हुज़ूर का निकाह हज़रत अबु तालिब अलैहि सलाम ने पढ़ाया और महेर भी ख़ुद ही अदा किया
इमाम जौज़ी ने रिवायत किया
इमाम बदरुद्दीन हल्बी ने रिवायत किया
शैख़ अब्दुल हक़ मुहद्दिस देहलवी ने रिवायत किया
इमाम सुहैली ने रिवायत किया
अल्लामा ज़हनी दहलान ने रिवायत किया
अल्लामा इब्ने ख़ल्दून ने रिवायत किया
और भी दीगर मुहद्दिसीन ने रिवायत किया और इसमें कोई इख़्तिलाफ़ भी नही है के
आक़ा सल्लल्लाहो अलैहे वा आलेही वा सल्लम का निकाह हज़रत अबु तालिब ने सय्यदा खदिजतुल कुबरा सलामुल्लाह अलैहा से पढ़ाया
निकाह का ख़ुत्बा हज़रते अबु तालिब ने ख़ुद पढ़ा
और जो महेर मुक़र्रर हुआ 12 औकिया और 20 ऊँटनियों का ये महेर भी हज़रते अबु तालिब ने ख़ुद अपनी जेब से अदा किया
ग़ौर तलब बात ये भी है कि
जब हज़रत आदम अलैहिस्सलाम का निकाह हज़रते हव्वा से हुआ तो महेर की अदायगी के लिए अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने हज़रत आदम अलैहिस्सलाम को हुक्म दिया की मेरे हबीब पर दुरूद पढ़ो यही तुम्हारा महेर है
लोगों ज़रा दयानत से सोचो
ठंडी तबियत से सोचो
हज़रते आदम का निकाह हो तो महेर मुस्तफ़ा पे दुरूद का रखा जाये अल्लाह को इसके सिवा कोई महेर गवारा नही क्योकि इसी सल्ब से नबियों को आना है
और जब मुस्तफ़ा का निकाह हो तो महेर माज़अल्लाह किसी काफ़िर की जेब से क़ुबूल कर लिया जाये ?????
शर्म नही आती तुम्हे ऐसा अक़ीदा रखते हुए
हज़रते अबु तालिब अलैहिस्सलाम ने सिर्फ़ निकाह का ख़ुत्बा ही नही पढ़ा
बल्कि मुस्तफ़ा की तरफ़ से महेर भी ख़ुद अदा किया
हज़रते सय्यदा ख़दिजतुल कुबरा सलामुल्लाह अलैह मेरे आक़ा की पहली रफ़ीक़े हयात
ताजदारे कायनात सल्लल्लाहो अलैहे वा आलेही वा सल्लम की सारी औलाद की माँ है
अरे ये सय्यदा फ़ातिमा सलामुल्लाह अलैहा की माँ है
हसनैन करीमैन की नानी हैं
हुज़ूर हमेशा सय्यदा ख़दिजतुल कुबरा को याद किया करते थे
अल्लाह को कैसे गवारा होगा की किसी काफ़िर से अपने हबीब सय्यदुल अम्बिया के निकाह का ख़ुत्बा पढ़ाये और महेर भी अदा कराए
फिर सोचो
आदम अलैहिस्सलाम का महेर मुस्तफ़ा पर दुरूद पढ़ना
और मुस्तफ़ा का महेर कोई काफ़िर अदा करे ??? ताज्जुब की बात है
नही हरगिज़ ऐसा नही ये अक़ीदा दुरुस्त नही
ये अज़्मते मुस्तफ़ा का मामला है ज़रा सोच सम्भल कर बात करो होश के नाख़ून लो
हम वो जमाअत हैं जो हुज़ूर की नालैन शरीफ़ का भी अदब ओ एहतेराम करते हैं उसे कभी हम सिर्फ़ जूता नही कहते
क्या हो गया उन लोगों को जो कलमा नबी का पढ़ते है और ऐसे ऐतराज़ भी करते है
दावत ए तौहीद हज़रते अबु तालिब के घर से दी गयी
इश्आत ए इस्लाम हज़रते अबु तालिब के घर से हुई
इस्लाम की इब्तेदा पहली दावत पहली मजलिस हज़रते अबु तालिब के घर से हुई
और जब इस्लाम के तहफ़्फ़ुज़ के लिए ख़ून बहाना हुआ तो इसी घर ने कुर्बानियां पेश की
जिसमे 6 माह का मासूम भी शामिल है और
56 साल का ताजदार भी
अल्लाहुम्मा सल्लेअला मुहम्मद वा आले मुहम्मद।

