करबला का ज़िक़्र अपने घरों में क्यो ?

हक़ हुसैन (अ.स.) मौला हुसैन (अ.स.)
करबला का ज़िक़्र अपने घरों में क्यो ?
ताकि हमारे मरे हुए ज़मीर फिर से ज़िन्दा हो सके ज़रूर पढ़े आपका ही भला होगा?

*करबला महज़ एक जंग का मैदान ही नही था यहां रिश्तों की भी बुनियाद अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त अपनी मख़लूक़ को सिखा रहा था ! सोचिये आज हमारे घरों में रिश्ते जिस तरह से खोखले होते जा रहे हैं इसकी एक वजह ये भी है !
*करबला में क्या हुआ था ? इस सवाल के जवाब में हम जंग के हालात बयान कर देते है लेकिन आज के समाज को जो ज़रूरत है वो बयान नही किया जाता है ! असल मे करबला का बयान सिर्फ़ मस्जिदों महफ़िलो और मजलिसों की मोहताज हो गई है जबकि इसकी सबसे ज़्यादा ज़रूरत हमारे घरों में है इसका जवाब नीचे देने जा रहा हुं*

करबला में एक भतीजा अपने चाचा पर कुर्बान हो गया बेटे बाप पर कुर्बान हो गए भांजे मामू पर अपनी जाने निछावर कर देते है सौतेले भाईयो ने अपनी गर्दन कटवा दी बहन ने भाई के लिए अपने बच्चे निछावर कर दिए बिना हिचकिचाते हुए, बाप बेटो के लिए आँसू की बरसात कर देता है छोटे छोटे मासूम अपने बड़ों के लिए जान दे देते है दोस्त अपने दोस्तों से पहले कुर्बान होने की गुज़रिशे करते है इतनी शिद्दत की प्यास में चाचा अपनी भतीजी के लिए पानी लेने का खतरा उठाते है जबकि उनके खुद के मासूम प्यासे है ग़ुलाम अपने आकाओं के लिए कुछ भी कर गुज़रने को तैयार थे और उनके मालिक उनके जनाज़े पर ज़ार ज़ार रोते है, माँ अपने बच्चों को अपने वक़्त के इमाम पे कुर्बान करने के लिये अपना फ़र्ज़ समझते है, करबला हमे दर्स देती है के अगर ज़ालिम हुक़्मरान तुम्हारे सामने आ जाए तो अपना सिर ज़ालिम के सामने ना झुकाओ भले ही अपनी नस्ले कुर्बान क्यों न करना पड़े, मुनाफ़िक़ों को बेनकाब करने का नाम है करबला, रसूल अल्लाह और आले रसूल के क़ातिलों को बेनकाब करने का नाम है करबला, असली इस्लाम मर चुका था उसको हयात देने का नाम है करबला, झूठो को आइना दिखाने का नाम है करबला, जब भी इस्लाम पे मुसीबत आए ख़ुद को अपनी औलादों को कुर्बान करके इस्लाम को बचाने का नाम है करबला, दोस्तो ये है करबला जो आज के दौर में हमारे घरों में गूंजना चाहिए! आज इस मतलबी दुनिया मे सगे का सगा नही हो रहा है हर घर मे हिस्से बटवारे की लड़ाई हो रही है कोई किसी की नही सुन रहा है सोचिये हमारे इमाम हमे क्या देकर गए है ?
करबला यूं तो सालभर हमारे घरों में सुनाई जाना चाहिए कम से कम मुहर्रम में 10 दिनों तक ज़रूर इसका जिक्र हमारे पूरे परिवार को बैठकर सुनना चाहिए, मुसलमानों अगर आज करबला हमारे ज़हनो से मिट गई तो समझ जाओ मुसलमान भी मिट गया

करबला शिया सुन्नी का नाम नहीं है करबला मोमिन और मुनफ़िक की पहचान का नाम है मोमिन करबला भूल नहीं सकता और मुनाफ़िक करबला बर्दाश्त कर नहीं सकता, करबला में भी सब मुसलमान थे हज़ारो का लश्कर मुनफ़िक था, 72 हुसैनी मोमिन थे आप अपने आपको देखो कहाँ हो ?

