शामे गरीबां

बाद शहादते इमाम हुसैन रजि अल्लाहु अन्हु जो दिल सोज़ रात करबला में आई उसी को शामे गरीबां कहते हैं।

करबला की धरती पर आशूरा के सूरज ने सुबह से शाम तक दुनिया का पहला और आखिरी खूरेज़ मझुका देखा और शर्म से सहम कर जल्द अज़ जल्द गुरूब होने लगा और उसके हल्के अन्धेरे में हज़रत सैय्यदा जैनब और जुमला अहले हरम गमगीन हो गये।

करबला के वहशतनाक सहरा में कहीं सर छुपाने तक की जगह ज़ालिमों ने न रखी। दिन रो-रो कर कटा, रात एक नई मुसीबत लेकर आई। मैदाने करबला में हर तरफ़ वहशत और दूर-दूर तक भयानक सन्नाटा तारी था दरिन्दों की ख़ौफ़नाक आवाजें बच्चों को निढाल किए जा रही थीं।

दूसरी तरफ आंखों के सामने मामता के जलते हुए दिए हमेशा-हमेशा के लिए बुझ चुके हैं। ज़मीने करबला पर जगह-जगह शुहदाए किराम के खून के धब्बे पड़े हैं। अब कोई सहारा नहीं बचा, ज़ालिमों की तमांचा खाई हुई निढाल सकीना अपनी यतीमी पर आंसू बहा रही हैं और हज़रत अली की शहज़ादियां हज़रत सैय्यदा जैनब और हज़रत सैय्यदा उम्मे कुल्सूम करबला की खाक पर अन्धेरे में बैठी रो रही हैं। गुर्बत की शाम कितनी भयानक होती है, इन मुसीबत ज़दह बीवियों से पूछो कल तक जिनका घर बच्चों से भरा था, भाई भतीजे और भांजे आंखों के सामने थे। आज वह रात है कि करबला की ज़मीन पर हर तरफ ताज़ा खून जमा हुआ है, करबला का वीरान सुनसान मैदान, रात का अन्धेरा, आबादियों का सैंकड़ों मील तक कोई नाम व निशान मौजूद नहीं।

हवा के झोंकों की सनसनाहट और दरिन्दों की खौफनाक आवाजें, उजड़ी हुई गोदी, खुले हुए सर, एक जली हुई कनात का पर्दा, बेगैर शामियाना के बीवियां सर झुकाए बैठी हैं। हज़रत सैय्यदा जैनब रजि अल्लाहु अन्हा एक मजूत चट्टान की तरह ज़मीने करबला पर खड़ी हुई। अब जैनब, जैनब भी और हुसैन भी हैं और फातिमा भी हैं।

कभी हुसैन कभी फातिमा कभी जैनब

जहां पे जैसी ज़रूरत थी बन गईं ज़ैनब

अब हज़रत इमाम हुसैन की सारी जिम्मेदारियां हजरत सैय्यदा जैनब ने अपने कन्धे पर उठा ली हज़रत जैनब रात में उठी हाथ में टूटा खंजर लिया और पहरा देने लगें। आधी रात के वक़्त करबला के सन्नाटे में जहां हर तरफ लाशें बिखरी हुई थीं इतने में किसी के सिसकने की आवाज़ आई। हज़रत जैनब और हज़रत कुल्सूम रज़ि अल्लाहु अन्हा ने क्या देखा कि हज़रत सकीना एक लाश पर पड़ी सिसक रही हैं। हज़रत सैय्यदा जैनब ने हजरत सैय्यदा सकीना को गोद में उठा लिया और पूछा बेटी किस की लाश पर तुम लेटी हुई थीं? हज़रत सकीना ने कहा बाबा के ऊपर। हज़रत जैनब ने पूछा कि बेटी तुम को कैसे मालूम कि यह तुम्हारे बाबा लेटे हैं? हज़रत सकीना ने कहा फूफी जब मैं बाबा, बाबा कह के आगे बढ़ी तो कहा बाबा कहां हो सकीना को तुम्हारे ऊपर लेटे बेगैर नींद नहीं आएगी? तो उसी कटे हुए जिस्म से आवाज़ आई ऐ बेटी इधर आओ। मैं समझ गई कि यही मेरे बाबा हैं।

