एक फ़िक्र अंगेज़ और सबक़ आमोज़ वाक़िया 2 पराठे

एक फ़िक्र अंगेज़ और सबक़ आमोज़ वाक़िया 👇

अबू नस्र नामी एक शख़्स अपनी बीवी और एक बच्चे के साथ गरीबी की ज़िंदगी बसर कर रहा था ।

एक दिन वो अपनी बीवी और बच्चे को भूक से निढाल और बिलकता रोता घर में छोड़कर ख़ुद ग़मों से चूर कहीं जा रहा था कि राह चलते उस का सामना एक आलिम ए दीन हज़रत अहमद बिन मिस्कीन से हुआ ।

जिसे देखते ही अबू नस्र ने कहा;
ए शेख़ मैं दुखों का मारा हूँ, और ग़मों से थक गया हूँ ।

शेख़ ने कहा मेरे पीछे चले आओ,
हम दोनों समुंदर पर चलते हैं ।
समुंदर पर पहुंच कर शैख़-साहब ने उसे दो रकअत नफ़ल नमाज़ पढ़ने को कहा ।

नमाज़ पढ़ चुका तो उसे एक जाल देते हुए कहा इसे बिस्मिल्लाह पढ़ कर समुन्दर में फेंक दो,
जाल में पहली बार ही एक बड़ी अज़ीम मछली फंस कर बाहर आ गई ।

शैख़-साहब ने अबू नस्र से कहा इस मछली को जा कर फ़रोख़त(sale) करो और
हासिल होने वाले पैसों से अपने घर वालो के लिए कुछ खाने पीने का सामान ख़रीद लेना ।

अबू नस्र ने शहर जा कर मछली फ़रोख़त की,
हासिल होने वाले पैसों से एक क़ीमे वाला और एक मीठा पराठा ख़रीदा और सीधा शेख़ अहमद बिन मिस्कीन के पास गया
और कहा कि हज़रत इन पराठों में से कुछ क़बूल कीजिए ।

“शैख़-साहब ने कहा’
“अगर तुमने अपने खाने के लिए जाल फेंका होता तो किसी मछली ने नहीं फँसना था,
ओर मैंने तुम्हारे साथ नेकी गोया अपनी भलाई के लिए की थी ना कि किसी मज़्दूरी के लिए ।

तुम ये पराठे लेकर जाओ और
अपने घर वालो को खिलाओ ।

अबू नस्र पराठे लिए ख़ुशी ख़ुशी अपने घर की तरफ़ जा रहा था कि
उसे ने रास्ते में भूक से मारी एक औरत को रोते देखा, जिसके पास ही उसका बेहाल बेटा भी बैठा था ।

अबू नस्र ने अपने हाथों में पकड़े हुए पराठों को देखा और अपने आपसे कहा कि:
_इस औरत और इस के बच्चे और मेरे अपने बच्चे और बीवी मैं क्या फ़र्क़ है ?
मुआमला तो एक जैसा ही है
वो भी भूके हैं और ये भी भूके हैं
पराठे किन को दूं?

औरत की आँखों की तरफ़ देखा तो उस के बहते आँसू ना देख सका
और अपना सर झुका लिया,
पराठे औरत की तरफ़ बढ़ाते हुए कहा ये लो;
ख़ुद भी खाओ और अपने बेटे को भी खिलाओ,
औरत के चहरे पर खुशी, ओर उसके बेटे के चेहरे पर मुस्कुराहट फ़ैल गई ।

अबु नस्र ग़मगीन दिल लिए वापस अपने घर की तरफ़ ये सोचते हुए चल दिया कि अपने भूके बीवी बेटे का कैसे सामना करेगा?

घर जाते हुए रास्ते में इस ने एक ऐलान करने वाला देखा जो कह रहा था;
है कोई जो उसे अबू नस्र से मिला दे
लोगों ने उस से कहा:
ये देखो यही तो है अबू नस्र

उसने अबु नस्र से कहा;
तेरे बाप ने मेरे पास आज से बीस साल पहले तीस हज़ार दिरहम अमानत रखे थे
मगर ये नहीं बताया था कि इन पैसों का करना कया है?
जब से तेरा वालिद फ़ौत हुआ है
मैं तुझे ढूंढता फिर रहा हूँ कि कोई मेरी मुलाक़ात तुझसे करा दे ।

आज मैंने तुम्हें पा ही लिया है तो ये लो तीस हज़ार(30,000) दिरहम
ये तेरे बाप का माल है ।

अबु नस्र कहता है;
मैं बैठे बिठाए अमीर हो गया,
मेरे कई घर बने और मेरा कारोबार फ़ैलता चला गया ।
मैंने कभी भी अल्लाह के नाम पर देने में कंजूसी नहीं की
एक ही बार में शुक्राने के तौर पर हज़ार हज़ार(1000) दिरहम सदक़ा दे दिया करता था ।

