-: *ताज़ियादारी जाइज़ होने के शरई दलाइल*
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मुहर्रम शरीफ़ नज़दीक है जिस में हम अहले सुन्नत व जमात के लोग रौज़ये इमाम आली मक़ाम हुसैंन अलैहिस्सलाम बनाते हैं जिस से कुछ लोगो को मिर्चे लगतीं है
महेज़ अपनी दुकानें चमक़ाने के लिये कुछ लोग बे वजह के दलाएल देकर अज़मते ताज़ियादारी पर शबखून मार रहें हैं ताज़िया नही बनाना चाहिये हराम है
ताज़ियादारी हराम हराम का नारा लगाने वालों ज़रुर पढो
अभी कल ही की बात है कि मैनें एक सहाब की पोस्ट देखी जिस पोस्ट मे उन्होने ताज़ियादारी हराम साबित करने की भरपूर कोसिश की पर एक भी मज़बूत दलील वो पेश न कर सके
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कुरान मजीद मे इरशादे बारी तआ़ला
-जो लोग अल्लाह तआला की निशानियों की ताज़ीम करते हैं ये फेल उनके दिलो का तक़वा है
सू. हज-32
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तफ़सीर व अहादीस मे लिखा है के हर वो चीज़ (शआरइरल्लाह) यानी अल्लाह तआला की निशानी है जिस को देख कर अल्लाह व रसूल और अल्लाह वाले याद आ जायें
अब आप बताये क्या ताज़िया देख कर आप को इमाम आली मक़ाम हुसैंन अलैहिस्सलाम की याद नही आती ?
(अज़मते ताज़ियादारी 111)
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मज़कूरा आयते करीमा से साबित हुआ कि ताज़ियादारी जाइज़ है क्योकि अल्लाह तआला और उसके रसूल सल्ल. ने इसे हराम या नाजाइज़ नही फ़रमाया
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हर वो चीज़ जिसमें अल्लाह तआला का कोई अम्र या निशानी हो जिससे वो जाना पहचाना जाये और शआइरल्लाह से दीन की निशानियाँ मुराद हैं ख़्वाह वो मकानात हों जैसे कावातुल्लाह, अरफात मुजदल्फा सफा मरवाह मिना मस्जिद या वो शआइरे ज़माने हो जैसे रमज़ान हुरमत वाले महीने ईदुल फित्र ईदुल अज़हा योमे जुमा या आज़ान नमाज़ ख़त्ना ये सब शआइरे दीन हैं
(तफ़्सीर कुरतबी-6/382) (तफ़्सीर बग़वी 1/91)
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मालूम हुआ जिस चीज़ से अल्लाह तआला के मक़बूल व महबूब बन्दो की निसबत हो जाये वो चीज़ अज़मत वाली बन जाती है जैसे सफ़ा मरवाह पहाड़ हज़रत हाज़रा रदी. के कदम की बरकत से अल्लाह तआला की निशानी बन गये
सफ़ा मरवहा के सात चक्कर लगाना ये हजरत हाज़रा रदी. की यादगार है
कुर्बानी करना ये हज़रत इब्राहीम व हज़रत इस्माईल अलैहिस्सलाम की याद गार है मुक़ामे इब्राहीम के नज़दीक दो रकत नमाज़ अदा करना ये अल्लाह के ख़लील की यादगार है
तो अल्लाह तआला अपने महबूब बन्दो की यादगार का एहतमाम करता है
तो हम मुहिब्बाने अहलेबैत जब अल्लाह और उस के रसूल प्यारे महबूब इमाम हुसैंन अलैहिस्सलाम की यादगार (ताजियादारी) करने से क्यू रोका जाता
