
करामात ए सरकार मख़दूम हुसामुद्दीन मानिकपुरी (रह०)
सदात आफहनी खानदान के एक शख़्स जिनका नाम सैय्यद ख़ां था ये सरकार मख़दूम हुसामुद्दीन मानिकपुरी (रह०) के मुरीद व ख़लीफा थे जो कस्बा कड़ा के मौजा मंड़वा में रहते थे ।
आपको मूसा और ईसा नाम के शक्स बहुत तकलीफ़ देते थे ।
जब ज़ुल्म हद से गुजर गया तो सैय्यद ख़ां अपने पीर ओ मुर्शीद की खिदमत में हाज़िर हुए और अपने ऊपर होने वाले ज़ुल्म सितम के बारे में अपने पीर ओ मुर्शीद को बताया ।
सरकार मख़दूम हुसामुद्दीन (रह०) अपने मुरीद का ये हाल देख कर जलाल में आ गए और फरमाया :
शेअर
“मूसा दहर घूंसा ,ईसा दहर पिसा ”
चुनंचे मूसा को हाथी ने अपने पैरों तले रौंद दिया और ईसा एक दीवार के नीचे दबकर मर गया ।
“सरकार मख़दूम हुसामुद्दीन मानिकपुरी (रह०)” की शान में जनाब अजमत रज़ा साहब द्वारा लिखीं गयी।
“मनकबत”
पूछते हो क्या भला रुतबा हुसामुद्दीन का
मर्तबा रब ने किया , ऊंचा हुसामुद्दीन का
आओ आओ राहें ‘इश्क़ ओ मार्फत’ में दोस्तों
रब तलाक जाता है ये, रस्ता हुसामुद्दीन का
‘क़ुतुब ए आलम’ पंडवी सरकार ने फ़रमा दिया
हश्र तक लहराएगा, झंडा हुसामुद्दीन का
‘शाह हुसाम ता कायम’ कह दिया जब पीर ने
फिर लगे चारों तरफ़ , नारा हुसामुद्दीन का
‘रौज़ा ए शाहे हुसामी’, है सनद इस बात की
इश्क़ का इक्सीर था, जलवा हुसामुद्दीन का
निसबते ख्वाजा की खुशबु,आती है हर फूल से
चिश्तिया है गुलिस्तां, सारा हुसामुद्दीन का
उर्स ए सरकारे हुसामी का नज़ारा देखिए
है करम का जोश पर, दरिया हुसामुद्दीन का
गर खुदा ‘रोज ए जज़ा’ पूछेगा, तू लाया है क्या
तो कहूंगा लाया हूं, ‘शाजरा’ हुसामुद्दीन का
कुछ ना कुछ ईनाम अज़मत मिल ही जाएगा हमें
सबके खातिर आम है टुकड़ा हुसामुद्दीन का
हज़रत शाह नईम अता (रह०) सलवनी ने सरकार मख़दूम हुसामुद्दीन मानिकपुरी (रह०) की शान में फ़रमाया।
शेअर (फारसी )
हुसामुद्दीन के उ शम्शीर ए दीन अस्त
ज़मीं ए दर गहिश ,चरख़ ए बरीं अस्त
जबीं फरसां नईम अस् सिदक के ई जां
बरा ए आशिकान क़िब्ला हमीं अस्त
हिंदी (अनुवाद )
हुसामुद्दीन दीन की तलवार हैं
इनकी दरगाह का मकाम आसमान जैसा बुलन्द हैं
ए नईम तू अपने सिर (मुहब्बत और अकीदत से)यहां झुका दे
क्यूंकि आशिकों का क़िब्ला यही है