इधर फौजे यज़ीद में शादियाने बज रहे थे। जब अश्किया गिजाए लज़ीज़ और खूब ठण्डा पानी पी कर सैराब हो चुके तो किसी ने पिसरे सद से कहा कि जो औरतें हज़रत इमाम हुसैन के हमराह आईं थीं अब उनका कोई वारिस नहीं है। उनके साथ छोटे-छोटे बच्चे हैं जो कई रोज़ से भूखे और प्यासे हैं कहीं ऐसा न हो कि वह हलाक हो जाएं, उनके लिए थोड़ा पानी भिजवा दें।

इस खिदमत के लिए हुर्र की बीवी को तैयार किया गया। हुर्र की बीवी आधी रात को एक मश्कीजा में पानी लेकर चली किसी को आते देख कर हज़रत सैय्यदा जैनब ने बढ़ कर डांटा कि ठहर जा तो उसने बताया कि में हुर्र की बीवी हूं। आपके बच्चों के लिए खाना और ठण्डा पानी लाई हूं। यह सुन कर हज़रत जैनब रोने लगी और फरमाया बहन तेरी मुहब्बत का शुक्रिया देख जिसके भाई, भतीजे और बेटे आंखों के सामने पानी मांगते हुए ज़िबह कर दिए गये, वह पानी कैसे पी सकते हैं। यह पानी वापस ले जा। हुर्र की बीवी कदमों में गिर पड़ी और बेहद मजबूर कर देने पर ख़स्ता दिल ज़ैनब ने एक कूज़ह में पानी लिया और सबसे पहले अपने भाई की नन्हीं सकीना को जगाया और कहा मेरे लाल उठो और पानी पी लो। पानी का नाम सुनते ही सकीना ने आंखें खोल दी और उठ कर बैठ गईं। और घबरा कर पूछा कि फूफी यह कैसा पानी है क्या चचा जान दरिया से वापस आ गये हैं? हज़रत जैनब ने कहा बेटी वह तो दरिया पर सो रहे हैं यह पानी हुर्र की बीवी दे गईं हैं। नन्हीं सकीना ने गौर से फूफी का चेहरा देखा और पूछा कि फूफी आपने पानी पी लिया है? हजरत सैय्यदा जैनब ने भतीजी को सीने से चिमटा लिया और कहा मेरे लाल तमु सबसे छोटी हो पहले तुम पी लो फिर हम पी लेंगे। बस यह सुनना था कि हज़रत सकीना ने फूफी के हाथ से प्याला ले लिया और नन्हें-नन्हें पैरों से मक़्तल की तरफ़ बेतहाशा दौड़ पड़ीं। हज़रत सैय्यदा जैनब ने आवाज़ दी बेटी सकीना कहां जा रही हो इधर आओ सैय्यदा सकीना ने मुड़ कर फूफी को देखा और कहा फूफी जान आपने ही तो कहा है कि तुम सबसे छोटी हो, पहले तुम पी लो। अरे मुझ से छोटा मेरा भैया अली असगर है और वह मुझ से ज़्यादा प्यासा है। पहले मेरा प्यासा भैया पानी पी लेगा फिर मैं पानी पियूँगी। यह सुन कर सारी बीवियां रोने लगी और हज़रत सैय्यदा जैनब ने सैय्यदा सकीना को सीने से लगा लिया। करबला के सुनसान

वीराने में अहले हरम ने न मालूम रात कैसे काटी, अहले बैत की पहाड़ जैसी रात बेबसी में तमाम हो गई।

