ख़लील व नमरूद का मुनाज़रह
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〽️हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने जब नमरूद को ख़ुदा परस्ती की दावत दी तो नमरूद और हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम में हस्बे जेल मुनाज़रह हुआ।
नमरूदः तुम्हारा रब कौन है? जिसकी पर परसतिश की तुम मुझे दअवत देते हो?
हज़रत ख़लील अलैहिस्सलामः मेरा रब वो है जो ज़िन्दा भी कर देता है और मार भी डालता है।
नमरूदः ये बात तो मेरे अन्दर भी मौजूद है, लो अभी देखो मैं तुझे ज़िन्दा भी करके दिखाता हूँ और मार कर भी। ये कहकर नमरूद ने दो शख़्सों को बुलाया। उनमें से एक शख़्स को क़त्ल कर दिया और एक को छोड़ दिया और कहने लगा, देख लो एक को मैंने मार डाला और एक को गिरफ्तार करके छोड़ दिया, गोया उसे ज़िन्दा कर दिया। नमरूद की ये अहमक़ाना बात देख कर हज़रत ख़लील अलैहिस्सलाम ने एक दूसरी मुनाज़राना गुफ़्तगू फ़रमाई और फ़रमाया-
ख़लील अलैहिस्सलाम: मेरा रब सूरज को मशरिक़ की तरफ़ से लाता है तुझ में अगर ताक़त है तो तू मग़रिब
की तरफ़ से लाकर दिखा। ये बात सुन कर नमरूद के होश उड़ गए और ला जवाब हो गया।
(क़ुरआन करीम, पारा-3, रूकू-3)
🌹सबक़ ~
झूटे दअवे का अंजाम ज़िल्लत व रूसवाई, और काफ़िर इन्तिहाई अहमक़ होता है।

