इस्लाम क्या सिखाता है

allah-300x300

मुसलमानों, अपनी जुबानों को गाली गलौज और बुरी बातें निकालने से बाज़ रखो… कहीं लम्हे भर की नफ्स परवरी तुम्हें सख्त अज़ाब मे मुब्तिला ना कर दे

“….अल्लाह के सिवाय किसी की बन्दगी ना करो, और मां बाप के साथ, और रिश्तेदारों के साथ, और यतीमो और मोहताजो के साथ भला सुलूक करो, और लोगों से अच्छी बात कहो, और नमाज कायम करो,और जकात दो …….” [ Al-Quran, 2:83 ]

अल्लाह रब्बुल आलमीन ने हम मुसलमानों को दुनिया वालों से तहज़ीब और मोहब्बत के साथ ही बात करने का हुक्म दिया है, और इसके बरअक्स, किसी के साथ गाली गलौज करना और किसी को तकलीफ देने वाली बात कहने को इस्लाम मे एक संगी। गुनाह बतलाया गया है, नीचे बताई गई अहादीस मुलाहिज़ा फरमाएं :

.

हज़रत अबू हुरैरह रज़िअल्लाहु अन्हु रिवायत करते हैं कि नबी सलल्लाहो अलैहि वसल्लम ने फरमाया

“जो कोई भी अल्लाह और आखिरी दिन पर ईमान रखता है, वो दूसरों के साथ या तो भले तरीके से अच्छे अल्फाज़ मे बात करे, नहीं तो खामोश रहे, ! जो कोई भी अल्लाह और आखिरी दिन पर ईमान रखता है, वो अपने पड़ोसी के साथ मोहब्बत से पेश आए ! जो कोई भी अल्लाह और आखिरी दिन पर ईमान रखता है, वो अपने मेहमान की खातिर तवाज़ो किया करे.”

[Sûnan al-Bukhârî(6018) and Sahîh Muslim(47)]]

.

हज़रत सह्ल इब्न सा’द रज़िअल्लाहु अन्हु रिवायत करते हैं कि नबी सलल्लाहो अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि जो इन्सान मुझसे ये वाएदा करे कि वो अपनी शर्मगाह और अपनी ज़ुबान की हिफाज़त करेगा [ यानि अश्लीलता वाले अवैध कर्म करने, और किसी को पीड़ा पहुंचाने वाली बातों को कहने से खुद को रोकेगा ] तो मै वादा करता हूँ कि रोज़ ए हश्र मैं अल्लाह से उसके लिए जन्नत की सिफारिश करूंगा˝

[Saheeh – narrated by al-BukhaRi]

.

उम्मुल मोमिनीन हज़रत आइशा बिन्त सिद्दीक रज़िअल्लाहो अन्ह रिवायत करती हैं कि नबी सलल्लाहो अलैहि वसल्लम ने फरमाया
“अल्लाह की निगाह मे सबसे बदतर वो लोग हैं, जिनकी बेहूदा बातों और गन्दी ज़ुबान से खुद को बचाने के लिए लोगों ने उन से किनाराकशी इख्तियार कर ली है”

[Sahih Bukhari, Book-73, Hadith-152]

.

हज़रत मुआज़ रज़िअल्लाहु अन्हु. रिवायत करते हैं कि नबी सलल्लाहो अलैहि वसल्लम ने फरमाया
“ अपनी जुबान को काबू मे रखा करो, ये लोगों की जुबान से निकली बुरी बातों और अपशब्दों का ही नतीजा होगा कि उन्हें नाक और मुंह के बल जहन्नुम मे फेंक दिया जाएगा !!”