रात गुज़र गई, जब आधी रात का वक़्त हुआ, जनाब ज़ैनब ने देखा कि रात की तारीकी में एक सवार चला आ रहा है और इसी तरफ़ बढ़ रहा है। जैनब परेशान हो गई और फरमाया ऐ सवार! इस तरफ़ का इरादा न करना। हमारे बच्चे अभी-अभी सोए हैं। लूटना है तो दिन के उजाले में लूट लेना। अब बचा ही क्या है तुम तो सब लूट चुके हो, अब क्या लूटोगें जब सवार न रुका तो हैदरे कर्रार की बेटी को जलाल आ गया पुकार कर कहा खबरदार अब आगे न बढ़ना तुझे ख़बर नहीं कि मैं शेरे खुदा की बेटी हूं। अभी शेरे ख़ुदा को पुकारूंगी। सवार और आगे आया। जैनब ने बढ़ कर घोड़े की लगाम को पकड़ लिया और फरमाया ख़बरदार जो आगे बढ़ा। सवार ने नकाब उठाई कहा जैनब बेटी तुमने पहचाना नहीं मैं तेरी मदद को आया हूं ज़ैनब की नज़र शेरे खुदा अली मुर्तज़ा पर पड़ी, चिमट कर रोने लगीं कहा बाबा अब आप मदद को आए हैं जब पूरा ख़ानदान क़त्ल कर दिया गया, आप न आए। आपका प्यारा हुसैन ज़िबह हुआ आप न आए। फरमाया बेटी यह सब का इम्तिहान था अगर मैं हाथ बटा देता तो कोई यज़ीदी बच के न जाता। तुम लोग फेल हो जाते अब तुम पास हो गये।

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हुजूर नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का लोगों को अहले बैत की मुहब्बत पर उभारने का बयान

तरजमा : हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्बास रजि अल्लाहु अन्हुमा बयान करते हैं कि हुजूर नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : अल्लाह तआला से मुहब्बत करो उन नेमतों की वजह से जो उसने तुम्हें अता फरमाई और मुझ से मुहब्बत करो अल्लाह की मुहब्बत के सबब और मेरे अहले बैत से मेरी मुहब्बत की खातिर मुहब्बत करो। इस हदीस को इमाम तिर्मिजी और हाकिम ने रिवायत किया नीज़ इमाम तिर्मिज़ी ने फरमाया कि यह हदीस हसन है।

तरजमा : हज़रत अब्बास रज़ि अल्लाहु अन्हु बयान फरमाते हैं कि हम जब कुरैश की जमाअत से मिलते और वह बाहम गुफ्तगू कर रहे होते तो गुफ़्तगू रोक देते हमने हुजूर नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की बारगाह में इस अम्र की शिकायत की तो आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : लोगों को क्या हो गया है जब मेरे अहले बैत से किसी को देखते हैं तो गुफ्तगू रोक देते हैं? अल्लाह रब्बुल-इज्जत की कसम! किसी शख़्स के दिल में उस वक़्त तक ईमान दाखिल नहीं होगा जब तक उन से अल्लाह तआला के लिए और मेरे कराबत की वजह से मुहब्बत न करे। उसे इमाम इने माजा और हाकिम ने रिवायत किया है।

तरजमा : हज़रत अब्बास बिन अब्दुल-मुत्तलिब रज़ि अल्लाहु अन्हुमा से मरवी है कि मैंने बारगाहे रिसालत सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम में अर्ज़ किया : या रसूलुल्लाह! कुरैश जब आपस में मिलते हैं तो हसीन मुस्कुराते चेहरों से मिलते हैं और जब हम से मिलते हैं तो ऐसे चेहरों से मिलते हैं जिन्हें हम नहीं जानते (यानी जज़्बात से आरी चेहरों के साथ) हज़रत अब्बास फरमाते हैं : हुजूर नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैहि व

सल्लम यह सुन कर शदीद जलाल में आ गये और फरमाया : उस जात की कसम! जिसके कब्ज़-ए-कुदरत में मेरी जान है किसी भी शख्स के दिल में उस वक़्त तक ईमान दाखिल नहीं हो सकता जब तक अल्लाह तआला और उसके रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम और मेरी क़राबत की खातिर तुम से मुहब्बत न करे। इसे इमाम अहमद, निसई, हाकिम और बज़्ज़ार ने रिवायत किया है।

