सरकार मज़नू शाह मलंग मदारी

जंग ए आज़ादी मे मकनपुर की भागेदारी
“जंग ए आजादी मे मकनपुर कि भागेदारी ”
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भारती इतिहास का ये वो गुमशुदा पन्ना है जिस को लिखा तो गया लेकिन पढा न जा सका जी हाँ मैं बात कर रहा हूँ सन् 1760-74 तक की, जब लार्ड क्लाइव और उसके साथी धीरे-धीरे बंगाल को निगलने की कोशिश कर रहे थे, तब सिलसिले मदारिया के मलंगों और उन के साथ दीगर मदारियो ने उनकी न केवल मुख़ालिफ़त की बलके जंग भी की।
और इन सब के सबसे बड़े हिरो रहे शहीदे अव्वल मुजाहिदे मिल्लत हज़रत मजनू शाह मलंग मदारी
*ख़बरों की खबर*

आइये जानते हैं मजनू शाह मलंग मदारी का मुख्तसर ताअर्रुफ*
नुक़ूश ए मेवात 1992 ईसवीं के अक्तूबर के शुमार में प्रोफेसर सय्यद मोहम्मद सलीम लिखते हैं
कि नवाबज़ादी अब्दुलउला ने जर्नल एशिया टिक सोसायटी 1903 के शुमार में बाबा मजनू शाह और उनके कलंदर सिफात फुक़रा का हाल इस तरह दर्ज किया है
ये लोग लम्बे लम्बे बाल बढ़ा लेते हैं रंगीन कपड़े पहनते हैं लोहे के चिम्टे हाथों में रखते हैं
ये लोग आम तौर पर कुछ चावल और घी और दूध पर गुज़ारा करते हैं । गोश्त और मछली नहीं खाते हैं। और शादी नहीं करते हैं।
सफर में एक झंडा उठाए रहते हैं जिस पर मछली बनी हुई होती है।
*ख़बरों की खबर*

हमेशा एक गिरोह और दस्ते की सूरत में सफर करते हैं
इनका लक़्ब बरहना है
बसरी सिलसिले मदारिया से इनका ताल्लुक़ है । जिसको शाह मदार ने हिन्दुस्तान में राइज किया था ।

अवामी सतह पर जंग पॉलिसी के बाद मज़हम्मत और अंगरेज़ो के साथ पन्जा आज़माई का एक सिलसिला मिलता है।
जिसमे हिन्दू भी हैं और मुस्लिम सिख़ ईसाई भी हैं।

मुसलमानों के उलमा भी हैं और आवाम भी है। पहाड़ी क़बाइल और सिपाहियों की तहरीक 1733 ईसवीं फक़ीरो के मजनू शाह मलंग मदारी की कयादत में अग्रेंज़ो पर हमले 1776 तक फिर यह सिलसिला 1822 तक जारी रहा ।
करम अली शाह मदारी
चिराग अली शाह मदारी
मोमिन अली शाह मदारी
वगैरा कि कयादत में अंगरेज़ो के लिए दर्दे सर रहे

फराइज़ी तहरीक जिसको हाजी शरीअत उल्लाह ने 1781 मे शुरू किया था 1860 तक जारी रही ये बुनियादी तौर पर किसानों की ही तहरीक थी।
जिसको *जाग उठा किसान* के नाम से भी याद किया जाता है ।
जिसकी बहुत बड़ी अकसरियत मुस्लिम किसानों पर मुशतमिल है

इस तहरीक से मुतअस्सिर निज़ाम की सन् 1831 ईसवी की तहरीक है जिसको खेत मजदूरी और छोटे किसानो से कुव्वत मिली थी।
(जंग ए आजादी के अहम पहलू अज अब्दुर्रहीम कुरैशी)

हज़रत बाबा मजनू शाह मदारी को जंगे आजादी का पहला हीरो भी कहा जाता है।

यानी ईस्ट इंडिया कम्पनी की फ़ौज से आजादी ए हिन्द के लिए सबसे पहले आपने ही जंग लडी और मुल्क वासियों के दिलो में आजादी की शमा रौशन की।

*दौर ए हाजिर के एक मुहक्क़िक कलमकार परवाना रदौलवी ने* हफ्ता रोज “नयी दुनिया” में इस हकीकत पर सन् 1994ईसवी 16अगस्त देहली का 1857 पर बेहतर रौशनी डाली है।

