कुँवारा नहीं मारना
कुँवारा मरना अच्छी बात नहीं है। हमारे बुज़ुर्गों ने ये नहीं सिखाया।
हज़रते इब्ने मसऊद रदिअल्लाहु त’आला अन्हु फ़रमाते थे अगर मेरी उम्र में से सिर्फ़ दस दिन बाक़ी रह गये हों और उन के बाद मेरी मौत हो तो मे चाहूँगा कि निकाह कर लूँ और अल्लाह त’आला से इस हालत में मुलाक़ात ना हो कि मै कुँवारा रहूँ।
(قوت القلوب، ج2، ص827)
इमाम अहमद बिन हम्बल रहमतुल्लाह अ़लैह के मुतल्लिक़ बयान किया जाता है कि आप की बीवी का इंतिक़ाल हुआ तो अगले ही दिन आप ने निकाह कर लिया।
हज़रते बिश्र रहमतुल्लाह अ़लैह का इंतिक़ाल हुआ तो किसी ने आप को ख्वाब में देखा। आप ने फ़रमाया कि मुझे ये मक़ाम अ़ता किया गया लेकिन शादी शुदा लोगों के मक़ाम तक ना पहुँच सका। (उन को अहलो अयाल पर सब्र करने की वजह से एक खास मक़ाम हासिल हुआ।)
हज़रते म’आज़ बिन जबल रदिअल्लाहु त’आला अन्हु की बीवी (ताऊन की वजह से) इंतिक़ाल फ़रमा गई तो आप ने फ़रमाया कि मेरा निकाह कर दो, मै नहीं चाहता कि अल्लाह त’आला से इस हालत में मिलूँ कि मै कुँवारा रहूँ।
(ایضاً)