एक रिवायत में है कि फरमाया : खुदा की कसम किसी शख्स के दिल में उस वक्त तक ईमान दाखिल न होगा जब तक कि वह अल्लाह तआला और मेरी कराबत की वजह से तुम से मुहब्बत न करे।

तरजमा : हज़रत अबू सईद खुद्री रज़ि’ अल्लाहु अन्हु बयान करते हैं कि मैंने हुजूर नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को मिंबर पर फरमाते हुए सुना उन लोगों का क्या होगा जो यह कहते हैं कि हुजूर नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से नसबी तअल्लुक क़यामत के रोज़ उनकी कौम को कोई फाइदा नहीं देगा। क्यों नहीं! अल्लाह की कसम बेशक मेरा नसबी तअल्लुक दुनिया व आख़िरत में आपस में बाहम मिला हुआ है और ऐ लोगो! बेशक (क्यामत के रोज़) मैं तुम से पहले हौज़ पर मौजूद हूंगा पस जब तुम आ गये तो एक आदमी कहेगा या रसूलुल्लाह! मैं फुलां बिन फुलां हूं पस हुजूर नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : उसका फुलां बिन फुलां कहना पाय-ए-सुबूत को पहुंचेगा और रहा सब तो तहकीक उसकी पहचान मने तुम्हें करा दी है लेकिन मेरे बाद तुम अहदास करोगे और उलटे पांव फिर जाओगे। इस हदीस को इमाम अहमद बिन हंबल और इमाम हाकिम ने रिवायत किया है।

तरजमा : हज़रत अबू हुरैरह रज़ि अल्लाहु अन्हु बयान करते हैं कि हुजूर नबी अकरम सल्लल्लाह अलैहि व सल्लम ने फरमाया : तुम में से

बेहतरीन वह है जो मेरे बाद मेरी अहल के लिए बेहतरीन है। इस हदीस को इमाम हाकिम और इमाम अबू यअला ने बयान किया है।

तरजमा : हज़रत अब्दुर्रहमान बिन औफ रजि अल्लाहु अन्हु बयान करते हैं कि हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने मक्का फतह किया फिर तायफ का रुख किया और उसका आठ या सात दिन मुहासरा किए रखा फिर सुबह व शाम के वक़्त उसमें दाखिल हो गये फिर पड़ाव किया फिर हिजरत फरमाई : ऐ लोगो! बेशक मैं तुम्हारे लिए तुम से पहले हौज़ पर मौजूद हूंगा और बेशक मैं तुम्हें अपनी इतरत के साथ नेकी की वसीयत करता हूं और बेशक तुम्हारा ठिकाना हौज़ होगा। सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम। इस हदीस को इमाम हाकिम ने रिवायत किया है और फरमाया कि यह हदीस सही है।

तरजमा : हज़रत ज़ैद बिन अरकम रज़ि अल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि हुजूर नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : ऐ लोगो! मैं तुम में दो चीजें छोड़ कर जाने वाला हूं और अगर तुम उनकी इत्तिबा करोगे तो कभी गुमराह नहीं होगे और वह दो चीजें किताबुल्लाह और मेरे अहले बैत हैं। फिर आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : क्या तुम जानते हो मैं मुमिनीन की जानों से बढ़ कर उनको अज़ीज़ हूं। आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने ऐसा तीन मरतबा फरमाया। सहाब-ए-किराम ने अर्ज़ किया : हां या रसूलुल्लाह! तो हुजूर नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : जिसका मैं मौला हूं अली भी उसका मौला है। इस हदीस को इमाम हाकिम ने रिवायत किया है और कहा कि यह हदीस सही है।

तरजमा : हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्बास रज़ि अल्लाहु अन्हुमा से मरवी है कि जब यह आयत कुल ला अस्अलुकुम अलैहि अजरन इल्लल-मवद्दतु फिल-कुरबा। नाजिल हुई तो सहाबा किराम ने अर्ज किया या रसूलुल्लाह! आपकी कराबत कौन हैं जिनकी मुहब्बत हम पर