आप लिखते हैं-

गदर ही अज़ीम हिन्दुस्तान की पहली जंग ए आजादी नही है बल्कि इस गदर से पहले ही अंग्रेजों के खिलाफ सन् 1763 में शोले भड़क उठे थे इस तहरीक के सबसे बडे काइद बाबा मजनू शाह मदारी थे।

इनके ख़लीफा जनाब मूसा शाह मदारी,रमज़ानी शाह मदारी, जहूरी शाह मदारी, सुबहान अली शाह मदारी, अ़मूमी शाह मदारी, बुद्धू शाह मदारी, पीर गुल शाह, मुतीअ अल्लाह शाह, ने चालीस पैंतालीस साल तक इस तहरीक को चलाया
मुल्क में बजाब्ता इनकी कोई बडी तन्ज़ीम न होने के बावजूद ये फक़ीर गाँव गाँव जाकर लोगो को अंग्रेजों के खिलाफ उकसाते थे।

बाबा मजनू शाह मदारी एक जबरदस्त तन्ज़ीमी सलाहियत के मालिक थे वो मुश्किल हालात में बेमिसाल शुजाअत का मुज़ाहिरा पेश करते थे।
डा. फर्कुहर ने लिखा है-सोलहवीं सदी में मुसलमानों मे कुछ ऐसे फ़कीर थे जिन के पास औज़ार हुआ करते थे और वो लोग जंगो मे हिस्सा लिया करते थे।
(ये मंलग थे)
मोहम्मद एहसान फानी ने अपने दबिस्तान में लिखा है कि जब सन् 1964 में मीर कासिम को, ईस्ट इंडिया कंपनी ने बंगाल की नवाबी से हटा दिया तब उसने अपना तख़त दुबारा पाने के लिए इन फकीरों (मलंगो) से मदद ली।
इन फकीरों (मलंगो) की पहचान थी की अपने नाम के आख़िर में वे” शाह ” लगाते थे। दबिस्तान के लेखक फानी का कहना है कि, ये फकीर सच्चे मुसलमान थे, अपने देश , किसानों और गरीबों की ख़िदमत और मदद के लिए हमेशा तयार रहते थे। पुरे बंगाल के हिंदू और मुस्लिम के अच्छे नेता हजरत मजनूशाह मलंग मदारी थे ।
अंग्रेजों से फकीरों का मुकाबला 1760 से 1764 तक लगातार चलता रहा । लेकिन वह ईस्ट इंडिया कंपनी के लिए सबसे बड़े मुसकिल के साल थे, सन् 1773-74, जब बंगाल में भयानक अकाल चल रहा था। वारेन हेस्टिंग्ज के कागज़ातों से पता चलता है कि सन् 1773 में फकीरों ने बाकरगंज पर धावा बोल दिया। हेस्टिंग्ज ने लिखा है- उसी वर्ष फकीरों ने ढाका की कोठी पर भी हमला कर दिया और कोठी के आला अधिकारी मि.लीसेस्टर ने कोठी खाली कर देना ही ठीक समझा। बाद में, कैप्टन ग्रांट ने कोठी पर फिर कब्जा किया और जो फकीर लड़ाई में पकड़े गये थे, उनसे कोठी की मरम्मत में कुली का काम लिया। सन् 1766 में कूचबिहार की महौल बहुत ही ख़राब था। रामानंद गोसाई के चाल से वहां के बालक राजा को कतल कर दिया गया। इस पर राय के सरदारे फ़ौज नजीर ने अंग्रेजों से मदद मांगी और मुख़ालफ़ीन ने फकीरों को मदद के लिए बुलाया। अगस्त,1766 में दोनों फ़ौजो में कई टक्करें हुई। अगले साल भी मुकाबला चलता रहा। सन् 1769 की एक जंग में अंग्रेजी टुकड़ी का फ़ौजी सरदार लेफ्टिनेंट कीथ मारा गया। मि.कल्डसैल के एक दस्तावेज से पता चलता है कि, सन् 1772 में हजरत मजनूशाह फिर बंगाल लौट आये और आप ने नैटोर की रानी भवानी को अपने तरफ़ करने की कोशिश की। लेकिन वहां आप का इस्तकबाल फ़ौज ने किया । नैटोर सलतनत के कारिन्दे ने फकीरों को रोकने के लिए सेना भेजी। आख़िर मे, वहाँ के कुछ गावों पर फकीरों का कब्जा हो गया , फिर कुछ वक्त चुप रहने के बाद, सन् 1772 में फकीर दोबारा मैदान मे आये
30 दिसंबर,1772 को शामगंज में फकीरों और अंग्रेजों के बीच खतकनाक जगं हुई, जिसमें अंग्रेज कप्तान टामस मारा गया
