ख़ातमुन नबीय्यीन रहमतल्लिल आ़लमीन ﺻَﻠَّﻰ ﺍﻟﻠﻪُ ﺗَﻌَﺎﻟﻰٰ ﻋَﻠَﻴْﻪِ ﻭَﺁﻟِﻪِ ﻭَﺳَﻠَّﻢ
ने फ़रमाया अपनी औलाद को तीन बातें सिखाओ !
1 – अपने नबी की उल्फ़तो मौहब्बत
2 – अपने नबी की अहलेबैत ए अत्हार की उल्फ़तो
मौहब्बत
3 – क़ुराने मजीद की क़िरात
( अल जाअ्मेउल कबीर जिल्द – 01, हदीस – 924 )
( जाअ्मेउल अहादीस जिल्द – 01 , हदीस – 961)
( इमाम हुस्सामुल हिन्दी कन्ज़ुल उम्माल जिल्द – 12 , पेज – 560 , हदीस – 45409 )
( अल फ़तहुल कबीर जिल्द – 01 , सफ़ा – 59 )
( अस सवाइक मुहरिका – 577 )
Day: June 4, 2020
तुम मेरी पनाह में थे, मैं तुम्हारा क़त्ल* *कैसे करता?
तुम मेरी पनाह में थे, मैं तुम्हारा क़त्ल*
*कैसे करता? इमाम ज़ैनुल आबेदीन*
*अलैहिस्सलाम।*
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*इस मेहमान नवाज़ी की कोई मिसाल नहीं!*
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शाम का धुंधलका घिर चुका था। अचानक इमाम ज़ैनुल आबेदीन अ.स. सज्जाद) को लगा की कोई दरवाज़े पे दस्तक दे रहा है इमाम ने दरवाज़ा खोला देखा एक शख्स है जो दुश्मनो से भाग के पनाह लेने के लिए उनके दर पे आया है।
इमाम ज़ैनुल आबेदीन अ.स सज्जाद) ने उसे घर में बुलाया और कहा खाना खा लो भूखे लगते हो और आराम करो जब इत्मीनान हो जाए की बहार कोई खतरा नहीं तो चले जाना।
थोड़ी देर बाद इमाम ने देखा की वो शख्स सो नहीं रहा कुछ घबराया हुआ है तो इमाम ने उस से पूछा ऐ शख्स कोई और परेशानी हो तो बताओ लेकिन उस शख्स ने कुछ ना बताया।
इस शख़्स की आंखो में मगर नींद न थी आख़िर उसने भाग निकलने का फैसला किया। छिपकर निकलना ही चाहता था कि इमाम ज़ैनुल आबेदीन अ.स सज्जाद) ने आवाज़ दी ऐ सनान, कहां जा रहे हो? सुबह तक तो इंतज़ार करो।
ये शख़्स और घबरा गया।
आपने मुझे पहचान लिया?
*इमाम:-* हमने तो उसी वक़्त पहचान लिया था सनान जब तुम को दरवाज़ा खोलते ही देखा था।
आप जानते हैं मैं कौन हूं?
हां तुम मेरे भाई अकबर के क़ातिल हो तुमने कर्बला में मेरे बाबा को नेज़ा मारकर घायल किया था। तुम मेरे तमाम भूखे-प्यासे अज़ीज़ों के क़त्ल मे शामिल थे सनान इब्ने अनस।
फिर भी आपने मुझे पानी दिया, खाना खिलाया और पनाह दी? आपने मुझे क़त्ल क्यों नही किया?
*इमाम:-* तुम मेरी पनाह में थे, मैं तुम्हारा क़त्ल कैसे करता?
