मिश्कत ए हक़्क़ानिया जीवनी वारिस पाक-43

निंद्रावस्था में शिष्यता से लाभान्वित होना

अधिकांशतः दैववाणी या शुभ संवाद स्वप्न में हुआ करती हैं। मुहम्मद साहब के प्रवचनों में सच्चे स्वप्नों की बड़ाई की गयी है किन्तु शरीयत (धार्मिक मार्ग अथवा नियम) ने स्वप्न पर विश्वास करने से रोका है। क्योंकि स्वप्नों को हकीकत तत्काल समझ में नहीं आती है और कभी-कभी फल उलटा होता है । अतः ऐसे स्वप्न अंकित नहीं किये गये हैं जिनको पूज्य गुरू हाजी बाबा ने प्रमाणित नहीं किया हैं। कुछ महत्वपूर्ण स्वप्न की घटनायें ही लिखी गई हैं :. चूँ गुलामे आफताबम हमा आफताब गोयम,

न शबम न शब परसतम न हदीसे ख्वाब गोयम | अनुवाद :- हम चूँकि सूर्य के गुलाम और सेवक हैं अत: हम सब को सूर्य ही

कहते है न हम रात्रि है न रात्रि के पुजारी हैं और न स्वप्न की बात कहते हैं। फजले हुसेन महोदय लेखक पुस्तक ‘मिश्कात हक्कानिया’ कहते हैं कि ‘ हमने सुना है हुजूर वारिस पाक का स्वप्न में शिष्य करना अवैसिया के ढंग से सम्बन्धित है।

शेख निहालुद्दीन निवासी कुरसी, जिला- बाराबंकी एक देखी हुई घटना का ब्यान करते हैं कि बम्बई के एक नामवर व्यापारी सेठ अब्दुर्रहमान साहब ने स्वप्नमें सरकार वारिस पाक को देखा। चूंकि इसके पहले उन्होंने कभी आपको नहीं देखा था। अतः प्रातः मंस्जिद में आने पर नमाज़ के पश्चात् अपना स्वप्न बताया और यह भी कहा कि इस वेष-भूषा का फकीर आज तक नहीं देखा है। अतः मैं उनका पता कैसे करूं ? कुरसी निवासी शेख अब्दुल अजीज उस मस्जिद के पेश इमाम (नमाज़ पढ़ाने वाले) थे। उन्होंने सम्पूर्ण स्वप्न सुनने के पश्चात् उक्त सेठ से बताया कि हमारे देहात इलाके में इस शक्ल सूरत के एक फकीर सैय्यद हाजी वारिस अली शाह हैं। सेठ साहब हुजूर का पता निशान पाकर दर्शन हेतु उतावले हो उठे। मौलवी अब्दुल अजीज साहब को साथ लेकर लखनऊ के लिए प्रस्थान कर दिया। जिस समय देवा शरीफ पहुंचकर पुज्य हाजी बाबा के चौखट पर उपस्थित हुए सरकार वारिस पाक ने आपको देखते ही कहा ‘तुम शिष्य हो चुके हो । इतने दूर-दराज सफर की क्या जरूरत थी ?”

c मौलवी रौनक अली साहब लिखते हैं कि मेरी नानी महोदया की शिष्यता की घटना इस प्रकार है कि मेरी नानी हकीम रहमत अली की पत्नी थीं। उन्होंने स्वप्न में देखा कि पूज्य गुरू हाजी वारिस अली बाबा विद्यमान हैं और कहते हैं कि तुम हमसे भयभीत क्यों होती हो? हम तुम्हारे हैं, तुम हमारी हो, शिष्य हो जाओ। सुनते ही मेरी आँख खुल गई और प्रातः भोर तक नींद नहीं आई। प्रातः उन्होंने मियां जी वारिस अली वारसी को बुलवाया और पर्दे से अपना स्वप्न विस्तारपूर्वक मियां जी को सुनाया। इन्होंने बताया कि यह सूरत तथा रूप तो मेरे धर्म गुरू हाजी सैय्यद वारिस अली शाह का है किन्तु वह इस समय बहुत दिनों से मक्का शरीफ की ओर यात्रा कर रहे हैं। उसी समय मियाँ जी लौंडी दौडी-दौडी आई और कहा कि मियाँ आपको एक शाह साहब पूछ रहे हैं। मियाँ जी तेजी से घर के बाहर हुए और देखते हैं कि हुजूर सामने से आ रहे हैं। दौड़कर आपको प्रणाम किया और पैर चूमे। हुजूर ने पूछा यह मकान किसका है? उत्तर दिया कि हकीम रहमत अली साहब का । हुजूर ने कहा ‘वह तो हमारे मकतब (पाठशाला) के भाई हैं, कहाँ है ? मियां जी ने कहा कि हुजूर अभी आपकी चर्चा चल रही थी। उनकी धर्म पत्नी ने आज स्वप्न में आपको देखा है। आप ने कहा ‘बस, बस’ वह तो शिष्या है और उनके घर में पधारे । NE