जो लोग ताजियादारी की मुख़ालिफ़त करते हैं उनके पास कोई मज़बूत दलील नही होती सिवाये कुछ फाजिले बरेलवी के फतवे के
ज़रा सोचो अहले सुन्नत वल जमात के मरकज़
अजमेर शरीफ मकनपुर शरीफ देवा शरीफ किछौछा शरीफ़ मुरादाबाद वगै़राह जो रूहानियत के मरकज़ हैं वहाँ की ख़ानक़ाहें रोज़ा ए इमाम हुसैंन से सजाई जाती हैं
“””हज़रत अब्दुल्ला बिन अब्बास रज़ि. से मरवी है के हुज़ूर (स. त. अ. व.) ने इरसाद फ़रमाया “अगर किसी चीज़ की तस्वीर बनाना ज़रूरी समझो तो दरख्तों की या ऐसी चीज़ की तस्वीर बनाओ जिस मे रुह न हो”
(यानी जान दार न हो)
मिश्कात शरीफ़-386
अब मुझे बताओ के ताज़िया तो रोज़ाये इमाम हुसैंन अलैहिस्सलाम है
और उस मे जानदार की तस्वीर नही होती
सैय्यद अल्लामा मौलाना महबूब उर रहमान नियाज़ी जयपुरी अपनी किताब “मुहब्बते अहले बैत कुरान व अहदीस की रोशनी मे” मे फरमाते हैं के कुरान व अहदीस की रूह से जिन्हें अहले बैत से मुहब्बत नही वो मुनाफ़िक है मुहब्बत का तक़ाज़ा ये है कि जो चीज़ महबूब से निसबत रख़ती है तो मुहब्बत करने वाला उस चीज़ से भी निसबत रख़ता है तो जिसे अहले बैत से मुहब्बत होगी वो ताज़िये से भी मुहब्बत करेगा और ताज़िया रोज़ाये इमाम हुसैंन की नक़ल है
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मिसाल के तौर पर हाजी लोग हज करने जाते हैं तो मक्का मुक़रर्मा व मदीना मुनव्वरा से बहुत सी चीज़े अपने अपने मुल्क लाते हैं फिर उन चीज़ो को अपने रिश्तेदार दोस्त बग़ैराह को देते है तो लेने वाला शक्स इज़्ज़त से लेता है और उन चीज़ो की ताज़ीम करता है जब के वो दुसरे मुल्को से वहाँ बेचने के लिये लाई जाती है वहा बनतीं नही हैं फिर भी हम ताज़ीम करते हैं क्योकि वो चीज़ मक्का ए मुक़रर्मा व मदीना मुनव्वरा से निसबत रखती है
अब आप लोग अपने ज़ेहन से फ़ैसला करें
जब अल्लाह ने अपने महबूब बन्दो की यादगार को ज़िन्दा रखने के लिये उन की यादगारों को फर्ज़ और वाजिब कर दिया तो हमे अल्लाह व रसूल के प्यारे महबूब इमाम हुसैन की यादगार को ज़िन्दा रखना चाहिये य नही
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उल्माए अहलेसुन्नत पर एक नज़र
हज़रत शाह नियाज़ बे नियाज़ आप ताज़िये के तखत को बोसा दिया करते थे
(करामाते निज़ामिया 37)
हज़रत मुफ़्ती याकूब लाहौरी फ़रमाते हैं कि मुहर्रम अपने तमाम लमाजात के साथ करना जाइज़ है और ये अच्छा अमल है जो औलिया अल्लाह से साबित है
(तोहफ़तुन नाज़रीन 52)
हज़रत सय्यद अब्दुल रज़्ज़ाक बाँसवी रह. जिस वक्त ताज़िया उठता तो आप खड़े रहते और जब ताज़िया रुखसत होता तो आप नंगे पाँव ताज़िये के साथ जाते
(करामाते रज़्ज़ाकिया 15)
शाह कुतुबुद्दीन संभली का मामुला था आप के सामने ताज़िया आता तो आप खड़े होते और रोते रहते
(फ़तावा ताज़ियादारी 3)
