लिखते हैं कि एक बार हमने मिसकीन शाह से उनके फकीर होने का कारण पूछा तो उन्होंने बताया अकस्मात मेरे मन में ये विचार उत्पन्न हुआ कि फकीरी और ईश्वर की खोज ही जीवन-पूँजी है और जन्म स्वार्थ होना है। अत: यह विचार यहाँ तक दृढ़ और बलिष्ट हुआ कि जंगल, ब्याबानों और पहाड़ों में बहुत दिनों तक घूमता रहा। एक बार पहाड़ी दर्रे में एक अतिवृद्ध फकीर से भेंट हुई। मुझे देखते ही वह संत क्रोधित हो देखने लगे किन्तु मैंने इसकी चिन्ता न कर प्रार्थना किया और कहा कि अब मैं आपके चरण न छोडूंगा। तब बड़ी देर के पश्चात् आपने (१२०)

कहा कि तुम अपना हक पूज्य हाजी वारिस अली शाह से पाओगे। मैंने उनसे पता ठिकाना पूछकर देवा शरीफ हाजिर हुआ। श्रीयुत् हाजी साहब ने मुझे देखते ही कहा ‘अपना हक लेने आ गये।’ मैंने सिर झुका लिया, फिर कुछ दिनों पश्चात् पूज्य हाजी साहब ने फकीरी नाम मिसकीन शाह रखा और फकीरी वस्त्र प्रदान कर कहा ‘हमने मिसकीन (दरिद्र) नहीं बनाया वरन् राजा बनाया है।’

डाक्टर इलाही बख्श के शिष्यता की घटना

श्रीमान् मौलवी हिसामुद्दीन अहमद साहब फजली रईस सरादा जिला मेरठ लिखते हैं कि इलाही बख्श साहब १८९२ में बाराबंकी में डाक्टर थे। उन्होंने अपने शिष्य होने की घटना जो मुझसे बताया वह इस प्रकार है । डाक्टर इलाही बख्श पूज्य साहब को एक शरीयत के विपरीत चलने वाले फकीर मानते थे। उनके भाई पूज्य हाजी साहब से शिष्य होना चाहते थे । डाक्टर के रोकने के पश्चात् भी उनके भाई शिष्य हो गये और देवा शरीफ से लौटते समय हाजी साहब ने एक कागज प्रदान किया जिस पर कुरान की आयत लिखी हुई थी। इस आयत में मृत्यु का वर्णन था डाक्टर का ब्यान है कि जब मेरे भाई की मृत्यु हो गई तो मुझे स्वयं हाजी साहब पर अकीदा (ईमान) हो गया ।

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