★__ इस बारे में एक रिवायत में है एक रात हजूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने यहूदियों के बड़े सरदार मालिक बिन सैफ से फरमाया -मैं तुम्हें उस जात की कसम देकर पूछता हूं कि जिसने मूसा अलैहिस्सलाम पर तौरात नाज़िल फरमाई, क्या तौरात में यह बात मौजूद है कि अल्लाह तआला मोटे ताज़े हबर यानी यहूदी राहिब से नफरत करता है क्योंकि तुम भी ऐसे ही मोटे ताजे हो , तुम वह माल खा खा कर मोटे हुए जो तुम्हें यहूदी ला ला कर देते हैं_,”
यह बात सुनकर मालिक बिन सैफ बिगड़ गया और बोल उठा- अल्लाह तआला ने किसी भी इंसान पर कोई चीज नहीं उतारी _,”
★_गोया इस तरह है उसने खुद हजरत मूसा अलैहिस्सलाम पर नाजिल होने वाली किताब तौरात का भी इंकार कर दिया और ऐसा सिर्फ झुंझलाहट की वजह से कहा, दूसरे यहूदी उस पर बिगड़े उन्होंने उससे कहा – यह हमने तुम्हारे बारे में क्या सुना है ? जवाब में उसने कहा- मुहम्मद ने मुझे गुस्सा दिला दिया था बस मैंने गुस्से में यह बात कही थी ।
यहूदियों ने उसकी इस बात को माफ ना किया और उसे सरदारी से हटा दिया उसकी जगह काब बिन अशरफ को सरदार मुकर्रर किया।
★_अब यहूदियों ने हुजूर अकरम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम को तंग करना शुरू कर दिया ऐसे सवालात पूछने की कोशिश करने लगे जिनके जवाबात उनके ख्याल में आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ना दे सकेंगे । मसलन एक रोज उन्होंने पूछा :- एे मोहम्मद (सल्लल्लाहो अलेही वसल्लम ) आप हमें बताएं रूह क्या चीज है? आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने इस सवाल के बारे में वही का इंतजार फरमाया, जब वही नाजिल हुई तो आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने इरशाद फरमाया :- रूह मेरे रब के हुक्म से बनी है_,”
यानी आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने कुरान ए करीम की यह आयत पढ़ी –
(तर्जुमा )..और यह लोग आपसे रूह के मुताल्लिक पूछते हैं ,आप फरमा कि रूह मेरे रब के हुक्म से बनी है _,” *(सूरह बनी इसराईल -८५)*
निराली शान का मालिक
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★फिर उन्होंने कयामत के बारे में पूछा कि कब आएगी ,आप सल्लल्लाहु अलेह वसल्लम ने जवाब में इरशाद फरमाया :- इसका इल्म मेरे रब के पास है.. उसके वक्त को अल्लाह के सिवा कोई और जाहिर नहीं करेगा _,” *(सूरह अल आराफ )*
इस तरह 2 यहूदी आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के पास आए और पूछा आप बताएं अल्लाह तआला ने मूसा अलैहिस्सलाम की क़ौम को किन बातों की ताकीद फरमाई थी , जवाब में आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने इरशाद फरमाया :- यह कि अल्लाह के साथ किसी को शरीक ना ठहरावो, बदकारी ना करो और हक के सिवा (यानी शरई कानून के सिवा ) किसी ऐसे शख्स की जान ना लो जिसको अल्लाह तआला ने तुम पर हराम किया है, चोरी मत करो , सहर और जादू टोना करके किसी को नुकसान ना पहुंचाओ, किसी बादशाह और हाकिम के पास किसी की चुगल खोरी ना करो, सूद का माल ना खाओ, घरों में बैठने वाली( पाक दामन) औरतों पर बोहतान ना बांधों और ऐ यहूदियों तुम पर खास तौर पर यह बात लाज़िम है कि हफ्ते के दिन किसी पर ज्यादती ना करो इसलिए कि यहूदियों का मुतबर्रक दिन है।
यह हिदायत सुनकर दोनों यहूदी बोले हम गवाही देते है कि आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम नबी हैं ।
इस पर आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने इरशाद फरमाया तब फिर तुम मुसलमान क्यों नहीं हो जाते?