शाह अब्दुल अज़ीज़ मुहद्दिस देहलवी फ़रमाते हैं कि ताज़िये के सामने रखकर जो फ़ातिहा दी जाती है वो मुतबर्रक है
(फतावा अज़ीज़ी 1/189)
शाह अब्दुल अज़ीज़ देहलवी का मामूला था के आप ताज़िये को काधा लगाते थे
(फ़ज़इले अहले बैत 35)
इस के अलावा और तमामी अहले सुन्नत के उलमा वा मशायक ने हमेशा ताज़ियादारी की और यादगारे हुसैंन मनाते रहे
और इसी तरह
इंशा अल्लाह हम आशिकाने हुसैंन जब तक ज़िन्दा हैं यादगारे हुसैंन मनाते रहेंगे और गमे हुसैंन मे रोते रहेंगे
कुछ हज़रात के पेट मे दर्द होता है गमे हुसैंन मे रोना नही चाहिये गमे हुसैंन नही मनाना चाहिय इस पर उनके पेट का इलाज करुंगा इंशा अल्लाह अगली पोस्ट में
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अगर आप भी रोज़ ए इमाम आली मक़ाम बनाते हैं तो शेयर तो बनता है
सहाबा के नाम पर आवाम को गुमराह करना।
मोहर्रम का महीना आते ही कुछ लोगो के पेट मे दर्द होता है और वो सहाबा की आड़ मैं ताजियादारी पर फतवे लगाते है जबकि ताजियादारी शरीयत से साबित है कि ये जायज है। मौलबी हज़रात ने एक बात फैला रखी है कि जो अहलेबैत से मोहब्बत करे वो शिया है। जबकि सहाबा का ये मामला था कि आप अहलेबैत से बेशुमार मोहब्बत करते थे हज़रत अब्बुबकर सिद्दीक र.अ. का ये मामला था कि आप हज़रत मोला अली शेरे खुदा के चहरे अनवर को तकते रहते थे आपकी साहबजादी हज़रत आयशा सिद्दीक र.अ. ने आप से पूछा अब्बा आप महफ़िल मैं मोला का चेहरा क्यो तकते है तो हज़रत अब्बुबकर सिद्दीक र.अ. ने फरमाया की बेटी अली के चेहरे को ताकना इबादत है। अब आप इस से अंदाज़ा लगाओ सहाबा की नज़र मैं अहलेबैत का क्या मकाम है अहलेसुन्नत वल जमात सहाबा के तौर तरीके पर चलती है तो आप ये सोचो कि जब सहाबा अहलेबैत से मोहब्बत करते है वो भी बेशुमार । तो आज जो अहलेबैत से मोहब्बत करता है उस पर शिया होने का फतवा क्यो लगाया जाता है। अहलेसुन्नत वल जमात वो है जो अहलेबैत से मोहब्बत करती है आज के ठेकेदार के अनुसार तो सहाबा भी शिया हो गए। लोगो को कुछ सवालों के साथ गुमराह कर दिया जाता है जैसे।
- तुम्हारे कोई मर जायेगा तो तुम ढोल बजाओगे क्या?
जवाब : ये सवाल ऐसा है कि जिसे इस्लाम का 1 % भी इल्म न हो वो इसी सवाल मैं मारा जाता है। मतलब कम अक्ल के लोग। पहली बात मौलबी हज़रात से पूछो की आप उन्हें मरा हुवा मानते है क्या? क्योकी जो मरा हुवा माने वो ही ये सावल करता है। ढोल तासे बजाए जाते है लोगो को बेदार करने के लिए की लोगो सुनो इमाम के नाम का डंका। जो जीतता है उसके नाम का ही ढोल बजता है । एलान के लिये और लोगो को बेदार करने के लिए ढोल शरीयत से जायज है आप किसी से भी पूछ लो। बहुत गांव मे सहरी के वक़्त ढोल बजाया जाता है ।
- लोग अलम को देख कर बोलते है कि जब हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्लाम का सर ए अनवर नेजे पर उठाया गया था वो है ये?
