Zikr e Khawaja Ameer khasroؒ

1. खुसरो पाती प्रेम की बिरला बांचे कोय!
वेद, कुरआन, पोथी पढ़े, प्रेम बिना का होय!!

2. खुसरो सरीर सराय है, क्यों सोवे सुख चैन!
कूच नगारा साँस का; बाजत है दिन रैन!!

3. संतों से निंदा करे, रखे पर नारी से हेत!
बेनर ऐसे जायँगे, जैसे रेही का खेत!!

4. सोना-लेने पीऊ गए, सूना कर गये देस!
सोना मिला न पीऊ फिरे, रूपा हो गये केस!!

5. खुसरो सोई पीर है, जो जानत पर पीर!
जो पर पीर न जानई, सो काफ़िर-बेपीर!!

6. मोह काहे मन में भरे, प्रेम पंथ को जाए!
चली बिलाई हज्ज को, नौ सो चूहे खाए!!

7. प्रीत करे सो ऐसी करे जा से मन पतियाए!
जने-जने की पीत से, तो जनम अकारत जाए!!

8. भक्ति करे ऐसी करे, जान सके न कोए!
जैसे मेहंदी पात में, रंग रही दबकाए!!

9. सिंह गमन-सतपुरुष वचन, कदली फले एक बार!
तिरिया-तेल-हमीर हठ, खुसरो चढ़े न दूजी बार!!

10. खुसरो और ‘पी’ एक हैं, पर देखन में दोय!
मन को मन से तोलिये, तो दो मन कबहूँ न होय!!

11. कागा-काको धन हरे; कोयल किसको देय!
मीठे वचन सुनाय के; जग-अपनो कर लेय!!

12. खुसरो दरिया प्रेम का सो उल्टी वाकी धार!
जो उबरा सो डूब गया; जो डूबा वो पार!!

ईमान ए हज़रते सैय्यदना अबु तालिब रजिअल्लाह त्आला अन्हो व अलैहिमुस्सलाम

ईमान ए हज़रते सैय्यदना अबु तालिब रजिअल्लाह त्आला अन्हो व अलैहिमुस्सलाम

हज़रते सैय्यदना अबु तालिब रजिअल्लाह त्आला अन्हो व अलैहिस्सलाम की जाते मुबारक इस्लामी तारीख़ में एक ऐसी शख्सियत रही है जिस पर हर दौर में बहस भी हुई हैं और इख्तिलाफ़ भी रहा है। किसी ने हज़रत अबु तालिब को मोमिन माना, किसी ने माजअल्लाह काफिर तक कहा लेकिन हैरानी की बात तो ये है कि कोई भी हज़रते सैय्यदना अबु तालिब के एहसान और मर्तबे को झुठला ना सका।

जी हाँ मेरे भाईयो जिन्होंने सरकार सैयदना अबु तालिब रजिअल्लाह त्आला अन्हो व अलैहिस्सलाम को काफ़िर भी कहा, उन्होंने खुद भी हमेशा हज़रत अबु तालिब की तारीफ़ ही की क्योंकि ना वह हज़रत अबु तालिब में कमी ढूँढ पाए, ना कोई बद अमल और ना ही कुफ्र।

हज़रते सैय्यदना अबु तालिब अलैहिस्सलाम को मैं मोहम्मद अली हैदरी अल्हम्दुलिल्लाह मोमेन ईमान पर मानता हूँ और उनके ईमान पर होने की दलील के लिए बस इतना काफी है कि उन्होंने फरमाया था कि “मैं मोहम्मद सल्लल्लाहो त्आला अलैहि व आलेही वसल्लम के ईमान को, सारी कायनात के सारे मज़हबों के ईमानों में सबसे सही मानता हूँ।