मुंशी एलाह यार खाँ निवासी अलीगढ़ लिखते हैं कि मेरे पिता डाक्टर थे । उनसे एक व्यक्ति कह गया था कि जब हुजूर वारिस पाक यहाँ आवें तो आप सूचित करने का कष्ट करें। मैं शिष्य होना चाहता हूँ। जिस समय हुजूर बाँदा पधारे उस समय वह आदमी बहुत दूर किसी स्थान पर था। लोगों ने हुजूर वारिस पाक से एकदिन रुकने का आग्रह किया किन्तु आपने कहा ‘अरे, हम नहीं ठहर सकते और वह शिष्य हो गया।’ उस व्यक्ति के लौटने पर पूछा गया उसके शिष्य होने के सम्बन्ध में, तब उसने दिन तारीख सहित बताया कि

हम स्वप्न में शिष्य हो गये हैं। मौलवी सैय्यद अली हामिद शाह कादरी चिश्ती गद्दीधारी से लिखित है कि मुंशी सादिक अली साहब निवासी गोपा मऊ, जिला-हरदोई हुजूर वारिस पाक के खिलाफ रहते थे। स्वयं अपनी शिष्यता की घटना का वर्णन करते हैं। जब हुजूर पाक गोपा मऊ पधारे तो मौलवी फाजिल साहब ने मुझसे कहा कि पूज्य हाजी साहब पधारे हैं तुमको भी मिलना चाहिए। मैंने उत्तर दिया कि ऐसे फकीरों से हम मिलना नहीं चाहते और न जाने क्या-क्या कहकर अपने घर लौट आये। आते ही मेरे पेट में दर्द उठने लगा और मैं कष्ट से त्राहि-त्राहि करने लगा। एक वैद्य आहे और उनके अथक परिश्रम के पश्चात् भी लेशमात्र लाभ नहीं हुआ। अति दुर्बलता के कारण मैं बेहोश सा हो गया। उस अवस्था में मैंने देखा कि एक भव्य शानदार मस्जिद है और ऋषि-मुनि तथा सम्पूर्ण धार्मिक उच्च लोग एकत्र है। सभी नमाज पढ़कर किसी की प्रतीक्षा में बैठे जान पड़ते हैं। इतने में बाहर कुछ आवाज सुनाई पड़ी सभी आदर भाव से उठ खड़े हुए और बाहर जाकर उनको अपने बीच में करके मस्जिद में लाये। उन्होंने सुन्नत नमाज पढ़कर सबको नमाज पढ़ाई मैंने लालाईत होकर देखा कि वह बुजुर्ग पूज्य गुरू हाजी साहब हैं। चरण चूमा और शिष्यता के लिए प्रार्थी हुआ। आप ने मेरी प्रार्थना स्वीकार किया और शिष्य कर लिया। आँख खुलने पर मेरी अपनी भूल का ज्ञान हुआ तथा अपने को पूर्ण स्वस्थ पाया। अपने असत्य विचारों को त्यागकर पूज्य हाजी बाबा की सेवा में उपस्थित हुआ। आप हर्षित होकर कहने लगे ‘क्या दुबारा मुरीद (शिष्य) होगे?” फिर हुजूर ने कहा, ‘तुम्हारा अपराध नहीं है, तुम्हारे नेत्रों की त्रुटि (भूल) है।

हाफिज अब्दुल अहद महोदय फजली निवासी महीरपुर अनुलेखक हैं। मैंने एक आदमी को देखा जो कभी पूज्य हाजी साहब का दर्शन नहीं किया था किन्तु वह स्वप्न में आप से शिष्य हो चुका था। लोगों ने उससे कहा कि स्वप्न का शिष्यत्व माना नहीं जाता और उचित भी नहीं हैं। अतः तुम किसी अन्य संत अथवा बुजुर्ग से शिष्य हो जाओ। जब उसने ऐसा संकल्प किया तो आपने फिर स्वप्न में दर्शन दिया और कहा तुम शिष्य हो चुके हो अब कोई आवश्यकता नहीं। कई बार उसके साथ ऐसा ही संयोग हो चुका है। लोगों के कहने-सुनने से जब कहीं वह जाने की इच्छा करता है तो पूज्य हाजी बाबा ने उसे सांत्वना प्रदान की। इस प्रकार अब उसे पूर्ण

विश्वास हो गया है और स्वप्न द्वारा ही उसको शान्ति प्राप्त हो रही है। पूज्य वारिस पाक के अस्तित्व से सदैव उपस्थित या अनुपस्थित रहने वालों के लिए दया-दान चलता रहता था। लोगों को जो निरीक्षण होता था उसमें वास्तविकता होती थी। ऐसे लोगों के मुख से बिना कुछ सुने ही उनके शिष्यता को सत्य और ठीक कहना और उनको पुनः शिष्य न बनाना इस बात को सिद्ध करता है कि ईश्वर ने आपको आत्मशक्ति तथा आत्म-ज्ञान से सुशोभित और प्रकाशमान किया था। आपको अवैसिया से उत्तम निसबत (लगाव) था जिसका कोई जवाब नहीं।

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