
मुफ्ती आज़म हिन्द और आले रसूल. जब हज़रत मुफ्ती आज़म मरजुल मौत में मुब्तिला थं, मुतक़दीन व मुरीदीन और ख़्वास आपकी ख़िदमत में मसरूफ थे। आपने अचानक आँखें खोली और फरमाया कि आप लोगों में मुझे सैयद की खुश्बू आ रही है। सैयद साहब ने हाँ से जवाब दिया तो आपने फ़रमाया आप हमारे मखदूम हैं, आप शाहजादे हैं। आपसे खिदमत लेना जाइज़ नहीं ।
” फिर आपने वसियत में फरमाया ! मेरा जनाजा किसी सैयद से पढ़वाना। जब लाखों अकीदत मंद हज़रत मुफ्ती आज़म हिंद का जनाजा पढ़ने के लिए हाज़िर हैं, हज़रत मौलाना अखतर रज़ा खान साहब नमाज़ जनाज़ा पढ़ाने के लिए कदम बढ़ा रहे हैं कि आवाज़ आई किछोछा मुक़द्दसा की अजीम शखसियत साहब सज्जादा हज़रत पीर सैयद मुख्तार अशरफ जीलानी दामत बरकातहुमुल आलिया तशरीफ ले आए हैं तो हज़रत सरकार कलाँ की इक्तिदा में लाखों सुन्नियों, बरेलियों, अशरिफयों, चिश्तियों, कादरियों, सहरवर्दियों अलगर्ज मुसलमानों ने नमाज़े जनाज़ा पढ़ने की सआदत हासिल की, जिनमें हज़ारहा मशाइख उज्ज़ाम, उलमा-ए-किराम शामिल हुए और खान्दाने सादाते अशरफिया की अज़मत व मंज़िलत पर अपनी अकीदत व मुहब्बत की मोहर लगा दी। ( इमाम अहमद रजा और अहतरामे सादात)
सादात किराम के बच्चों से रवैया
आला हज़रत ने एक सैयद साहब को मोहल्ले में आबाद कर लिया था। एक दिन उनका तीन चार साल का बच्चा खेलते-खेलते बच्चों के साथ दरवाज़े के सामने आया और तीन बार आया। आला हज़रत तीनों बार ताज़ीमन खड़े हो गए तो उनके मामू जाद भाई शाहिद यार खान साहब बहुत वजीहा और ऐसी प्यारी रोअब दाब वाली सूरत वाले थे बच्चे तो क्या बड़े भी उनको देख कर डर जाते थे। वह उठ कर दरवाज़े पर जा खड़े हुए तो सारे बच्चे उनको देख कर भाग गए। तो आला हज़रत ने रो रो कर फरमाया कि:ऐ भाई क्या आपने सैयद जादे साहब को दरवाज़े से हटा दिया हाए में क़यामत में हुजूरे अकरम के कदम मुबारक कैसे चूम सकूँगा ? (जहानें रज़ा, इमाम अहमद रज़ा और अहतरामे सादात)