हुसैन (अ.स.) सिर्फ एक नाम नहीं,

हुसैन (अ.स.) ज़िंदगी जीने का तरीका है।

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सहाबा के नाम पर आवाम को गुमराह करना।

सहाबा के नाम पर आवाम को गुमराह करना।

मोहर्रम का महीना आते ही कुछ लोगो के पेट मे दर्द होता है और वो सहाबा की आड़ मैं ताजियादारी पर फतवे लगाते है जबकि ताजियादारी शरीयत से साबित है कि ये जायज है। मौलबी हज़रात ने एक बात फैला रखी है कि जो अहलेबैत से मोहब्बत करे वो शिया है। जबकि सहाबा का ये मामला था कि आप अहलेबैत से बेशुमार मोहब्बत करते थे हज़रत अब्बुबकर सिद्दीक र.अ. का ये मामला था कि आप हज़रत मोला अली शेरे खुदा के चहरे अनवर को तकते रहते थे आपकी साहबजादी हज़रत आयशा सिद्दीक र.अ. ने आप से पूछा अब्बा आप महफ़िल मैं मोला का चेहरा क्यो तकते है तो हज़रत अब्बुबकर सिद्दीक र.अ. ने फरमाया की बेटी अली के चेहरे को ताकना इबादत है। अब आप इस से अंदाज़ा लगाओ सहाबा की नज़र मैं अहलेबैत का क्या मकाम है अहलेसुन्नत वल जमात सहाबा के तौर तरीके पर चलती है तो आप ये सोचो कि जब सहाबा अहलेबैत से मोहब्बत करते है वो भी बेशुमार । तो आज जो अहलेबैत से मोहब्बत करता है उस पर शिया होने का फतवा क्यो लगाया जाता है। अहलेसुन्नत वल जमात वो है जो अहलेबैत से मोहब्बत करती है आज के ठेकेदार के अनुसार तो सहाबा भी शिया हो गए। लोगो को कुछ सवालों के साथ गुमराह कर दिया जाता है जैसे।

  1. तुम्हारे कोई मर जायेगा तो तुम ढोल बजाओगे क्या?
    जवाब : ये सवाल ऐसा है कि जिसे इस्लाम का 1 % भी इल्म न हो वो इसी सवाल मैं मारा जाता है। मतलब कम अक्ल के लोग। पहली बात मौलबी हज़रात से पूछो की आप उन्हें मरा हुवा मानते है क्या? क्योकी जो मरा हुवा माने वो ही ये सावल करता है। ढोल तासे बजाए जाते है लोगो को बेदार करने के लिए की लोगो सुनो इमाम के नाम का डंका। जो जीतता है उसके नाम का ही ढोल बजता है । एलान के लिये और लोगो को बेदार करने के लिए ढोल शरीयत से जायज है आप किसी से भी पूछ लो। बहुत गांव मे सहरी के वक़्त ढोल बजाया जाता है ।
  2. लोग अलम को देख कर बोलते है कि जब हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्लाम का सर ए अनवर नेजे पर उठाया गया था वो है ये?

जवाब: अब इसे सुन कर वो लोग गुमराह होते है जिसने कभी वाक़्यात ए कर्बला पढ़ी नही। अब एक बात सोचो हज़रत इमाम हुसैन अलैहिसलाम को 10 तारीख को शहीद किया गया तो 7 तारीख को उनका सिर ए अनवर नेजे पर कैसे आएगा। अलम वो होता है जो जंग के वक़्त किसी खास आदमी को दिया जाता है इसे आप ऐसे समझो कि जब दो देशो की लड़ाई हो तो देश का झंडा किसी आदमी के हाथ मे होता है। जब कर्बला की जंग शुरू हुवी तो हज़रात इमाम हुसैन अलैहिस्लाम ने अपने भाई हज़रत अब्बास अलमदार र.अ. को अलम दिया। हज़रत अब्बास अलैहिस्लाम का लक़ब भी अलमदार है वो इसी वजह से बोला जाता है। जो 7 तारीख को अलम उठाया जाता है वो हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्लाम के नाम का अलम है। अब आप खुद समझ जाएं ये सही है या गलत।

