
सादात की ताज़ीम के लिए क़याम ख़्वाजा एहरार कुद्दस सिर्रहू रिवायत फ़रमाते हैं कि एक रोज़ इमाम आज़म सिराज उम्मत सैयदना इमाम अबु हनीफा की अपनी मजलिस में कई बार उठे किसी को इसका सबब मालूम न हुआ। आखिरकार हज़रत इमाम से एक शागिर्द ने मालूम किया।
हज़रत इमाम आज़म ने फ़रमायाः सादाते किराम का एक साहबजादा लड़कों के साथ मदरसा के सहन में खेल रहे हैं। वह साहबजादा जब इस दर्स के क़रीब आता है और उस पर मेरी नज़र पड़ती है तो मैं उसकी ताज़ीम के लिए उठता हूँ।” (जैनुल बरकात)

सय्यदों का एहतरामः
(1) सय्यदी अब्दुल वहाब शोरानी में फ़रमाते हैं: “मुझ पर अल्लाह तआला के एहसानात में से एक यह है कि मैं सादाते किराम की बेहद ताज़ीम करता हूँ अगर्चे उनके नसब में तअन करते हों।
मैं इस ताज़ीम को अपने ऊपर उनका हक तसव्वुर करता हूँ, इसी तरह उलमा व औलिया की औलाद की ताज़ीम शरई तरीके से करता हूँ, अगर्चे मुत्तकी न हों, फिर मैं सादात की कम अज़ कम इतनी ताज़ीम व तकरीम करता हूँ जितनी मिस्र के किसी भी नाइब या लश्कर के काज़ी की हो सकती है।” (अल् शरफुल मोबिद ) (2) हज़रत अबु राफेअ बयान करते हैं कि हुजूर नबी अकरम ने हज़रत अली से फ़रमाया: बेशक पहले चार अशखास जो जन्नत में दाखिल होंगे वह मैं, तुम, हसन और हुसैन होंगे और हमारी औलाद हमारे पीछे होगी (यानी हमारे बाद वह दाखिल होगी) और हमारी बीवियाँ हमारी औलाद के पीछे होंगी (यानी उनके बाद जन्नत में दाखिल होंगी) और हमारे चाहने वाले (हमारे मददगार) हमारी दाऐं जानिब और बाऐं जानिब होंगे।” इस हदीस को इमाम तिबरानी ने रिवायत किया है।