[al-Tirmidhi– Saheeh by al-Albaani]

Advertisement

Five Reasons Why #Allah Tests You

1. To DIRECT you.
Sometimes Allah must light a fire under you to get you moving. Problems often point us in a new direction and motivate us to change. Is Allah trying to get your attention? “Sometimes it takes a painful situation to make us change our ways.”
2. To CORRECT you.
Some lessons we learn only through pain and failure. It’s likely that as a child your parents told you not to touch a hot stove…. But you probably learned by being burned. Sometimes we only learn the value of something… health, money, a relationship. .. by losing it. “It was the best thing that could have happened to me, for it taught me to pay attention to your laws.”
3. To PROTECT you.
A problem can be a blessing in disguise if it prevents you from being harmed by something more serious. Last year a friend was fired for refusing to do something unethical that his boss had asked him to do. His unemployment was a problem – but it saved him from being convicted and sent to prison a year later when management’s actions were eventually discovered. “You intended to harm me, but God intended it for good…
4. To INSPECT you.
People are like tea bags…if you want to know what’s inside them, just drop them into hot ever water! Has Allah tested your faith with a problem What do problems reveal about you? “When you have many kinds of troubles, you should be full of joy, because you know that these troubles test your faith, and this will give you patience.”
5. To PERFECT you.
Problems, when responded to correctly, are character builders. Allah is far more interested in your character than your comfort. Your relationship to Allah and your character are the only two things you’re going to take with you into eternity. “We can rejoice when we run into problems…they help us learn to be patient. And patience develops strength of character in us and helps us trust Allah more each time we use it until finally our hope and faith are strong and steady

जिन्नात के बारे में हैरत अंगेज़ जानकारी..!