उन्होंने जवाब दिया- हमें डर है हम अगर मुसलमान हो गए तो यहूदी हमें क़त्ल कर डालेंगे।
: ★_ दो यहूदी आलिम मुल्के शाम में रहते थे उन्हें अभी नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के ज़हूर की खबर नहीं हुई थी । दोनों एक मर्तबा मदीना मुनव्वरा आए मदीना मुनव्वरा को देखकर एक दूसरे से कहने लगे- यह शहर उस नबी के शहर से कितना मिलता-जुलता है जो आखरी ज़माने में ज़ाहिर होने वाले हैं_,” इसके कुछ देर के बाद उन्हें पता चला कि आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम का ज़हूर हो चुका है और आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम मक्का मुअज़्ज़मा से हिजरत करके इस शहरे मदीना में आ चुके हैं । यह खबर मिलने पर दोनों आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की खिदमत में हाज़िर हो गए। उन्होंने कहा -हम आपसे एक सवाल पूछना चाहते हैं अगर आपने जवाब दे दिया तो हम आप पर ईमान ले आएंगे ।
आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने इरशाद फरमाया- पूछो क्या पूछना चाहते हो
★_उन्होंने कहा हमें अल्लाह की किताब में से सबसे बड़ी गवाही और शहादत के मुताल्लिक बताएं, उनके सवाल पर सूरह आले इमरान की आयत 19 नाजि़ल हुई ,वो आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम ने उनके सामने तिलावत फरमाई :-
( तर्जुमा)_
अल्लाह ने इसकी गवाही दी है कि सिवाय उसकी जात के कोई माबूद होने के लायक़ नहीं और फरिश्तों ने भी और अहले इल्म ने भी गवाही दी है और वह इस शान के मालिक हैं की एतदाल के साथ इंतजाम को क़ायम रखने वाले हैं ,उनके सिवा कोई माबूद होने के लायक़ नहीं, वह जबरदस्त हैं, हिकमत वाले हैं, बिना शुबा दीने हक़ और मक़बूल अल्लाह तआला के नज़दीक सिर्फ इस्लाम है ।
★_यह आयत सुनकर दोनों यहूदी इस्लाम ले आए। इसी तरह यहूदियों के एक और बहुत बड़े आलिम थे उनका नाम हुसैन बिन सलाम था, यह हजरत यूसुफ अलैहिस्सलाम की औलाद में से थे ,इनका ताल्लुक क़बीला बनी क़ीनका से था । जिस रोज़ आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम हिजरत करके हजरत अबू अयूब अंसारी रजियल्लाहु अन्हु के घर में रिहाइश पज़ीर हुए, यह उसी रोज़ आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की खिदमत में हाजिर हो गए । जोंही इन्होंने आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम का चेहरा मुबारक देखा फौरन समझ गए कि यह चेहरा किसी झूठे का नहीं हो सकता। फिर जब इन्होंने आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम का कलाम सुना तो फौरन पुकार उठे :- मैं गवाही देता हूं कि आप सच्चे हैं और सच्चाई लेकर आए हैं_,”
★_ फिर इनका इस्लामी नाम आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने अब्दुल्लाह बिन सलाम रखा। इस्लाम कुबूल करने के बाद यह अपने घर गए अपने इस्लाम लाने की तफसील घरवालों को सुनाई तो वो भी इस्लाम ले आए।
: ★_ चंद यहूदियों ने आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम से सवाल पूछा -,आप यह बताएं ,उस वक्त लोग कहां होंगे जब क़यामत के दिन ज़मीन और आसमान की शक्लें तब्दील हो जाएंगी _,”
इस पर आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने जवाब दिया :- “_उस वक्त लोग पुल सिरात के करीब अंधेरे में होंगे_
★_इसी तरह एक मर्तबा यहूदियों ने हुजूर सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम से बादलों की गरज और कड़क के बारे में पूछा । जवाब में आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने इरशाद फरमाया :-
“_ यह फरिश्ते की आवाज़ है जो बादल का निगरां है उसके हाथ में आग का एक कोड़ा है इससे वह बादलों को हांकता हुआ उस तरफ ले जाता है जहां पहुंचाने के लिए अल्लाह ताला का हुक्म होता है_,”
★_ उन यहूदियों ही में से एक गिरोह मुनाफिकीन का था ।यह बात ज़रा वजाहत से समझ लें, मदीना मुनव्वरा में जब इस्लाम को उरूज हासिल हुआ तो यहूदियों का इक्तीदार खत्म हो गया , बहुत से यहूदी इस ख्याल से मुसलमान हो गए कि अब उनकी जान खतरे में है सिवाय अपनी जान बचाने के लिए वह झूठ मुठ के मुसलमान हो गए। अब अगरचे कहने का वह मुसलमान थे लेकिन उनकी हमदर्दियां और मोहब्बतें अब भी यहूदियों के साथ थी। ज़ाहिर में मुसलमान थे अंदर से वही यहूदी थे । इन लोगों को अल्लाह और उसके रसूल ने मुनाफिक क़रार दिया है , इनकी तादाद 300 के क़रीब थी ।
इन्ही मुनाफ़िक़ों में अब्दुल्लाह इब्ने उब’ई था, यह मुनाफ़िक़ों का सरदार था , यह मुनाफिक़ीन हमेशा इस ताक में रहते थे कि कब और किस तरह मुसलमानों को नुक़सान पहुंचा सके, मुसलमानों को परेशान करने और नुक़सान पहुंचाने का कोई मौक़ा हाथ से जाने नहीं देते थे।