जवाब: अब इसे सुन कर वो लोग गुमराह होते है जिसने कभी वाक़्यात ए कर्बला पढ़ी नही। अब एक बात सोचो हज़रत इमाम हुसैन अलैहिसलाम को 10 तारीख को शहीद किया गया तो 7 तारीख को उनका सिर ए अनवर नेजे पर कैसे आएगा। अलम वो होता है जो जंग के वक़्त किसी खास आदमी को दिया जाता है इसे आप ऐसे समझो कि जब दो देशो की लड़ाई हो तो देश का झंडा किसी आदमी के हाथ मे होता है। जब कर्बला की जंग शुरू हुवी तो हज़रात इमाम हुसैन अलैहिस्लाम ने अपने भाई हज़रत अब्बास अलमदार र.अ. को अलम दिया। हज़रत अब्बास अलैहिस्लाम का लक़ब भी अलमदार है वो इसी वजह से बोला जाता है। जो 7 तारीख को अलम उठाया जाता है वो हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्लाम के नाम का अलम है। अब आप खुद समझ जाएं ये सही है या गलत।
- कुछ लोग बोलते है 7 तारीख को मेहंदी और सहारा चढ़ाया जाता है वो खुशी हो गई वो क्यो करते हो?
जवाब: अल्लाह हर चीज़ का सिला देता है कर्बला मैं जब जंग शुरू हुवी तो हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्लाम को हज़रत इमाम हसन अलैहिस्लाम का वादा याद आ गया कि हज़रत इमाम हसन अलैहिस्लाम के साहबजादे हसरत कासिम अलैहिस्लाम का निकाह करना है तो आपने अपनी साहबजादी के साथ निकाह किया। अब ये सब कर्बला मैं हो रहा है तो जाहिर है वहा इतने इंतेजाम नही है तो लोग उनके नाम की मेहंदी और सहरा करते है ये अल्लाह की तरफ से उनके इनाम है कि जिनकी मेहंदी नही हुवी उनकी मेहंदी और सहरा कयामत तक शुरू कर दिया।
- कुछ जाहिल लोग ताजियादारी मैं गंदे काम करने लगे जैसे नाच रहे है
जवाब: अब अगर आपमें थोड़ा भी दिमाग हो तो आप इस सवाल का जवाब खुद से पूछो की जब कभी तरावीह की नमाज होती है तो बहुत बच्चे पीछे हल्ला मचाते है तो आप नमाज रोको गे या बच्चों को रोकोगे।
- लोग बोलते है औरत बे पर्दा आती है?
जवाब: इसका सीधा जवाब है साहब आपने अभी इस्लाम को जाना ही नही। इस्लाम मे औरत का जितना पर्दा है उतना ही मर्द की आंखों का पर्दा है मर्द को ये चाहिए कि वो अपनी नजरे झुका ले और किसी बेपर्दा औरत को नही देखे। मगर अफसोस आपको औरत का पर्दा ही बताया जाता है कभी हदीस कुरान उठा कर देखो की मर्द पर कितना बड़ा पर्दा है। ये बात हुवी इस्लाम से। अब आप सुनो दुनिया के लायक बात जब औरत बेपर्दा बाज़ारो मैं गुमती है जब आपको पर्दे का ख्याल नही आता क्या? जब आप उसे अपनी बाइक पर बैठा कर गुमाते है तब आपको पर्दे के ख्याल नही आता क्या? जब अगर कोई साहब से पूछ लें तो साहब बोलते है ये मॉडर्न वक़्त है। जब ताज़ियादारी होती है तब इन्हें हदीस याद आती है कि बेपर्दा है। अबे जाहिलो ये बुग्ज़ है और कुछ नही। और सबसे बड़ी बात ऐसी बात करते हुवे मैने अक्सर उन लोगो को देखा है जो पूरी साल पर्दे का ख्याल तक नही रखते और मोहर्रम मैं उन्हें पर्दा याद आ जाता है।
- ताज़िया को दफनाना और कर्बला बनाना?
जवाब: जिनके जिस्म मुबारख को जगह नही दी गई आज अल्लाह ने उनके नाम की कर्बला हर जगह कर दी। जिन्हें बहुत दिनों तक दफनाया नही गया अल्लाह ने उनकी ताज़ियत को हर साल दफनाया।
- ताज़िया शरीफ बनाना?
