जज़ीरे का कैदी

जज़ीरे का कैदी

इब्ने मरजूक ब्यान करते हैं कि जज़ीरए शकर के एक मुसलमान को दुशमन ने कैद कर लिया और उसके हाथ पांव लोहे की जंजीरों से बांधकर कैदखाने में डाल दिया। उस मुसलमान ने हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का नाम लेकर फरयाद की। ज़ोर से कहने लगाः या रसूलल्लाह! यह नारा सुनकर काफ़िर बोलेः अपने रसूल से कहो तुम्हें इस कैद से छुड़ाने आयें। फिर जब रात हुई और आधी रात का वक्त हुआ तो कैदखाने में कोई शख्स आया और उसने कैदी से कहाः उठो, अज़ान कहो। कैदी ने अज़ान देना शुरू का और जब वह इस जुमले ‘अशहदुअन्न न मुहम्मदर्रसूलुल्लाह’ पर पहुंचा तो उसकी सब जंजीरें टूट गई और वह आज़ाद हो गया। फिर उसके सामने एक बाग जाहिर हो गया। वह उस बाग से होता हुआ बाहर आ गया। सुबह उसकी रिहाई का सारे जजीरे में चर्चा होने लगा। (शवाहिदुल हक सफा, १६२) .

सबक: मुसलमान हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का नारए रिसालत हमेशा लगाते रहे हैं। इस नारे का मजाक उड़ाना दुशमनाने रिसालत का काम है। यह भी मालूम हुआ कि हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का नाम मुश्किल कुशा है कि यह नाम लेते ही मुसीबत की कड़ियां टूट जाती हैं।

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