  1. कुछ लोग बोलते है 7 तारीख को मेहंदी और सहारा चढ़ाया जाता है वो खुशी हो गई वो क्यो करते हो?
    जवाब: अल्लाह हर चीज़ का सिला देता है कर्बला मैं जब जंग शुरू हुवी तो हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्लाम को हज़रत इमाम हसन अलैहिस्लाम का वादा याद आ गया कि हज़रत इमाम हसन अलैहिस्लाम के साहबजादे हसरत कासिम अलैहिस्लाम का निकाह करना है तो आपने अपनी साहबजादी के साथ निकाह किया। अब ये सब कर्बला मैं हो रहा है तो जाहिर है वहा इतने इंतेजाम नही है तो लोग उनके नाम की मेहंदी और सहरा करते है ये अल्लाह की तरफ से उनके इनाम है कि जिनकी मेहंदी नही हुवी उनकी मेहंदी और सहरा कयामत तक शुरू कर दिया।
  2. कुछ जाहिल लोग ताजियादारी मैं गंदे काम करने लगे जैसे नाच रहे है
    जवाब: अब अगर आपमें थोड़ा भी दिमाग हो तो आप इस सवाल का जवाब खुद से पूछो की जब कभी तरावीह की नमाज होती है तो बहुत बच्चे पीछे हल्ला मचाते है तो आप नमाज रोको गे या बच्चों को रोकोगे।
  3. लोग बोलते है औरत बे पर्दा आती है?
    जवाब: इसका सीधा जवाब है साहब आपने अभी इस्लाम को जाना ही नही। इस्लाम मे औरत का जितना पर्दा है उतना ही मर्द की आंखों का पर्दा है मर्द को ये चाहिए कि वो अपनी नजरे झुका ले और किसी बेपर्दा औरत को नही देखे। मगर अफसोस आपको औरत का पर्दा ही बताया जाता है कभी हदीस कुरान उठा कर देखो की मर्द पर कितना बड़ा पर्दा है। ये बात हुवी इस्लाम से। अब आप सुनो दुनिया के लायक बात जब औरत बेपर्दा बाज़ारो मैं गुमती है जब आपको पर्दे का ख्याल नही आता क्या? जब आप उसे अपनी बाइक पर बैठा कर गुमाते है तब आपको पर्दे के ख्याल नही आता क्या? जब अगर कोई साहब से पूछ लें तो साहब बोलते है ये मॉडर्न वक़्त है। जब ताज़ियादारी होती है तब इन्हें हदीस याद आती है कि बेपर्दा है। अबे जाहिलो ये बुग्ज़ है और कुछ नही। और सबसे बड़ी बात ऐसी बात करते हुवे मैने अक्सर उन लोगो को देखा है जो पूरी साल पर्दे का ख्याल तक नही रखते और मोहर्रम मैं उन्हें पर्दा याद आ जाता है।
  4. ताज़िया को दफनाना और कर्बला बनाना?
    जवाब: जिनके जिस्म मुबारख को जगह नही दी गई आज अल्लाह ने उनके नाम की कर्बला हर जगह कर दी। जिन्हें बहुत दिनों तक दफनाया नही गया अल्लाह ने उनकी ताज़ियत को हर साल दफनाया।
  5. ताज़िया शरीफ बनाना?
    जवाब: इस्लाम मे किसी का नक्शा बनाना जायज है शर्त है वो जानदार ना हो। भाई ताज़िया इमाम के रोज़े का नक्शा ही तो है। वो कैसे नाजायज हो सकता है। अब कुछ लोगों का दिमाग चलता है कि इमाम का रोज़ा मुबारख ऐसा थोड़ी है तो उन साहब से एक बात कहना चाहूंगा कि जब ताज़ियादारी शुरू हुवी तब इमाम का रोजा मुबारख ऐसा ही था। वक़्त के साथ वो तामीर हो गया। और वक़्त के साथ लोगो ने अपने अपने हिसाब से रोज़ा ए मुबारख का नक्शा बना लिया। जो बेशक जायज है बहुत लोगो के घरो मैं काबा शरीफ की तस्वीर है तो अदब के लायक है ना वैसे ही इमाम के रोज़े मुबारख का नक्शा भी अदब के लायक़ है।