एक बात बताई जाती है कि हदीसों में आता है कि हज़रते सैय्यदना अबु तालिब से, आखिरी वक्त में रसूलुल्लाह ने फरमाया था कि मेरे कान में ही कलमा पढ़ दो तो आप हज़रत ने जवाब दिया कि मेरे लिए मेरे बाबा हज़रते सैय्यदना अब्दुल मुत्तलिब रजिअल्लाह त्आला अन्हो का दीन ही सही है, मैं अपने बाबा के दीन पर ही हूं, कुछ ने लिखा है कि आपने ये भी कहा कि मैं नहीं चाहता कि लोग कहें कि मौत के डर से कलमा पढ़ लिया, कुछ लोग ये भी बयान करते हैं कि कुरैश के लोगों ने उन्हें ये कहकर रोक दिया कि क्या आखिरी वक्त में अपने बाबा के दीन से फिर जाओगे वगैरह।

यहाँ दो बात समझने लायक हैं जिनमें से एक बात तो किसी दलील की भी मोहताज़ नहीं वह ये कि अगर कहीं भीड़ हो और मैं किसी से कहूँ कि आप सबके सामने नहीं कह सकते अगर तो मेरे कान में ही कह दें, इसका मतलब है कि मैं औरों से उस बात का पर्दा करना चाहता हूँ, इसका सीधा मतलब ये है कि मैं बात बस अपने और कहने वाले तक रखना चाहता हूँ। अब जब बात रसूलुल्लाह सल्लललाहो त्आला अलैहि व आलेही वसल्लम की हो तो कौन ये सोचता है कि रसूलुल्लाह ﷺ कान में क्या कहा ये सबको बता देंगे ?.

बाकि हदीसों की किताब में ये दलील भी मिलती है कि इब्ने अब्बास रजिअल्लाह त्आला अन्हो ने दावा किया की मैंने हज़रते सैय्यदना अबु तालिब रजिअल्लाह त्आला अन्हो के लब पढ़कर देखा वह कलमा पढ़ रहे थे लेकिन बुग्ज ए अली की वजह से इस हदीस को जाईफ करार देकर हटा दिया गया।

दूसरी समझने लायक बात ये है कि लोगों का दावा है कि हज़रते सैय्यदना अबु तालिब ने कहा कि मैं अपने बाबा के दीन पर हूं यानी हमें देखना पड़ेगा कि ईमान ए अब्दुल मुत्तालिब क्या है?

ईमान ए अब्दुल मुतालिब वह है जो काबा की हिफाज़त के लिए अल्लाह से अबाबील परिंदों को तक बुलवा लेता है और उनकी चोंच से ऐसे पत्थर की बरसात करवा देता है जिससे हाथी भी दबकर मर जाएँ। ईमान ए अब्दुल मुतालिब वह है जो रसूलुल्लाह को उस वक्त भी रसूलुल्लाह मान लेता है, जब रसूलुल्लाह ने ऐलान तो दूर, अभी बजाहिर बोलना भी नहीं सीखा। लोगों ने खुद लिखा है कि जब रसूलुल्लाह, सैयदा आमिना सलामुल्लाह अलैहा के शिकम मुबारक में थे, तो खुश्बू आती थी, बादल साया करता था, जब दाई हलीमा के घर गए तो उनके घर के हालात बदल गए, खुशियाँ फैल गईं। जब हज़रत अब्दुल मुत्तालिब के साथ एक दफा बाहर गए तो एक नसरानी पादरी ने उन्हें बताया कि आपका पोता तो वह ही “नबी” है, जिसका जिक्र सहीफों में है।

आज का मौलवी ये सुनकर, पढ़कर ईमान ले आया और ये सब आँखों से देखने वाला ईमान नहीं लाया था, कोई रस्म जहालत की ढूँढ़कर बताओ अब्दुल मुतालिब के घर में, कोई बुत परस्ती का सबूत लेकर आओ, हज़रते सैयदना अबु तालिब के घर में। नहीं ला सकोगे क्योंकि ये बुत परस्त नहीं हैं बल्कि दो बुत-शिकन को पालन कर इस नमक हराम उम्मत को देने वाले हैं।