मुझे अपने आप पर रश्क आता था कि अल्लाह पाक की फ़ज़ल व अता से कैसे फ़राख़दिली से सदक़ा ख़ैरात करने वाला बन गया हूँ ।

एक-बार मैंने ख्वाब देखा कि हिसाब किताब का दिन आ पहुंचा है,
और मैदान में तराज़ू नसब कर दिया गया है।
ऐलान करने वाले ने आवाज़ दी
अबु नस्र को लाया जाये और उसके गुनाह-ओ-सवाब तोले जाएं
कहता है;
पलड़े में एक तरफ़ मेरी नेकियां और दूसरी तरफ़ मेरे गुनाह रखे गए
तो गुनाहों का पलड़ा भारी था ।

मैंने पूछा आख़िर कहाँ गए मेरे सदक़ात जो मैं अल्लाह की राह में देता रहा था?
तौलने वालों ने मेरे
सदक़ात नेकियों के पलड़े में रख दिए
हर हज़ार, हज़ार दिरहम के सदक़ा के नीचे
नफ़स की शहवत, मेरी ख़ुद-नुमाई की ख़ाहिश और रिया कारी का रंग चढ़ा हुआ था,
जिसने इन सदक़ात को रुइ से भी ज़्यादा हल्का बना दिया था ।

मेरे गुनाहों का पलड़ा अभी भी भारी था ।
मैं रो पड़ा और कहा हाय रे मेरी नजात कैसे होगी?
ऐलान करने वाले ने मेरी बात को सुना तो फिर पूछा;
है कोई बाक़ी उस का अमल तो ले आओ.

मैंने सुना के एक फ़रिश्ता कह रहा था हाँ,
उस के दिए हुए दो पराठे हैं जो अभी तक मीज़ान में नहीं रखे गए,
वो दो पराठे तराज़ू पर रखे गए तो नेकियों का पलड़ा उठा ज़रूर मगर अभी ना तो बराबर था और ना ही ज़्यादा ।

ऐलान करने वाले ने फिर पूछा;
है इसका और कोई अमल?

फ़रिश्ते ने जवाब दिया हाँ उस के लिए अभी कुछ बाक़ी है
ऐलान करने वाले ने पूछा वो क्या ?
कहा उस औरत के आँसू जिसे इसने अपने दो पराठे दिए थे
औरत के आँसू नेकियों के पलड़े में डाले गए,
जिनके पहाड़ जैसे वज़न ने तराज़ू के नेकियों वाले पलड़े को गुनाहों के पलड़े के बराबर ला कर खड़ा कर दिया ।

अबु नस्र कहता है मेरा दिल ख़ुश हुआ कि अब नजात हो जाएगी ।

ऐलान करने वाले ने पूछा है कोई और बाक़ी अमल इसका?

फ़रिश्ते ने कहा;
हाँ, अभी उस बच्चे की मुस्कराहट को पलड़े में रखना बाक़ी है जो पराठे लेते हुए उस के चेहरे पर आई थी
मुस्कुराहट को पलड़े में रखी गई नेकियों वाला पलड़ा भारी से भारी होता चला गया ।

ऐलान करने वला बोल उठा
ये शख़्स नजात पा गया है
अबु नस्र कहता है;
मेरी नींद से आँख खुल गई और मैंने अपने आपसे कहा;
ए अबु नस्र आज तुझे तेरे बड़े बड़े सदक़ों ने नहीं बल्कि
आज तुझे तेरे 2 पराठो ने बचा लिया ।

प्यारे दोस्तों ।
अल्लाह का फ़ज़लो करम और मुस्तफ़ा जान-ए-रहमतﷺ के फ़ैज़ान ने अगर आपको अमीर दौलत मंद कर दिया है
तो ख़ुदारा ख़ुलूस के साथ अपनी दौलत का सही इस्तिमाल करें ।

आपके माल व दोलत पर अगर आपका, आपके अहल-ए-ख़ाना, आपके रिश्तेदारो का हक़ है तो उसी दौलत पर गरीबो का भी हक़ है ।
( अल्लाह पाक इरशाद फ़रमाता है وَ فِیْۤ اَمْوَالِهِمْ حَقٌّ لِّلسَّآىٕلِ وَ الْمَحْرُوْمِ )

लिहाज़ा बग़ैर शौहरत व नामवरी और बग़ैर सेल्फी के,
हक़दार को उसका हक़ दें ।
ताकि किसी की इज़्ज़त-ए-नफ़स मजरूह ना हो और
रब की बारगाह मे ये नेकी मक़बूल हो ।

मेरे भाई
ये नाज़ुक तरीन वक़्त इम्तिहान का है ।

ग़रीबों की ग़ुर्बत व सब्र का इम्तिहान ।

अमीरों मालदारो के ख़ुलूस व सख़ावत का इमतिहान ।

आख़िर में ऐक छोटी सी दरख़ास्त

पढ़ने के बाद इसे दुसरों तक ज़रूर पहुंचा दें ताकि कोई और भी फ़ायदा उठा सके ।

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