
मुहिब्बाने एहले बैत का मुक़ाम मुझे शैख जैनुद्दीन अब्दुल रहमान खिलाल बग़दादी फरमाते हैं: के एक अमीर ने बताया कि जब मर्ज़े मौत (सुक्रात) में मुब्तिला हुआ तो एक दिन उस पर सख्त इज़तिराब तारी हुआ, मुंह सियाह हो गया और रंग बदल गया, जब इफाका हुआ तो लोगों से उसने सूरत बयान की, तो उसने कहा: मेरे पास अज़ाब के फरिश्ते आए इतने में रसूले अकरम तशरीफ़ लाए और फरमायाः ” उसे छोड़ दो क्योंकि यह मेरी औलाद से मुहब्बत रखता था और उनकी खिदमत करता था।” चुनान्चे वह (फरिश्ते) चले गए।” अगर आकिबत को आराम दह बनाना है तो सादाते किराम से मुहब्बत रखें, उनकी इज्ज़त एहतराम बजा लाऐं, एहतराम से इस तरह पेश आऐं जिस तरह सरदार से पेश आया जाता है । इर्द गिर्द माहोल का जाइज़ा लें, पड़ौस में एक नज़र डालें, सादाते किराम को ढूंढें और उनकी ज़रूरयात को पूरा करें और सरापा खादिम बन जाऐं यही तुम्हारी आखि़रत के लिए बेहतर है। (जैनुल बरकात).

इमाम मालिक के हाँ कुराबत रसूल का लिहाज़
(1) हज़रते इमाम मालिक को जब जाफर बिन सुलेमान ने कोड़े मारे जिसकी वजह से आप बेहोश हो गए थे और आपको बेहोशी की हालत में वहाँ से उठा कर लाया गया था जब आपको होश आया और लोग मिज़ाज पुर्सी के लिए आपकी ख़िदमत में आए तो आपने फरमाया कि मैंने अपने मारने वाले (यानी जाफर बिन सुलेमान) को माफ कर दिया, किसी ने पूछा हुज़ूर क्यों आप माफ फरमा रहे हैं? इस पर फरमाया कि मैं खौफ करता हूँ कि अगर मुझेमौत आ गई और उस वक्त नबी करीम से मुलाकात हुई तो मुझे शर्मिंदगी होगी कि मेरी मार के सबब से हुज़ूर के किसी काराबतदार को जहनम में डाला जाए। (शिफ़ा शरीफ़)
( 2 ) रिवायत में यह भी है कि मंसूर ने इमाम का बदला जाफर से लेने का इरादा किया तो इमाम ने फरमाया “खुदा की पनाह मांगता हूँ अल्लाह की क़सम उसके कोड़ों में से जो कोड़ा भी मेरे जिस्म से हटता था में उसी वक्त माफ कर देता था इसलिए कि उसकी रसूलुल्लाह से रिश्तेदारी है। (शिफा शरीफ जुज़ सानी स. 33 इलमिया बैरूत)

सादात का नसब का ताना न दो हदीस सहीह में है जैसा कि बहुत से एहले सुनन ने बयान किया है:
जब ( हुज़ूर पाक के चचा) अबु लहब (जिसके कुफ्र में पूरी सूरः नाज़िल हुई) की बेटी हिजरत करके मदीना तैयबा तशरीफ लाईं तो उन से कहा गया कि तुम्हारी हिजरत तुम्हें बेनियाज़ नहीं करेगी, तुम तो जहन्नम के ईंधन की बेटी हो। उन्होंने यह बात नबी अकरम से अर्ज़ की तो आप सख्त नाराज हुए और बरसरे मिंबर फरमायाः इन लोगों का क्या हाल है जो मुझे मेरे नसब और रिश्तेदारों
के बारे में अज़ियत देते हैं। खबरदार! जिसने मेरे नसब और रिश्तेदारों को अजियत दी हैं उसने मुझे अज़ियत दी और जिसने मुझे अज़ियत
दी उसने अल्लाह को अजियत दी। ” (बरकात आले रसूलुल्लाह
स. 257)