शायद बहुत कम लोगों को ही ये बात ना पता हो कि रसूलुल्लाह ने ऐलान ए नबूवत के पहले हज़रत अबु तालिब से मशवरा किया और आपने, रसूलुल्लाह को हिफाज़त का वादा भी दिया और ये इजाजत दी की जो चाहे तब्लीग करें, रसूलुल्लाह ने कईयों बार, हज़रत अबु तालिब के घर में बैठकर दीन की तब्लीग भी की है।

जब हज़रत सैयदना अब्दुल मुतालिब ने अपने बेटों को बुलाकर फरमाया था कि मैं चाहता हूँ कि तुम में से कोई मोहम्मद सल्लल्लाहो त्आला अलैहि व आलेही वसल्लम की जिम्मेदारी ले तो आपके सारे बेटों ने खुशी जाहिर की थी, हज़रते सैय्यदना अबु तालिब रजिअल्लाह त्आला अन्हो ने फैसला जब आका सल्लललाहु अलैहे वसल्लम पर छोड़ा तो आपने हज़रत अबु तालिब को चुना और उनकी गोदी में बैठ गए, तब हज़रत अब्दुल मुतालिब ने फरमाया, सही फैसला किया, मैं फैसला करता तो मैं भी हज़रत अबु तालिब को जिम्मेदारी देता।

याद रखें, अल्लाह ही अपने रसूलों को पालता है, उनकी हिफाज़त करता है और इसके लिए अल्लाह ने हज़रत अबु तालिब को चुना। यानी मदद खुदा की है शक्ल एमदद अबु तालिब। जब आप हज़रत अबु तालिब, दुनिया से गए तो ग़म एक साल तक मनाया गया, हज़रत मुहम्मद सल्लललाहु अलैहे वसल्लम रो रोकर कहते कि अब मुझे यतीम कह लो कि अब मेरा कोई सरपरस्त बाकि नहीं। ये बात हक़ है कि रसूलुल्लाह से अगर किसी ने सबसे ज़्यादा मुहब्बत की है, रसूलुल्लाह की सबसे ज़्यादा हिफाज़त की है और दीन के लिए सबसे ज़्यादा कुर्बानियाँ दी हैं तो वह हज़रत अबु तालिब और उनकी औलादों ने दी हैं।

हज़रते सैय्यदना मौला अली, हज़रते सैय्यदना मौला हसन, हज़रते सैय्यदना मौला हुसैन, हज़रते सैय्यदना औन, हज़रते सैय्यदना मौला कासिम, हज़रते मौला गाज़ी अब्बास, हज़रते सैय्यदना अली अकबर, हज़रते सैय्यदना मौला सज्जाद से लेकर हज़रते सैय्यदना मौला अली असगर तक को देख लो, कोई बेटा है, कोई पोता, कोई परपोता तो कोई परनवासा है हज़रते सैय्यदना अबु तालिब रजिअल्लाह त्आला अन्हो व अलैहिमुस्सलाम का।

बेहयाई के इस दौर में ऐसी हवा चली, जहाँ हज़रते सैय्यदना मौला अली अलैहिस्सलाम को गाली देने वाला, हज़रते सैय्यदना मौला हसन-ए-मुज़तबा अलैहिस्सलाम की सुलह तोड़ने वाला और हज़रते सैय्यदना मौला हुसैन अलैहिस्सलाम के खिलाफ़ बैत लेकर, अपने काफिर हरामी बेटे यजीद को ख़लीफा बनाने वाला तो राज़िअल्लाह हो गया लेकिन रसूलुल्लाह सल्लललाहो त्आला अलैहि व आलेही वसल्लम को पालने वाला, रसूलुल्लाह ﷺ का मुहाफिज़, रसूलुल्लाह ﷺ पर जान छिड़कने वाला, माजअल्लाह काफ़िर हो गया। 💔😭

