
*_बारगाह ए हजरत इमरान उर्फ़ अबू तालिबع_*
*_मे जनाब साइम चिश्ती साबरी र.अ.का कलाम_*
_सरापा दीन सरापा वफ़ा अबू तालिबع_
_रसूले पाकﷺ के मिदहत_
_सरा अबू तालिबع_
*_खुदाﷻ की पाक अमानत संभालने वाले_*
*_हिसारे साहे रिसालत बने अबू तालिबع_*
_खुदाﷻ के नूर के जलवों को लेके दामन मे_
_खुदाﷻ का दीन बचाते रहे अबू तालिबع_
*_रसूल ए पाकﷺ की रहमत नवाज़ ने आई_*
*_ज़बान ए इश्क से जब भी_*
*_कहे अबू तालिबع_*
_खुदाﷻ ने उनको फिरासत_
_भी दी बसीरत भी_
_अमल की शान बड़ाते रहे अबू तालिबع_
*_वो शैख वादीए बतहा अरब_*
*_का मर्दे गयूर_*
*_रईसे मक्का बड़ो से बड़े अबू तालिबع_*
_अज़ल से शाने रिसालत के वो मुसददिक़ थे_
_दलील बनके रिसालत.के थे अबू तालिबع_
*_गुलामी शाहे दो आलमﷺ_*
*_की रात दिन ऐसी_*
*_मिली किसी को ना तेरे_*
*_सिवा अबू तालिबع_*
_तवाफ़े खाना ए महबूब रात भर कर करना_
_अजी़म तर है ये पहरा तेरा अबू तालिबع_
*_तुम्हारे सुल्ब मे नूरे अलीع फ़िरोज़ाँ था_*
*_तुम्हीं हो महवते नूरे ख़ुदाﷻ अबू तालिबع_*
_तुम्हीं शजर हो समरदार बागे हासिम के_
_तुम्हीं से सजरा ए इतरत चला अबू तालिबع_
*_तुम्हारे अज़्म ने ज़ुलमत को सर निगूँ रख्खा_*
*_तुम्हारे ज़ोर से बातिल मिटा अबू तालिबع_*
_तुम्हारी गोद मे ईंमा की जान पलती रही_
_तुम्हारे घर से ही ईंमा मिला अबू तालिबع_
*_मिसाल इसकी यक़ीनन मुहाल है साइम_*
*_हुऐ हुज़ूरﷺ पे जैसे फ़िदा अबू तालिबع_*
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