
मैदाने करबला में जब यजीदी दरिन्दे तमाम आवान व अन्सार और औलादे अकील दीगर बनी हाशिम का खून बहा चुके अब इने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम यानी फातिमा का लाल अपनी आखिरी कुरबानी पेश करने के लिए और इस्लाम के दरख्त को अपने खून से सींचने के लिए तैयार कर चुका ताकि क्यामत तक के लिए इस्लाम का दरख्त हरा हो जाए। शबे आशूरा से दस्वीं की सुबह तक यह मुसीबतें इमाम हुसैन के ऊपर कि हर शहीद की लाश को खेमे तक लाए जिसमें बराबर का भाई और जवान बेटा व छ: माह का बच्चा शामिल था।
रिवायतों से पता चलता है कि नौ मुहर्रम तक हज़रत इमाम हुसैन रज़ि अल्लाहु अन्हु के सर के बाल और दाढ़ी के बाल सियाह थे मगर आशूरा के अम्र तक आपके तमाम बाल गमों से सफेद हो गये।
तारीख़ कहती है कि हज़रत इमाम हुसैन दुश्मनों की चमकती हुई हज़ारों तल्वारों और बेशुमार नेज़ों और बरछियों के बीच में आए।

क्या हालत होगी उस इंसान की जिसका ज़ालिमों ने सब कुछ छीन लिया हो। अपनी निगाहों के सामने पूरे घर को ख़ाक व खून में एड़ियां रगड़ कर दम तोड़ते देख कर यही नहीं बल्कि दिल पर सब्र व ज़ब्त का पत्थर रख कर एक-एक लाश उठा कर खेमा तक लाने वाले हज़रत इमाम हुसैन के अब दिल की हालत क्या रही होगी।
मैदाने करबला में फौजे अश्किया ने सरकारे इमाम हुसैन को हर तरफ से घेर लिया तीरों की बारिश होने लगी इमाम घोड़े पर डगमगाने लगे इतने तीर जिस्म में पैवस्त हो गये कि आप घोड़े से ज़मीन पर आ गये, और सज्दे में गिर गये। शिम्र खंजर लेकर आगे बढ़ा और सीन-ए-अक्दस पर सवार हो गया और गर्दन पुश्त की जानिब से ठहर-ठहर कर काटने
लगा यहां तक कि सरे अक्दस को तने पाक से जुदा कर दिया। इन्ना लिल्लाहि व इन्ना इलैहि राजिऊन।

सरकार इमाम आली मकाम के सरे पाक का तने अक्दस से जुदा होना था बस करबला में क्यामत आ गई। जलजले पे ज़लज़ले आने लगे। आसमान में अन्धेरा छा गया। सिर्फ दरियाए फुरात ही का पानी नहीं बल्कि दुनिया भर के दरियाओं और समुन्द्रों के पानी उछलने लगे। मौजें सर को पटकने लगीं।
मौजें तमाम सर को पटकती हैं आज भी
आले नबी के पास जो पानी न जा सका
दिन ही में सितारे नमूदार हो गये। उधर यज़ीदी दहशत गर्दा ने अहले बैते अत्हार के खेमों में आग लगा दी और सामान लूटने लगे। हज़रत सकीना के कानों की बालियां नोच लीं। हज़रत सैय्यदा जैनब और सैय्यदा उम्मे कुल्सूम के सरों से रिदाओं को छीन लिया। इक रिदाए ज़ैनब को छीन कर यज़ीदों ने
जाने कितनी सदियों को बेरिदा बना डाला
बेसहारा बीवियां किस को पुकारें। बच्चे भाग-भाग कर माओं को पुकारने लगे।
हजरत सैय्यदा जैनब रज़ि अल्लाहु अन्हा ने हज़रत सैय्यद सज्जाद से पूछा कि बेटा तुम इमामे वक़्त हो बताओ कि हम लोग खेमों में जल कर मर जाएं या कि बाहर निकलें।
दुश्मन के एक सिपाही का बयान है कि जब खेमे जल रहे थे तो मैंने देखा कि एक बुलन्द कामत खातून कभी खेमे के अन्दर जाती हैं और कभी बाहर आती हैं। कभी दाएं तरफ देखती हैं कभी बाएं तरफ और कभी आसमान की तरफ और फिर अपने हाथ पर हाथ मारती हैं।
सिपाही कहता है कि मैंने कहा कि ऐ खातून दूर हो जाइए आम बहुत तेज है। उस पर उस खातून ने जवाब दिया कि ऐ शैख हमारा एक बीमार भतीजा खेमे के अन्दर है जो शिद्दते मरज की बडू से उठने पर कादिर नहीं है। मैं उसे तन्हा आग के शोब्लों में कैसे छोड सकती हूं।