एक दफा जब हज़रते सैय्यदना अबु तालिब ने हज़रते मौला ए कायनात इमाम अली अलैहिस्सलाम को नमाज़ पढ़ते देखा तो उनसे इस बारे में पूछा और मौला अली अलैहिस्सलाम ने जब बताते हुए ये कहा कि मैं तौहीद को मानता हूँ और मोहम्मद सल्लललाहु अलैहे वसल्लम की रिसालत पर ईमान रखता हूँ तो बदले में, हज़रते सैय्यदना अबु तालिब रजिअल्लाह त्आला अन्हो ने फरमाया कि मोहम्मद सल्लल्लाहो त्आला अलैहि व आलेही को कभी ना छोड़ना वह तुम्हें कभी गुमराह ना होने देंगें। जो बाप अपने बेटे को ये नसीहत कर रहा हो, उसी के ईमान पर शक़? क्या अब भी आपको ईमान ए अबु तालिब पर शक़ है।

“वल्लजी-न आमनू व हाजरू व जाहदू फी सबीलिल्लाह वल्लजीन आव-वन-सरू उलाइ-क हुमुल-मुअमिनू-न हक्कन, लहुम् मगफिरतुंव रिजकुन् करीम

जिसका तर्जुमा है, “और जिन लोगों ने ईमान कुबूल किया और हिज़रत की और खुदा की राह में जिहाद किया, नाजुक वक्त मैं उन लोगों को पनाह दी और मदद की, वही सच्चे मोमिन हैं, उनके लिए ही बशिश और बा-इज्ज़त बेहतरीन रिज़क है”

इसमें कोई शक नहीं कि ये आयत रसूलुल्लाह, मुहाज़िरीन, अंसार और उन्हें पनाह देने वालों के लिए नाज़िल हुई है, क्या पनाह और मदद देने वालों में सबसे ऊपर अबु तालिब नहीं थे?

जब हम कुरआन में सूरः निसा की आयत नंबर 139 और 140 देखते हैं तो पाते हैं कि अल्लाह रब उल इज्जत ने फरमाया, दोनों आयत, तर्जुमे के साथ लिख रहा हूँ

“अल्लजी-न यतख़िजूनल-काफिरी-न औलिया-अ मिन् दूनिलमुअमिनी-न, अ-यब्तगू-न इन्दहुमुल्-इज्ज़-त फ-इन्नल-इज़्ज़-त लिल्लाहि जमीआ”

“जो अहले ईमान को छोड़कर कुफ्फार को अपना दोस्त और रफीक बनाते हैं, क्या उन्हें उनके पास इज्जत ओ कुव्वत की तलाश है? इज्जत और कुव्वत तो सिर्फ अल्लाह के लिए है” (सूरः अन-निसा, आयत 139)

“व कद् नज्ज-ल अलैकुम् फिल्किताबि अन् इजा समिअतुम् आयातिल्लाहि युक्फरू बिहा व युस्तहज़उ बिहा फ़ला तक्उदू म-अहुम हत्ता यखूजू फी हदीसिन् गरिही इन्नकुम् इज़म्-मिस्लुहुम, इन्नल्ला-ह जामिउल-मुनाफिकी-न वल्काफिरी-न फी जहन्नम जमीआ”

“वह किताब मैं तुमपर ये हुक्म उतार चुका है कि, ” जब तुम सुनो कि अल्लाह की आयतों के साथ कुफ्र किया जा रहा है और उनका मजाक उड़ाया जा रहा है, तो जब तक वो किसी दूसरी बात मैं ना लग जाएँ, उनके साथ ना बैठो, वरना तुम भी उन्हीं जैसे होगे।” , अल्लाह मुनाफिकीन और कुफ्फार, सबको जहन्नुम मैं इकट्ठा करके रहेगा”

अब इन दोनों आयतों को पढ़कर सोचिए, हज़रत अबु तालिब की कुव्वत ही इस्लाम के शुरुआती दिनों में काम आई और कुरआन साफ़ कह रहा है काफिर की कुव्वत कोई काम नहीं आती, हज़रत मुहम्मद सल्लललाहु अलैहे वसल्लम ने आपको रफीक भी रखा और आपके साथ भी उठते बैठते रहे। अब मेरे आका पर ये शक करना कि वह कुरआन पर अमल नहीं करते थे, खुला कुफ्र है और अगर कुरआन पर अमल था तो फिर ईमान ए अबु तालिब कुरआन से साबित है। अपनी बात को और पुख्ता करने के लिए एक आयत और आपके सामने रखूगा।

