
कुतुब औलिया, सादात में से होता है.
जब ख़िलाफ़त ज़ाहिरा में शान ममलिकत व सल्तनत पैदा हुई तो कुदरत ने आले अतहार को इससे बचाया और उसके ऐवज “ख़िलाफ़ते बातिना” अता फ़रमाई ।
हज़रात सूफ़ियाए किराम का एक गिरोह जज़म करता है कि हर ज़माने में “कुतुब औलिया” आले रसूल (सादात किराम) ही में से होंगे। (सवानेह करबला स. 50 सदरुल फाज़िल, उस्तादुल कुल, नईम मिल्लत, अल्लामा सैयद नईमुद्दीन मुरादाबादी कुद्दस सिर्रहुल अज़ीज़ )

खातून जन्नत को अपनी औलाद अज़ीज़ है ( 1 ) इमाम इब्ने हज्र मक्की हैतमी (974 हि.) तकीउद्दीन फारसी से रिवायत करते हैं उन्होंने बाज़ अइमा किराम से रिवायत की कि वह सादात किराम की बहुत ताज़ीम किया करते थे। उनसे इसका सबब पूछा गया तो उन्होंने फ़रमाया:
सादाते किराम में एक शख्स था जिसे मुतैर कहा जाता था वह अक्सर लहव व लअब में मसरूफ रहता था जब वह फौत हुआ ख़्वाब में नबी करीम फ़ातिमा जेहरा तो उस वक्त के आलिमे दीन ने उसका जनाज़ा नहीं पढ़ा तो उन्होंने की जियारत की आपके साथ हजरत सैयदा थीं। आलिम ने हज़रत फातिमा जेहरा से दरख्वास्त की के मुझ पर नज़रे रहमत फ़रमाऐं तो हज़रत ख़ातून जन्नत उसकी तरफ मुतवज्जह नहीं हुईं, उस पर अताब फ़रमाया और इर्शाद फरमाया:
क्या हमारा मुकाम मुतैर के लिए किफायत नहीं कर
सकता?”
बेशक कर सकता है। गुनहगार सादात के जख्मों पर आप मर्हम पट्टी नहीं करेंगी तो और कौन करेगा। हर एक को अपनी औलाद प्यारी होती है बेशक आपको भी अपनी आले अजीज़ है। गुनाह से नसब नहीं टूटता। जैसे भी हैं आपके हैं।
“जिसका जो होता है रखता है उसी से निस्बत”
(2) हज़रत इमरान बिन हुसैन फ़रमाते हैं, नबी अकरम ने फ़रमाया:
“मैंने अपने रब करीम से दुआ की कि मेरे एहले बैत में से किसी को आग में दाखिल न फ़रमाए तो उसने मेरी दुआ कुबूल फरमा ली।” (बरकाते आले रसूल)