Hadith 2165 Musnad Imam Ahmad..

Abdullah ibn Abbas Raziallahu anhu bayaan karte hai ki Ek din maine dopaher ke waqt Rasoolullah Sallallahu ta’ala wa’ala aale hi Wasallam ko (khwab me) dekha, (is haal me) ki Aap Sallallahu ta’ala wa’ala aale hi Wasallam ke baal mubarak bikhre hue, aur Aap Sallallahu ta’ala wa’ala aale hi Wasallam par gard lagi hui hai aur Aap Sallallahu ta’ala wa’ala aale hi Wasallam ke paas ek shishi hai, jisme khoon hai. Maine arz kiya: “Aye Allah ke Rasool Sallallahu ta’ala wa’ala aale hi Wasallam ! Ye kya maajra hai?”

Rasoolullah Sallallahu ta’ala wa’ala aale hi Wasallam ne irshad farmaya: “Ye Hussain aur unke sathiyo ka khoon hai jise mai aj subah se ikhatta kar raha hu.”

Ammaar (Tabayeen) ka bayan hai: “Hamne wo khwab wala din yaad rakha, aur fir (baad me) hamne tasdeek karli ki usi (61 Hijri me 10 Muharram ul Haraam ke) din wo (Hussain Alaihisalam maidaan e karbala) me qatl kiye gaye the.”

(Musnad Imam Ahmad, hadith-2165. Is hadees ko Shaykh Shuaib Arnaoot ne aur Shaykh Zubair Ali Zai ne Fazail e sahaba me sahih karar diya hai.)

हजरत जॉन शहीद ऐ करबला

हजरत जॉन शहीद ऐ करबला

इमाम हुसैन के साथ मदीने से 16 गुलाम भी आए थे जिसमे बहुत से इथोपिया के थे
कुछ का ताल्लुक इमाम के घराने से था कुछ इमाम के असहाबो के थे…
शब ऐ आशूर इमाम और उनके असहाब ने इन 16 गुलामों को आजाद दिया और चले जाने को कहा मगर कि नही गया. उनको इमाम का मकसद समझ आ गया था और जानते थे जन्नत में उनके लिए एक आला मुकाम है

उनमें से एक थे हजरत जॉन
जॉन को सहाबी ऐ रसूल जनाब अबू जर गफ्फारी ने तोहफे में मौला अली और बीबी फातिमा को दिया था.. मौला के साथ रहकर उन्होंने कुरान की तफसीर और रसूलल्लाह की हदीसे सीखी
जब मौला की शहादत हुई तो आप इमाम हसन के साथ रहे उनकी शहादत के बाद इमाम हुसैन के साथ जनाब ऐ जॉन कितने खुशनसीब थे की उन्हें 3 इमामों की सौबत नसीब हुई