जवाब: इस्लाम मे किसी का नक्शा बनाना जायज है शर्त है वो जानदार ना हो। भाई ताज़िया इमाम के रोज़े का नक्शा ही तो है। वो कैसे नाजायज हो सकता है। अब कुछ लोगों का दिमाग चलता है कि इमाम का रोज़ा मुबारख ऐसा थोड़ी है तो उन साहब से एक बात कहना चाहूंगा कि जब ताज़ियादारी शुरू हुवी तब इमाम का रोजा मुबारख ऐसा ही था। वक़्त के साथ वो तामीर हो गया। और वक़्त के साथ लोगो ने अपने अपने हिसाब से रोज़ा ए मुबारख का नक्शा बना लिया। जो बेशक जायज है बहुत लोगो के घरो मैं काबा शरीफ की तस्वीर है तो अदब के लायक है ना वैसे ही इमाम के रोज़े मुबारख का नक्शा भी अदब के लायक़ है।
”””””’क्या हैं ताज़ियेदारी”””””’
ये पोस्ट उन लोगो के लिए है! जो ताज़िये को लेकर थोड़ा शक मै है! और इस पोसर पोस्ट को हर ग्रुप में शेयर करे ताकि लोगो का शक दूर हो !!!!!
शरीयत के 2 रास्ते हे (1) इल्मे शरीयत वाला (2) इश्क़ वाला
इल्म वाले लोग मुल्ला मौलवी होते है, और इश्क़ वाले लोग औलिया अल्लाह,पीर फ़क़ीर ,मलंग होते है!!
ये हे इल्मे शरीयत वाले लोग………..
बहुत सारे उल्मा,मौलवी,मुफ़्ती ने ताज़िये के खिलाफ फतवा दे रखा है! देवबंद,वहाबी,अहले हदीस,और यहाँ तक के अहमद राजा बरेलवी (आला हज़रात) ने भी इसे गलत बताया है!!
मौलवी लोग कहते है! के एक राजा था जिसका नाम तैमूर था उसने ताज़िये की शुरुवात की थी!!और कुछ लोग ये भी कहते है के ये शियाओ का तरीका है ये सब गलत हे मनगड़त बातें है क्योंकी जब ताज़ियेदारी हिंदुस्तान में शुरू हुई थी उस वक़्त शिया मज़हब का हिन्द मे वजूद ही नहीं था !! हक़ीक़त कुछ और ही है!!!
ताज़िये की शुरुवात बग़दाद से हुई है ! और हिंदुस्तान में इसकी शुरुवात 12 सदी से हुई है! हिन्द मे सबसे पहले ताज़िये शरीफ बनाने वाले शहंशा ए हिन्द नूरे नबी औलाद ए अली हजरत ख्वाजा गरीब नवाज़ ने बनाया था ! और आज तक ये सिलसिला जारी है!!……..
इस्माइल देल्हवी,अशरफ अली थानवी,अहमद रज़ा खां (आला हज़रत) और भी बहुत सारे मौलवी है जिन्होंने ताज़िये को नाजायज़ बताया है! और आज के करीब 80% मौलवी इसे गलत बताते है!!! ये हे इल्मे शरियत वाले लोग….
आओ अब आपको में इश्क़ वाले लोग बताता हू !!
ये वो हस्ती है ! जिन्होंने ताज़िये को बनाया,ताज़िये मे शरीक हुए और ताज़िये को कन्धा दिया !!!
हजरत सैय्यद ख्वाव गरीब नवाज र.अ (अजमेर)
हजरत सैय्यद ताजुद्दीन सरकार र.अ (नागपुर )
हज़रत सय्यद वारिस पाक र.अ (बाराबंकी लखनऊ )
हज़रत सैलानी सरकार र.अ (बुलडाणा)
हजरत सैय्यद अब्दुल्लाह हुसैनी र.अ (तामिलनाडु )
हजरत शाह नियाज़ बेनियाज़ र.अ ( बरेली )
हजरत बाबा फरीद गंज -ए-शकर र.अ (पाकिस्तान)
हजरत सैय्यद खवाजा बन्दा नवाज गेसूदराज र.अ (कर्नाटक)
हजरत सैय्यद वसी मौहम्मद सरकार. (दौलताबाद )
और भी बहुत सारे औलिया अल्लाह हे जो ताज़िये ये में शरीख होते थे!