हजरत सैय्यदा जैनब रजि अल्लाहु अन्हा जलते हुए खेमों के भड़कते हुए शोब्लों के अन्दर जा कर हजरत सैय्यद सज्जाद को अपने पुश्त पर लाद कर बाहर लायीं। इतने में इमाम जैनुल आबेदीन ने आंखें खोली और देखा कि मेरे बाबा का सरे पाक नेजे की नोक पर है। खेमे जलने लगें बीवियां एक खेमे से दूसरे खेमे में जाने लगीं, जब आखिरी खेमे में गई तो उसमें भी आग लगा दी गई। इमाम हुसैन का पूरा घर आलमे गुरबत में लुट गया।
सर तन से जुदा होते ही आलमे बाला में कुहराम मच गया। इमाम आली आली मकाम की शहादत के बाद ही फौरन आसमान के किनारों से सुर्ख गुबार उठा और देखते-देखते तमाम जहान तारीक हो गया।
और इस कद्र अन्धेरा छा गया कि पास ही में खड़े हुए की सूस्त नजर न आती थी। इतने में आसमान से खून की बारिश शुरू हो गई और तीन दिन तक मुसलसल खून की बारिश होती रही और दुनिया भर में जहां जिस चीज़ को उठाया जाता खून ही खून नज़र आता। मदीने में उम्मुल-मुमिनीन जनाब उम्मे सलमा रज़ि अल्लाहु अन्हा के पास जो करबला की मिट्टी वाली शीशी थी वह खून से लब्रेज़ हो गई। हज़रत यहिया अलैहिस्सलाम का कुर्ता जो एक जमाना से खुश्क था वह दून आलूद हो गया। यजीदी फौजों में खुशी के बाजे बजने लगे। फौल सियाह आंधियां चलने लगीं।
तरजमा : जब सैय्यदना इमाम हुसैन रज़ि अल्लाहु अन्हु को शहीद किया गया तो सूरज को शदीद गहन लग गया हत्ता कि दोपहर के वक़्त तारे नमूदार हो गये यहां तक कि उन्हें इत्मीनान हो गया कि यह रात है।
जब हज़रत इमाम हुसैन रज़ि अल्लाहु अन्हु को शहीद किया गया तो आसमान सुर्ख हो गया। (मोअजमें कबीर स. 282)
तरजमा : हज़रत इमाम हुसैन की शहादत के वक्त आसमान पर सुखी हो गई। (मोअजमें कबीर स. 282)
तरजमा : जब हज़रत इमाम हुसैन रज़ि अल्लाहु अन्हु को शहीद किया गया तो बैतुल-मक्दिस को जो भी पत्थर उठाया जाता उसके नीचे ताज़ा खून पाया जाता। (मोअजमें कबीर स. 283)
तरजमा : शहादत इमाम हुसैन रज़ि अल्लाहु अन्हु के दिन मुल्क शाम में जो भी पत्थर उठाया जाता वह खून आलूद होता।
अल्लामा जलालुद्दीन सुयूती फरमाते हैं कि हज़रत इमाम हुसैन की शहादत के दिन सूरज ग्रहण में आ गया था और फिर मुसलसल आसमान छ: माह तक सुर्ख रहा। बाद में वही सुर्जी आहिस्ता-आहिस्ता शफ़क बन गई अब यह निशानी सुबह क़यामत तक बाकी रहेगी जो शहादते इमाम से पहले मौजूद न थी।
(सवाइके मुहरिका स. 645, तारीखे खुलफा स. 304) मुहद्देसीन बयान करते हैं कि इमाम आली मकाम की शहादत पर न सिर्फ दुनिया रोई बल्कि ज़मीन व आसमान ने भी आंसू बहाए। शहादत हज़रत इमाम हुसैन पर आसमान भी नौहा कुना था। इंसान तो इंसान जिबातों ने भी मज़्लूमे करबला की नौहा ख्वानी की। मुहद्देसीन बयान करते हैं कि नवास-ए-रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की शहादत के वक्त बैतुल-मक्दिस से जो पत्थर उठाया गया। उसके नीचे से खून
निकला। शहादते हज़रत इमाम हुसैन के बाद भी मुल्क शाम में जिस पत्थर को हटाया गया उसके नीचे से खून का चश्मा उबल पड़ा। मुहद्देसीन का कहना है कि शहादते इमाम हुसैन पर पहले आसमान सुर्ख हो गया। फिर सियाह हो गया। सितारे एक दूसरे के टकराने लगे। यूं लग रहा था जैसे काइनात टकरा कर ख़त्म हो जाएगी। यूं लगा जैसे क्यामत कायम हो गई हो। दुनिया में अन्धेरा छा गया।
ईसा बिन हारिस अल-किन्दी से मरवी है :
तरजमा : जब इमाम हुसैन को शहीद कर दिया गया हम सात दिन तक ठहरे रहे जब हम अम्र की नमाज़ पढ़ते तो हम दीवारों के किनारों से सूरज की तरफ देखते तो गोया वह ज़र्द रंग की चादरें महसूस होता और हम सितारों की तरफ देखते तो उनमें से बाज़ बाज़ से टकराते।