allah-o-akbar

जिन भी इंसान की तरह ही अल्लाह की एक मखलूख है, जो आग से पैदा की गई है, बनी आदम नू इंसानी की तरह यानी रूह और जिस्म वाला) वाली है, उनमें तवालद और तनासुल भी होता है, यानी इंसानों की तरह, उनकी भी नस्ल बढती़ और फल फूलती है, खाते-पीते, जीते मरते हैं, लेकिन उनकी उम्र बहुत लंबी होती हैं, उनकी उम्र हजारों साल होती हैं..!
जिन्नो में मुसलमान भी हैं काफिर भी, लेकिन उनमे कुफ़्फ़ार, इंसान की बनिसबत बहुत ज़्यादा हैं, उनके मुसलमान नेक भी हैं, और फासिक भी, लेकिन उनमें फ़ासिकों, बदकारों की तादाद इंसान के बनिसबत ज़्यादा है, शरीद जिन्नो को शैतान कहते हैं, इन सबका सरगना इब्लीस है, जो कि पहले जिन “मारिज” के पोते का बेटा था इब्लीस ने हज़रत आदम अलैहिस्सलाम को गुरूर में आकर सजदा करने से इनकार कर दिया था। और हुक्म खुदा की नाफर्मानी की थी, जिसकी वजह से रानदा बारगाह इलाही हुआ, और हमेशा के लिए मर्दूद किया गया, क़यामत तक के लिए यह राहत दी गई, और उसे मोहलत देना उसके इकराम के लिए नहीं, बल्कि उसकी शकावत और अज़ाब ज़ियादती के लिए है..!
इब्लीस की तरह उसकी ज़ुर्रियत भी मर्दूद है, यह सब शैतान हैं, औरों को बहकाना उनका काम है, तरह तरह की तरकीबों से नेक रास्ते से रोकते और बुरे कामों की तरफ तरगीब दिलाते हैं, अल्लाह के नेक बंदे उनके मकरूह अगवाह मे नहीं आते, बल्कि लाहौल भेजकर नेक कामों में लगे रहते हैं, लेकिन जो उनके बहकावे में आ जाते हैं वह आखिरकार गुमराह हो जाते हैं, अल्लाह अपनी पनाह मे रखे और उनके मकरूह अगवाह से बचाए..!
फरिस्तों की तरह जिन्न को भी कुछ को ताकत दी गई है कि जो चाहे बन जाएं, हदीसों से साबित होता है कि उनमें किसी किसी के पर भी होते हैं और वे हवा में उड़ते फिरते हैं, और कुछ सांपों और कुत्तों की शक्ल गश्त लगाते फिरते हैं और कुछ इंसानों की तरह रहते हैं, लेकिन अक्सर उनके मकान जंगल सुनसान मकान और पहाड़ हैं।
इस्लाम से पहले भी अरबों में जिन्न के ज़िक्र मौजूद थे, उस ज़माने में सफर करते वक्त जब रात आ जाती थी तो मुसाफिर अपने इलाके के जिन्न के सरदार के सुपुर्द कर के सो जाते थे, कहा जाता है कि इंसान बनाने से पहले दुनिया में जिन बसे थे, जिनकी तखलीख आग से हुई थी, और उन्होंने दुनिया में बुराईयों बरपा कर रखा था, कुरान में हज़रत सुलेमान के मुताल्लिक बयान किया गया है कि उनकी हुकूमत जिन्न पर भी थी, हज़रत सुलेमान ने जो इबादत गाह ”हैकल” बनवाई थीं, वह जिन्न ने ही बनाई थी..!
सही हदीस में है कि हर इंसान के साथ एक हमज़ाद शैतान जिन होता है, हमज़ाद जिन एक तरह का शैतान है, वह शैतान हर वक्त आदमी के साथ रहता है वह पूरा काफिर अबदी है, सिवाय इसके कि हुज़ूर अक़दस सल्लल्लाहो तआला अलैहि वसल्लम की बारगाह में हाज़िर था, वो इसकी बरकत से मुसलमान हो गया, सही मुस्लिम में हज़रत अब्दुल्लाह बिन मसऊद रज़ियल्लाहु अन्हु से है, पैगंबर सल्लल्लाहु तआला अलैह वसल्लम फरमाते हैं: लोगो! आप कोई शख्स नहीं है कि जिसके साथ हमज़ाद जिन और हमज़ाद फरिस्ता न हो, लोगों ने अर्ज़ की ऐ अल्लाह के रसूल! क्या आप के साथ भी है इरशाद कि हाँ मेरे साथ भी है, लेकिन अल्लाह ने मेरी मदद फ़रमाई कि वह (हमज़ाद शैतान) मुसलमान हो गया तो वह मुझे भलाई कुछ नहीं कहता..!
(सही मुस्लिम प* 1512 हदीस 2814)
इस हदीस की दरका में मरकाۃ और अश अतुल ममात है, कि जब कोई इंसान का बच्चा पैदा होता है तो उस के साथ ही इब्लीस का एक शैतान पैदा होता है, जिसे फारसी में हमज़ाद अरबी में जुनूनी कहते हैं, ज़ाहिर यह है कि शैतान के हर हर आन सैकड़ों बच्चे पैदा होते रहते हैं, मुताबिक औलाद इंसान जैसे मछली, नागिन सांप एक साथ हज़ारों अंडे देती हे, तागवती जराशिंम हर आन बच्चे देते रहते हैं..!
मुस्लिम शरीफ़ में है कि अब्दुल्ला बिन मसूद रज़िअल्लाह बयान फ़रमाते हैं, कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया। मेरे पास जिन्न का दाई आया तो मै उसके साथ गया और उन पर कुरान पढ़ा कहा कि वे हमें लेकर गया और अपने आसार और अपनी आग के आसार दिखाई, और नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से (खाने) के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि हर वो हड्डी जिस पर अल्लाह का नाम लिया गया हो वह तुम्हारे हाथ आएगी तो वह मांस होगी और हर मेग्नी तुम्हारे जानवरों का चारा है, तो नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया इन दोनों से स्वयं न करो क्योंकि यह तुम्हारे भाइयों का खाना है..!
जो पृथ्वी पर हम जीवन गुज़ार रहे हैं उसी पर वह भी रहते हैं, और उनकी आवास अक्सर खराब स्थानों और गंदगी वाली जगह होती हैं, जैसे शौचालय ‘गंदगी फेंकने और मल की जगह आदि तो इसीलिए अल्लाह के नबी ने उन जगाहों में दाखिल होते वक्त असबाब अपनाने के लिए कहा है, यानी दुआएं और अज़कार, कब्रिस्तान और सुनसान जगाहों पर भी उनका डेरा होता है, इसी तरह घरों की छतों पर भी ये मख्लूक रहती है। इसीलिए शाम के वक्त जब सूरज ग़ुरूब होते वक्त नबी अकरम (स) ने छोटे बच्चों को छतों पर छोड़ने से मना किया..!!!