कुछ फ़कीर भी शहीद हुये जंग जीत कर, फकीर लोग कूचबिहार की ओर चल पड़े। वहां के तख़त के वारिस के लिए नजीर-देव के साथ झगड़ा चल ही रहा था। फकीरों ने संतोषगढ़ को जीत लिया। अब, कूचबिहार के सेनापति नजीरदेव ने कंपनी से मदद मांगी। मि. पुरलिंग तुरंत कूचबिहार के लिये चल दिया कप्तान स्टुअर्ट को जलपाईगुड़ी भेजा गया और 3 फरवरी को बहरामपुर से एक और टुकड़ी आ गयी। किला जीत लिया गया। पर उसी साल जनवरी में उत्तर-बंगाल में फकीरों की एक और बड़ी फ़ौज निकल चुकी थी। 6 जनवरी को बगड़ा के डरे हुए कलक्टर ने कंपनी के अधिकारियों को सूचित किया कि, परगना चौगांग में फकीरों ने बड़े जमींदार के नायब को करागार मे डाल दिया है। दो दिन बाद, उसने अधिकारियों को यह भी लिखा कि, बगड़ा में लगभग दो हजार फकीर आ गये है और उनके पास एक सौ घोड़े और अस्सी बैलगाड़ियों में हथियार है। यह खबर मिलते ही, कंपनी के कप्तान एडवर्ड को चिलमारी रवाना किया गया। उसके साथ तीन टुकड़ियां थी। 17 जनवरी 1773 को रंगपुर जिले में, उलीपुर पहुंचने पर, कप्तान एडवर्ड को पता चला कि फकीर परगना मुखरिया में पहुंच कर वहां हुकूमत कायम कर लियेेे है। परंतु कलक्टर को उनकी पूरे काम-काज का पता लग गया था। 26 जनवरी को उसने लिखा-आज मुझे परगना मैमनसिंह के जमींदार किसन राय से 6 माघ को लिखा एक पत्र मिला है, जिसमें बताया गया है कि, जमालपुर सबडिविजन के जफरशाही परगने में 5000 फकीर घुस आये है।कलक्टर को यह फिक़र थी कि, कहीं फकीर ढाका पर न चढ़ाई कर दें, क्योकिं औज़रो और हतियारों के साथ फकीर अलापसिंह परगने तक चढ़ आये थे। इस बात की पूरी उम्मीद थी कि, फकीर मैमनसिंह चलें आयेंगे और वहाँ 7000 और फकीर उनसे आ मिलेंगे। शेरपुर से ख़बर मिल ही चुकी थी कि, चिलमारी के पास बहुत फकीर जमा हैं और मजनू शाह पंद्रह किश्तियों में फकीरों को लेकर वहां पहुंच गयें हैं। 4 फरवरी को 5000 फकीर कामगारी पर चढ़ आये। उनकी पूरी नज़र , ढाका पर थी । कलक्टर ने लखीपुर और यशोहर से और सेनाएं मंगवायी और जसरथखां से 500 भालाधारी सैनिक भेजने की मांग की। फकीरों की संख्या कप्तान एडवर्ड के फ़ौजियों से बहुत ज्यादा थी। तो, कप्तान स्टुअर्ट और कप्तान जोंस को भी फकीरों का दमन करने पर लगाया गया। एडवर्ड की जानिब पीछा किये जाने पर फकीर अटिया से तो हट गये, पर उन्होंने ढाका पहुंचने का एक और कोसिस की । लेकिन एडवर्ड ने उनके पीछे अपने दस्ते लगा दिये थे। मार्च,1973 में एडवर्ड फकीरों तक जा पहुंचा। उनकी ताएदात कुछ 3000 थी। बारबाजू में लड़ाई हुई और बारह सिपाहियों को छोड़ कर अंग्रेजों की तमाम फ़ोज काट डाली गयी। अपनी इस जीत से ख़ुश होकर फकीर अलग-अलग हो गये। उनकी फ़ौज का बड़ा हिस्सा दूर दूर तक चला गया। इसका भी सुबूत है कि, वो अंग्रेजों को देश से उखाड़ फेकने के लिये जयंतिया के राजा से मदद मांगने गये थे। दो साल बाद, मजनूशाह फिर बंगाल में दिख़ाई दिये। उनके ख़िलाफ़ लेफ्टिनेंट राबर्टसन के निगरानी में अग्रेज़ी फ़ौज रवाना की गयी। 14 नवंबर, 1776 को कई मुठभेड़े हुई और मजनूशाह हार गये। मजनू शाह का ख़ास था भवानी पाठक, जिसके देख रेख इलाक़े थे परगना प्रतापबाजू और पटिलाढ़ा थे। पाठक का अहम मददगार एक पठान था, जो कंपनी के सिपाहियों से डट कर जूझा। आखि़र में, पठान पाठक और दूसरे दो मुखिया मारे गये। देवी चौधुरानी भी पाठक से जुड़ी थी। पर जब अंगरेजो ने देखा कि हम असानी से इन फकीरों को हरा नही सकते है तो कुछ नकली फकीर इन की फौज मे घुसा दिये फिर उन लोगों के ज़रिये अब फकीरों में फूट पड़ चुकी थी और वे आपस में लड़ने लगे थे जिस का फ़ायदा उठाते हुए अंग्रेजों ने इन फकीरों को हरा दिया और बदला लेते हुए गाजर मुली की तरह इन फकीरों को काट कर शहीद कर दिया गया और इन की हर चीज़ पर कब्जा कर लिया गया ।भारत को अजाद करवाने के लिए इन लोगों ने सबसे पहले सब कुछ कुर्बान कर दिया।
इन्ना-लिल्ला ही व इन्ना इलैहि-राजऊनऔर इस तरह बाबा मजनू शाह मदारी अंग्रेज फ़ौज से लडते रहे
29दिसम्बर सन् 1786 में आप अंग्रेज फ़ौज से लडते हुए शदीद जख़्मी हुए और आप मरकज़ ए पुर अनवार मकनपुर शरीफ़ तशरीफ़ ले आये।