आइए, सूरः तौबा देखते हैं जिसे ज्यादातर अहले तश्ययो सूरः बारात भी कहते हैं, इस सूरः की आयत 23 में देखें तो अल्लाह रब उल इज्जत फरमाते हैं

“या अय्युहल्लजी-न आमनू ला ततखिजू आबा-अकुम् व इख़्वानकुम् औलिया-अइनिस्त-हब्बुल-कुफ्र अलग-ईमानि, व मंय्यतवल्लहुम् मिन्कुम् फ़-उलाइ-क हुमुज्जालिमून“

“ऐ लोगों जो ईमान लाए हो, अपने बाप और भाईयों को अपने रफीक ना बनाओ, अगर वो ईमान के मुकाबले में कुफ्र को पसंद करें, तुम में से जो कोई उन्हें अपना रफीक बनाएगा, तो ऐसे लोग जालिम होंगे।” (सूरः तौबा, आयत 23)

अब इस आयत को पढ़कर और तारीख़ में रसूलुल्लाह और हज़रत अबु तालिब का साथ पढ़कर खुद सोच लें कि आपने कितना रफीक बना

रखा था। कुरआन मैं हर बात का जवाब है लेकिन उसे खोजना और समझना खुद पड़ता है।

इस आयत में साफ़ तौर पर हक्म है कि ईमान के मुकाबले में कुफर को पसंद करने वाले शखस को रफीक नहीं बनाना है चाहे बाप या भाई ही क्यों ना हो लेकिन रसूलुल्लाह सल्लललाहु अलैहे वसल्लम और हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने हज़रत अबु तालिब को रफीक बनाया, शक कुरआन पर नहीं, नबी और वली के अमल पर नहीं बल्कि उस मौलाना पर करो जो ये कहता है कि अबु तालिब ईमान के साथ दुनिया से नहीं गए।

कुछ ऐसा ही आता है, सूरः आले इमरान की आयत २८ में। बल्कि इस आयत में तो अल्लाह रब उल इज्जत ने यहाँ तक कहा है कि अहले कुफ्र को दोस्त बनाने वाले का अल्लाह से कोई ताल्लुक ही नहीं। मैं इस आयत को भी तर्जुमे के साथ लिख देता हूँ

“ला यत्तखिज़िल मुअ-मिनूनल काफ़िरी-न औलिया-अ मिन दूनिलमुअमिनी-न व मंय्यफझल जालि-कफ़लै-स मिनल्लाहि फी शैइन् इल्ला अन् ततकू मिन्हुम् तुकातन, व युहजिरुकुमुल्लाहु नफ्सहू, व इल्लाहिल-मसीर”

अहले ईमान को चाहिए कि अहले ईमान से हटकर अहले कुफर को अपना दोस्त न बनाएँ और जो ऐसा करेगा उसका अल्लाह से कोई ताल्लुक नहीं, क्योंकि उससे ताल्लुक उसी बात को है कि तुम उनसे बचो जिस तरह वो तुमसे बचते हैं। और अल्लाह तुम्हें अपना खौफ़ दिलाता है और अल्लाह की तरफ़ ही लौटना है।”

अगर आप दिल से सोचकर देखें, तो आपको एहसास हो जाएगा कि अबु तालिब क्या हैं, कभी रसूलुल्लाह ने आपसे दुआ करवाकर, कभी अपना निकाह पढ़वाकर, कभी आपका गम मनाकर बता दिया कि

रसूलुल्लाह की निगाह में हज़रत अबु तालिब अलैहिस्सलाम का मुकाम क्या है। कुछ मुहद्दिसों ने तो आप हज़रत अबु तालिब की रिवायत से हदीस भी लिखी हैं, जो अपने आप में सोचने लायक बात है।