हज़रत ग़ौसे आज़म सय्यदना शैख़ मुहियुद्दीन अब्दुल क़ादिर जीलानी बग़दादी रहमतुल्लाह अलैह की नज़राने अक़ीदत अहलेबैत ए अतहार की बारगाह में*

*हज़रत ग़ौसे आज़म सय्यदना शैख़ मुहियुद्दीन अब्दुल क़ादिर जीलानी बग़दादी रहमतुल्लाह अलैह की नज़राने अक़ीदत अहलेबैत ए अतहार की बारगाह में* *आप फ़रमाते हैं* 👇👇👇👇👇 मैं हज़रत रसूले पाक (सल्लल्लाहो अलैहे वा आलेही वा सल्लम) और सादात का ग़ुलामे हल्क़ा बगोश हूँ ख़ुशा नसीब उनका मैं दोस्त हूँ जिनकी निशानियां निजात वाली हैं मेरे मुश्किल कामों में दोनों जहान में हमेशा हज़रत रसूले अकरम (सल्लल्लाहो अलैहे वा आलेही वा सल्लम) की रूहे पाक और उनकी औलाद काफ़ी है अगर मैं आले अबा (पंजतन पाक की औलाद) के बग़ैर कोई वसीला तलब करूँ तो मेरी हज़ारों हाजतों में से एक भी बर ना आये (पूरी ना हों) मेरा दिल हुज़ूर (सल्लल्लाहो अलैहे वा आलेही वा सल्लम) की मोहब्बत और उनकी आल की मोहब्बत से लबरेज़ है मेरी इस हालत की गवाही में तमाम हिकायतें हैं मैं आप (सल्लल्लाहो अलैहे वा आलेही वा सल्लम) के ख़ानदान (अहलेबैते अतहार) के ग़ुलामों का कमतर ग़ुलाम हूँ आपकी (हुज़ूर और हुज़ूर के अहलेबैत की) ग़ुलामी हमेशा मेरे लिए बाइस ए फ़ख़्र रही है

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