*ख़ारजीयत क्या है ये समझने की जरुरत है।*
ख़ारजीयत।
इस्लाम मे ख़ारजीयत हमेशा से मौजूद थी। ख़ारजीयत कहते किसे है ख़ारजी वो होते है जो हज़रत अली इब्ने अबू तालिब अलैहिस्लाम से बुग्ज़ रखते है। जिसने हज़रत अली इब्ने अबू तालिब अलैहिस्लाम को शहीद किया वो भी ख़ारजी ही था।
आज वो दौर आ गया है की अहलेसुन्नत वल जमात मे भी ख़ारजीयत शामिल हो रही है। जो कभी मुद्दा ही नही था उस मुद्दे को उठाया गया। ईमान ए अबू तालिब अलैहिस्लाम। इसकी वजह सिर्फ और सिर्फ यही है कि वो हज़रत मौला अली शेरे खुदा के वालिद है। बड़े बड़े आलिमो ने उन्हें मोहसिन ए इस्लाम का लक़ब दिया है। मगर कुछ खारजी लोगो ने कम इल्म वाली आवाम के दिमाग मे उनके ईमान पर सवाल डाल दिये। इसकी वजह ये भी है कि आवाम की नज़र मैं मोलवी से बड़ा कोई है ही नही। ये आवाम वो है जो जाने अनजाने मैं अपने ईमान से हाथ धो बैठते है। आवाम भी इतनी जाहिल है कि उन्हें ये भी नही पता कि कौन है हज़रत अबु तालिब अलैहिस्लाम बस ख़ारजी लोगो की बातो मैं आकर अपना ईमान खो रहे है। आवाम के लिए एक ही बात कहना चाहूंगा कि वो उन ख़ारजी लोगो से सवाल करे कि हुज़ूर का निकाह किसने पढ़ाया। हज़रत अबु तालिब अलैहिस्लाम के जनाजे को कंधा किसने लगाया। सबसे पहले हुज़ूर का वसीला देकर अल्लाह से दुआ किसने की। नबूवत के एलान के बाद सबसे पहली इस्लाम की दावत किसके घर मे हुई। ये सवाल आवाम को इन ख़ारजी लोगो से पूछना चाहिए। इन सब सवाल का जवाब हज़रत अबु तालिब अलैहिस्लाम है।
अब आप खुद सोचो उनके ईमान के बारे मे। ये जाहिल ख़ारजी लोग सिर्फ बुग्ज़ रखते है मौला अली इब्ने अबु तालिब अलैहिस्लाम से। ये कभी भी साफ साफ जाहिर नही करते बुग्ज़। ये सिर्फ इतना करते है जिस से हज़रत अली इब्ने अबु तालिब अलैहिस्लाम की शान कम कर सखे। इन जाहिलो को ये नही पता जिसे अल्लाह ने और हुज़ूर ने ऊंचा कर दिया उसे तुम कैसे झुका सकते हो।
आज जो मुस्लिम परेशान है उसका कारण ये भी है कि उन्होंने अहलेबैत की मोहब्बत से मुँह फेर लिया। कुछ लोग इश्क़ ए मुस्तफा का नारा लगाते है और दिल मे बुग्ज़ ए अहलेबैत लेकर फिरते है जबकि उन जाहिलो को ये नही पता कि जिस तरह अल्लाह तक पहुचने के लिए हुज़ूर की मोहब्बत जरूरी है वैसे ही हुज़ूर तक पहुचने के लिए मोहब्बत ए अहलेबैत जरूरी है।
जो इनसे जुदा है वो खुदा से भी जुदा है
ईमान ए मुकम्मल की बस यही राह गुजर है।
सबसे बड़ी गलती आवाम कहा करती है?
आवाम इतनी जाहिल है कि वो किसी के दाढ़ी कुर्ता और कोई उसके नाम के आगे 3 या 4 टाइटल लगा दे तो आवाम देखती है इस से बड़ा कोई नही और आंख बंद करके उसके पीछे चलती है। जबकि वो उसका अक़ीदा ही नही देखते की ये कोन है और इसके दिल मे कही बुग्ज़ ए अहलेबैत अलैहिस्सलाम तो नही। आवाम को यही चाहिए उसे कही भी ये लगे कि किसी मौलवी के दिल मे बुग्ज़ ए अहलेबैत है तो उसे बाहर निकाल दो। क्योकि जिसके दिल मे बुग्ज़ ए अहलेबैत हो वो अपनी पूरी ज़िंदगी इबादत करता रहे तो भी वो जहन्नमी ही रहेगा।
अहलेबैत का बहुत बड़ा मकाम है। कोई भी वली जबतक वली नही बन सकता जबतक हज़रत मौला अली शेरे खुदा मोहर ना लगा दे।
यहाँ कुछ लोगो के दिमाग मे ये भी आता है कि वो आलिम है वो जो बोलेगे वो सही होगा और हुज़ूर की हदीस जो ओलमा के लिये है। वो इन जाहिल मोलवियों ने अपने ऊपर बना ली। *जबकि हकीक़त तो ये है कि जो हदीस ओलमा के लिए बयान की है वो दरअसल औलिया अल्लाह के लिये है। वो हदीस इन जाहिल मोलवियों के लिए नही है।* अब आप इस से अंदाजा लगाए की हुज़ूर की हदीस है कि मेरी उम्मत के ओलमा मुर्दे को ज़िन्दा कर देंगे। अब आप सोचो कि ये जकात खाने वाले मोलवी ये कर सकते है क्या? ओलमा औलिया अल्लाह के लिए है। जो बेशक मुर्दे को ज़िंदा कर सकते है।
मुहिब्बाने ए अहलेबैत।