*सनान:-* लेकिन मैंने कर्बला में ये सब नहीं सोचा…
वो तुम्हारा ज़र्फ था सनान ये हमारा ज़र्फ है तुम घायल, निहत्थे, भूखे-प्यासे, हैरान-परेशान जान बचाने के लिए दर बदर भटक रहे हो हम ऐसे इंसान का क़त्ल नहीं करते चाहे वो बदतरीन दुश्मन ही क्यों न हो हम वारिसे रसूल (सअ) हैं हम तुम जैसे नहीं जाओ तुम्हारे गुनाहों का हिसाब अल्लाह पर छोड़ा।
Qaul e Mawla Ali Alahissalam 4
Hadith Tirmizi 2790
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🍁 Hazrat Abdullah bin Umar (Raziyallahu ‘Anhuma) riwaayat karte hain ke Rasulullah ﷺ ne Irshaad farmaaya: Teen Cheezon ko radd nahi karna chahiye (yani koi de to inkaar nahi karna chahiye) Takiya, khushbu aur doodh. (Tirmizi: 2790)
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उस्मान गाज़ी क खुव्वाब
*एक दीन जब उस्मान गाज़ी अपने मुरशिद के यहा एक आस्ताने पे सोए हुवे थे उन्होंने खुव्वाब देखा , की एक चांद उनके मुरशिद शेख अदावली के सुने से नमूदार हुवा ओर उस्मान गाज़ी के सीने में उतर गया,। उनके पहलू से एक पेड़ नमूदार हुवा बढ़ता चला गया और बहरो-बर पे छा गया जिसकी जड़ो से 4 🌊दरिया निकले, ओर 4 पहाड़ 🏔उसको संभाले हुवे थे, की अचानक तेज हवा चलती हे और उस पेड़ की पत्तियां हवा में उड़ते हुवे , एक आलीशान शहर की तरफ गई , उस शहर से 2 दरिया ओर 2 बार्रेआज़म मिलते थे,ओर वो एक अंघुटी कि तरह था जिसे उस्मान गाज़ी पहनना चाहते थे*
_👑गाज़ी उस्मान ने अपना ये खुव्वाब अपने मिर्शिद शेख अदावली को सुनाया_
*उनके मुरशिद शेख अदावली ने उनको मुबारक बाद दी और कहा कि अल्लाह तआला ने तुम्हे ओर तुम्हारी नस्ल को इस्लाम के लिए चुन लिया हे, तुम मेरी बेटी से निकाह करोगे*
*उस्मान गाज़ी ने जो 4 दरया देखे थे ,*
(1)दरया ए दजला🌊
(2)दरया ए नील🌊
(3)दरया ए फराक🌊
(4)दरया ए दनयूग 🌊
*ओर जो 4 पहाड़ देखे थे*
(1) कोह ए तूर🏔️
(2)कोह ए बालकान🏔️
(3) कोह ए काफ🏔️
(4) कोह ए अरतलस🏔️
*बाद में उस्मान गाजी के बेटे के जमाने मे ये सल्तनत इन पहाड़ , इन दरियाओं तक फैल गई थी ,दरअसल ये खुव्वाब सल्तनत ए उस्मानिया की वुसअत की एक पैसनगोही थी*
*ओर शहर मुराद वो शहर जिसे गाजी उस्मान के पोते गाज़ी मोहम्मद फातेह ने फतेह किया जिसका नाम कुस्तुन्तुनिया इस्ताम्बुल कहते हे*
*इसी शहर के ताल्लुक़ से हुजूर सल्ललाहो तआला अलेह वसल्लम ने बसारत भी दी थी कुस्तुन्तुनिया को तुम फातेह करोगे*
*तारीख में इतनी लम्बी ओर इतने अरसे तक कायम रहने वाली हुकूमत किसी की नही रही, ओर नाही किसी खानदान में आले उस्मान के बराबर क़ाबिल हुक्मरान पैदा हुवे*
*गाजी उस्मान निहायत ही ईमानदार और अपनी रियाया के साथ आदलो इंसाफ करता थे, उनका रहन सहन एकदम सदा था ,उन्होंने कभी दौलत जमा नही की ,जो मालेगनीमत आता उसमे से यतीमो ,गरीबो, का हिस्सा निकाल के अपने सिपाहियों में तकसीम कर देते थे , वो बोहोत ही फय्याज ओर मेहमान नवाज़ थे इसी वजह से उनका नाम तुर्की में बोहोत अदब से लिया जाता हे*