अब फैसला आप लोगो को करना है,800 से साल वाले गरीब नवाज की मानोगे. या फिर आज के मौलवी का ! इल्म वालो की सुनोगे या इश्क़ वालो की ?अगर आप किसी मौलवी को इन सब बुज़ुर्गो से या फिर गरीब नवाज से भी बड़ा मानते हो तो ठीक है !! फिर आप मौलवी की सुनो
मुझे तो ताज़िये में मौला हुसैन और कर्बला की यादे दिखाई देती है! और. में तो इश्क़ वाला हु इसलिए ताज़ियेदारी मरते दम तक जारी रहेगी !!
एक बात हमेशा ध्यान रखना के यज़ीद पलीद भी मुसलमान था !!
और 72 शहीद में एक गैर मुस्लिम भी है हज़रत जौंन(र जी.) गुलामे अबु जर ये ईसाई थे किसी ने कहा के इस्लाम कबूल कर लो तो उन्होंने कहा ये जो सामने है ये भी मुस्लमान है!!!
मुस्लमान होना ज़रूरी नहीं है साहब आशिक़ ए हुसैन होना जरूरी है!!!!!
Taziya Sharif Hawale Sai Ek Muktasar Wakya
Hazrat Syed Waaris E Paak
Radiyallahu Ta’Ala Anhu Khud Apne
Haathon Se Taziya Banate They
Saath Saath Taziya Ke Juloos Mein
Shirkat Farmate They Aur Taziya
Shareef Ko Kaandha Lagate They
Aur Badi Aqeedat Ke Saath Taziye
Adab O Ehtaraam Karte They,
Taziyon Ko Dekhte Waqt
Aapke Chehre Ki Ajeeb Haalat
Mushahide Mein Aati Thi Aur Der Tak
Aap Aalame Sukoot Mein
Rehte They (Mishkat Ul Haqqaniya
Safa No.214)
Hazrat Shah Abdul Azeez Mohaddis
Dahelvi Radiyallahu Ta’Ala Anhu Ka
Maamul Likkha Hua
Hai Ke Woh Taziya Ko Kandha Lagate
They (Asraarullahe BishShadatain
Safa No.9)
Hazrat Shah Nayaz Beniyaz
Radiyallahu Ta’Ala Anhu Barellvi Se
Logon Ne Daryaft Kiya Ke Huzoor
Taziya Daari Kya Hai? Sarkaar Shah
Nayaz Beniyaz Ne Farmaya Ke Agar
Tum Log Taziya Shareef
Bannte Ho Toh Mai Mana Nahin
Karunga Balki Mujh Se Jaha’n Tak
Hoga Taziya Shareef Ka Adab
Karunga Aur Dil Se Ehtaraam
Karunga Aur Aap Paabandi Se Uski
Ziyarat Karte They, Ek Baar Kisi
Molvi Sahab Ne Huzoor Shah Nayaz
Beniyaz Ke Is Maamul Par Etraaz
Kiya, Aapko Jalaal Aagaya
Chunanche Aapne Uski Gardan
Pakad Kar Taziye Ki Taraf Isharah
Karte Hue Ek Khaas Jazbe Ke
Saath Farmaya Molvi Dekh Kya Nazar
Aata Hai? Molvi Sahab Dekhte Hi
Behosh Ho Kar Gir Pade
Der Tak Issi Haalat Mein Rahe Hosh
Aane Par Rikkat Taari Ho Gayi Jab
Haalat Durust Hui Toh
Logon Ke Daryaft Karne Par Bataya
Ke Mujhe Hasnain Kareemain” Ki
Ziyarat Hui Jis Se Mujh
Par Behoshi Taari Ho Gayi Thi Mai
Bayan Nahin Kar Sakta Maine Kya
Nazaara Dekha Uske Baad
Unho Ne Apne Fasid Khayal Se Tauba
Kar Liya (Riyaz Ul Fazaeel Safa
No.229.230)