यहाँ पर तीन अंग्रेज भाई रहते थे वो नील बनाते थे और इन की बहुत बड़ी कोठी थी जिसके आज भी निशानात मैजूद हैं आज भी ये जगह कोठी के नाम से ही जानी जाती है।

सुन्नियों के मरकज़ ए पुर अनवार मकनपुर शरीफ़ में अंग्रेजों को देख कर बाबा मजनू शाह मदारी ने अपने मुल्क की मुहब्बत में एक अंग्रेज पीटर मैक्सवेल को मार डाला।

बस फिर क्या था *सुन्नियों का मरकज़ ए पाक* आल ए नबी सललल्लाहोअलैहि वसल्लम के खून से रंग गया वो भयानक तबाही की मक्कार अंग्रेज फ़ौज ने कि रूह काँप उठे जुल्म देखकर ।

सैय्यद ख़ान ए आलम मियाँ जाफरी मदारी की हवेली पर एक हथिनी इमली का पेड था जिसपर आल ए नबी सललल्लाहोअलैहि वसल्लम को बेदर्दी के साथ फाँसी पर लटकाया गया।

ये सभी मदारी मर्द ए कलन्दर हसते हसते मुल्क पर कुरबान हो गये ।
सैय्यद खान ए आलम मियाँ जाफ़री मदारी वगैरह अज़ीम बुजुर्ग हस्तियों को गोलिया से शहीद किया गया कुछ को काला पानी की सजा दी गई।

*सुन्नियों का मरकज़ ए पाक मकनपुर शरीफ़ आज खून से रंग गया था !* वो भयानक तबाही की गई कि अन्दाजा लगाना मुश्किल होगा । खानकाह की बेशकीमती चीजे लूट ली गईं और बादशाह इब्राहीम शर्की का पेश किया हीरा कोहिनूर भी लूटा गया उलमा व मसाइख को ढूँढ-ढूँढकर कत्ल किया गया आल ए नबी ए पाक सललल्लाहोअलैहि वसल्लम पर ये जुल्म देखकर कलेजा काँप जाता रहा।
मरकज़ ए अहले सुन्नत दारुन्नूर मकनपुर शरीफ़ के *कुतुब खाने को आग लगा दी गयी ।*

