Barkat us Sadaat part 23

गुलिस्ताने ज़ेहरा के सरसब्ज़ व शादाब

फूल सूरः कौसर की तफ्सीर में शैखुल हदीस मौलाना मुहम्मद अशरफ सियालवी मद्दजिल्लहू दरबार एहले बैत में यूँ गुलहाए अकीदत पेश करते हैं: “इस आयत पाक में “अल् कौसर” से मुराद औलाद पाक
और नसल अतहर है और महबूब पाक को बशारत दी गई है कि आपकी नसल पाक बेहद व हिसाब होगी और तमाम कुबाईल व अवाम से ज्यादा होगी। कोई क़बीला और कौम गिंती व शुमार और फजाईल व कमालात के लिहाज से उनकी बराबरी नहीं कर सकेगी। जब हुजूर नबी अकरम के साहबजादे हज़रत अब्दुल्लाह विसाल फरमा गए तो कफ्फार व मुशरीकीन ने आपको अबतर” कहना शुरू कर दिया। उनका गुमान यह था कि पैगंबर इस्लाम की औलाद सुलैबी नहीं जो कि उनकी कायम मुकाम हो और उनके दीन व मज़हब को जारी रख सके लिहाजा यह सिलसिला ज्यादा देर तक कायम नहीं रह सकेगा और यह मज़हब बहुत जल्द ख़त्म हो जाएगा।

अल्लाह तआला ने इस आयत करीमा में कुफ्फार व मुशरीकीन और मआंदीन के इस वाहमा को ज़ाइल फरमाया और महबूब व मतलूब को बशारत दी कि ऐ मेरे रसूल ! मैंने आपको इतनी औलाद अता फरमाई है कि वह कयामत तक ख़तम न होगी और यह मसलक व मज़हब और दीने मिल्लत उनके फयूज़ व बरकात से हमेशा कायम व दायम रहेगा। उनकी मुखलिसाना और बेलोस मसाई जमीला से दीन इस्लाम का पौधा हमेशा तरोताज़ा और सरसब्ज व शादाब रहेगा।

इस गैबी ख़बर की सदाकृत और हकानियत का अंदाजा कीजिए और पैगंबर आख़िरुज्ज्माँ अलैहिस्सलातु वस्सलाम के इस मोजज़ा की वाकिईयत और हक़ीकृत को मुलाहिजा कीजिए, वह गुस्ताख़ व बेअदब और ताना जुन कुफ्फार नैस्त व नाबूद हो गए, लेकिन दुनिया का कोई ख़ित्ता ऐसा न होगा जहाँ आँहुज़ूर शाफे यौमुन्नुशूर अलैहिस्सलाम की औलाद पाक और सादात किराम मौजूदन हों। वह दुश्मनों जिन्होंने ने एहले बैत को दुनिया से मिटाने की कोशिश की, वह खुद मिट गए लेकिन एहले बैत को न मिटा सके, आज न यज़ीद हे, न इब्ने ज़्यादा, न उनका नाम व निशान।

लेकिन एक आबिद बीमार हज़रत सैयद इमाम ज़ैनुल आबिदीन की नस्ले अवदस में अल्लाह तआला ने वह बर्कत अता फरमाई कि तमाम ऐतराफ व अक्नाफ आलम में यह नूरी नसल फैली हुई है और शफी मुअज्ज़म के आफताब हुस्न व जमाल की यह नूरानी किरनें एहले जहाँ के दिलों को मुनव्वर किये हुए हैं और तमाम आलम के लिए सरचश्मा-ए-रुश्द व हिदायत बनी हुई हैं।) (जैनुल बरकात)

या अल्लाह ! सादात की नसल में बरकत फरमा जिस रात हज़रत सैयदा फातिमा जेहरा की शादी हज़रत सैयदना अली उल मुरतजा से हुई। आप ने पानी मंगवाया

वज़ू किया और हज़रत फातिमा पर उंडेल दिया और फरमायाः

ऐ अल्लाह तआला इसमें बर्कत दे। इस पर अपनी बर्कत नाज़िल फरमा और उन दोनों की नस्ल में बर्कत दे।”150)


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