शब ऐ आशूर जॉन की सारी रात अपनी तलवार को तेज़ करने और कुरान की तिलावत में गुजरी

रोज ऐ आशूर एक एक करके सब शहीद होते गए सबने बहुत शुजाअत और दिलेरी से जंग की.. इमाम अपने भाई अब्बास और बेटे अली अकबर के साथ मिलकर सबके लाशे खेमे में लाते…जब नमाज ऐ जुहर हो गई जनाबे जॉन इमाम के पास आए और हाथ बांधकर चुपचाप खड़े थे..
इमाम ने देखा और पूछा
जॉन! मेरे दोस्त जॉन! क्या बात है?
जॉन बोले मौला बहुत हुआ में और नही देख सकता बीबी फातिमा के बच्चो को मेरे सामने कत्ल होते नही देख सकता आका मुझको इजाज़त दें में भी रन में जाऊ..
मौला ने फरमाया जॉन तुम जईफ हो तुम जैसे जईफ पर जिहाद वाजिब नहीं में तुम्हे इजाजत नहीं दे सकता

जॉन को किसी भी तरह से इजाजत लेनी थी वो बोले

मौला में जानता हूं आप मुझको रन में क्यों नहीं जाने देते वो इसलिए ना क्योंकि में काला हूं और आप एक काले हब्शी गुलाम के खून को अहले बेत के खून ने नही मिलाना चाहते??

मौला को ये सुनकर बहुत हैरत हुई अपने फरमाया

जॉन मेरे दोस्त ऐसा मत कहो तुम जानते हो हम ऐसा नहीं सोचते ना हम ऐसा करते है

जाओ जॉन जाओ तुम्हारा अल्लाह हाफिज हो
इमाम ने खुद जॉन को तैयार किया और सवार किया और फरमाया फि अमानाल्लाह जॉन

जॉन खुदाई बहुत खुश थे की वो रन में जा रहे थे रास्ते में उनको रसूलल्लाह का ज़माना याद आ गया की केसे वो अपने नवासे हुसैन से मुहब्बत करते थे जब इमाम के खेल खेल में चोट लग जाती तो रसूल ऐ खुदा आपका ख्याल रखते
उन्हे वो दिन याद आया जब रसूल सजदे में थे और इमाम उनकी पुश्त पे चढ़े थे और उन्होंने जब तक सजदे से सर ना उठाया जब तक की इमाम खुद ना उतरे वो अपने नवासे को चोट नहीं लगने देना चाहते थे ये सब सोचकर जॉन की आंखे भर आई

जॉन मैदान में पहुंचे और यजीदियो से कहने लगे
मुझे देखो तुमने मुझे रसूल ऐ खुदा के साथ देखा है मुझे देखकर उनको याद करो तुम कहते हो वो पयंबर है तुम अपने आप को मुसलमान कहते हो क्या तुम्हे लगता है रसूलल्लाह की इस बात से खुश होंगे के तुम लोग उनके प्यारे नवासे को कत्ल करते हो?

हुसैन ने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है वो मासूम है उनको छोड़ दो और खुद को नार ऐ दौजक से बचा लो

यजीदी लईन थे वो असल में मुसलमान थे ही नहीं वो सच सुनने को तैयार नहीं थे
जनाबे जॉन पे हमला कर दिया गया हर तरफ से तीरों की बारिश होने लगी उन्होंने बहुत शूजाअत से जंग की कई को नार ऐ जहन्नम वासिल किया

अफसोस!!
एक 80 साल का जईफ 3 दिन का भूखा प्यासा केसे बर्दाश्त करता घोड़े से गिर गए और फरमाया

मौला मेरे पास आए में आपका आखरी बार दीदार करना चाहता हूं
इमाम भागते हुए जॉन के पास पहुंचे उसका सर अपनी गोद मे रखा और गिरया करने लगे

जॉन मुझे माफ करना तुम मेरे घर से 3 दिन के भूखे प्यासे जा रहे हो

जॉन ने फरमाया
मौला आप शर्मिंदा क्यों होते है आपने मेरे हक़ में बहुत बड़ा एहसान किया है मुझको आप पर निसार होने के लिए इजाजत देकर…
देखे कौन कौन आया है मुझे लेने के लिए खुद रसूलल्लाह आए है बीबी फातिमा मौला अली मौला हसन भी यही है
ये कहकर जनाब ऐ जॉन की रूह परवाज हो गई