मुल्क के लिये जो कुरबानी *उलमा ए मकनपुर शरीफ़ ने दीं हैं वो शायद ही किसी ने दी हो ।*

*26 दिसम्बर सन् 1787 में भारत का ये मर्द ए कलन्दर शेर ए मदार*
अंग्रेज फ़ौज से लडते-लडते अपनी आखिरी साँस भी वतन पर फिदा कर गया ।
इन्नालिल्लाहि व इन्नाइलैहिराज़ेऊन
आपका मज़ार ए पाक मकनपुर शरीफ़ के मेला कोतवाली मे मौजूद है।

भारत की जंगे आजादी का पहला मर्द ए मुज़ाहिद जिसने अंग्रेजी हुकूमत की ईंट से ईंट बजा दी थी वो मर्द ए कलन्दर सरकार मज़नू शाह मलंग मदारी رضی اللّه عنہ के नाम ए पाक को आज मिटाया और फ़रामोश किया जा रहा है।
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Badey gunah (Kabira Gunah)

BISMILLAHIR-768x432

Bismillahirrahmanirrahim
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✦ Badey gunah (Kabira Gunah)
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✦ Al Quran: Agar tum Un Bade Gunahon se bachoge jinse tumhe mana kiya gaya to hum tumhare (chote) gunaah maaf kar denge aur tumhey Ezzat ke Maqam mein dakhil karenge
Surah An-Nisa (4) Aayah 31

✦ Al Quran : Aap se Sharaab aur juye (gambling) ke bare mein puchte hain kah do inmein bada gunaah hai aur logon ke liye kuch fayde bhi hain magar unka Gunah unke fayde se bahut bada hai
Surah Al-Baqara, (2), Verse 219

✦ Al Quran : Aur Yateemo ko unke maal de do aur napak ko paak se na badlo aur un ke maal apne maal ke saath mila kar kha na jaya karo , ye bada gunah hai
Surah An-Nisa , Aayat 2

✦ Anas Radi Allahu Anhu se rivayat hai ki Rasool-Allah Sal-Allahu Alaihi Wasallam se badey (kabira) gunahon ke baare mein pucha gaya to Aap Sal-Allahu Alaihi Wasallam ne farmaya
1. ALLAH ke saath kisi ko Sharik karna, 2. Waaldein ki nafarmani karna,
3. Kisi ki (nahaq) jaan lena ,4. aur Jhooti gawahi dena.
Sahih Bukhari, Vol 4,2653

✦ Abdulllah bin Umar Radi Allahu Anhu se rivayat hai ki Rasoollallah Sallallahu Alaihi Wasallam ne farmaya yakeenan kabira gunaho mein se ye bhi hai ki koi apney waldein par laanat bhejey (logo ne pucha) ki Ya Rasoollallah Sallallahu Alaihi Wasallam koi shakhsh apney hi waldein par laanat kaisey bhejega to Aap Sallallahu Alaihi Wasallam ne farmaya jab koi shakhs dusro ke walid ko bura kahaega to dusra bhi uskey walid aur maa ko bura kahega (aur is tarah wo kabira gunaah kar dega)
Sahih Bukhari,Vol 7, 5973

✦ Abdullah bin Mas’ud Radhi Allahu Anhu se rivayat hai ki maine pucha ya Rasool-Allah Sal-Allahu Alaihi Wasallam kaunsa gunaah sabse bada hai?
Aap Sal-Allahu Alaihi Wasallam ne farmaya ALLAH ke saath kisi ko Sharik karna halanki usi ne tumhe paida kiya ha.,
maine pucha iske baad ? ,
Aap Sal-Allahu Alaihi Wasallam ne farmaya ki Apni Aulad ko is khauff se maar dena ki wo tumhare saath tumhare khane mein sharik hogi.
maine pucha uske baad ?
Aap Sal-Allahu Alaihi Wasallam ne farmaya ki apne padosi ki biwi se zina karna.
Sahih Bukhari, Vol8, 6811