वाजिब है? तो आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : अली, फातिमा और उनके दो बेटे (हसन व हुसैन)। इस हदीस को इमाम तबरानी ने रिवायत किया है।

तरजमा : हज़रत जैद बिन अरकम रज़ि अल्लाहु अन्हु एक तवील रिवायत में बयान करते हैं कि हुजूर नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : पस यह देखो कि तुम दो भारी चीज़ों में मुझे कैसे बाकी रखते हो। पस एक निदा देने वाले ने निदा दी या रसूलुल्लाह! वह दो भारी चीजें क्या हैं? आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : अल्लाह तआला की किताब जिसका एक किनारा अल्लाह के हाथ में और दूसरा किनारा तुम्हारे हाथों में है पस अगर तुम उसे मज़बूती से थामे रहो तो कभी भी गुमराह नहीं होगे और दूसरी चीज़ मेरी इतरत है और बेशक इस लतीफे ख़बीर रब ने मुझे खबर दी है कि यह दोनों चीजें कभी भी जुदा नहीं होंगी यहां तक कि यह मेरे पास हौज़ पर हाज़िर होंगी और ऐसा उनके लिए मैंने अपने रब से मांगा है। पस लोगो तुम उन पर पेश क़दमी न करो कि हलाक हो जाओ और न ही उन से पीछे रहो कि हलाक हो जाओ और न उनको सिखाओ क्योंकि यह तुम से ज़्यादा जानते हैं फिर आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने हज़रत अली रजि अल्लाहु अन्हु का हाथ पकड़ लिया और फरमाया : पस में जिसकी जान से बढ़ कर उसे अज़ीज़ हूं तो यह अली उसका मौला है ऐ अल्लाह! जो अली को अपना दोस्त रखता है तू उसे अपना दोस्त रख और अली से अदावत रखता है तू उस से अदावत रख। इस हदीस को इमाम तबरानी ने रिवायत किया है।

Hadith Tamam Qatileen Jahannam

Hazrat Aamir bin Saad al Bajali Bayan Karte Hain ke Jab Imam Hussain bin Ali (عليهم الصلاة والسلام) ko Shaheed Kiya Gaya to Maine RasoolAllah (صلى الله عليه وآله وسلم)‎ ko Khwab Mein Dekha. Aap (صلى الله عليه وآله وسلم)‎ ne Farmaya:
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“Agar Tum Bara bin Aazib ko Dekho to Usey Meri Taraf se Salam Dena Aur Batana ke Hussain bin Ali (عليهم الصلاة والسلام) ke Tamam Qatileen Jahannam Mein Jayenge, Aur Kareeb tha ke Allah Ta’ala tamam Ahle Zameen ko Hussain (عليه السلام) ki (Shahadat) ki Wajah se Dardnaak Azaab Mein Mubtala Kardeta.” (Allahu Akbar 😭 💔)
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Bayan Karte Hain ke Maine Hazrat Bara RadiAllahu Anhu ke paas Aakar Unhe Bataya.
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To Unhone Kaha: RasoolAllah (صلى الله عليه وآله وسلم)‎ ne Sach Farmaya Hai.
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RasoolAllah (صلى الله عليه وآله وسلم)‎ ne Farmaya: “Jisne Mujhe Khwab me Dekha, Usne Mujhe He Dekha Kyunki Shaytan Meri Surat ikhteyar Nahi Karsakta.”
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Reference :
-Ruyaani, Musnad, 1/291, Hadees no. 435
-Ibne Asakir, Tarikh e Madina ad Damishq, 14/258
-Mizzi, Tahzib ul Kamaal, 6/446
-Ibne Abi Juradah, Bagaital Talab,6/2644
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اَللّٰھُمَّ صَلِّ عَلَی سَیِّدِنَا مُحَمَّدٍ وَ عَلَی اٰلِ سَیِّدِنَا مُحَمَّدٍ وَ بَارِکْ وَ س٘لِّمْ