
हज़रत ईमामे हसन की ईमामत के जमाने में एक शामी मदीना आया और बाज़ार में खड़े होकर हस्बे आदत हज़रत अली और हज़रत ईमाम हसन अलाहिस्लाम के बारे में बुलंद आवाज़ में करने लगा, ईतने में सरकार ईमाम हसन मुज्तबा तशरीफ़ लाए और उस शामी को मुखातिब कर के फ़रमाया:
मुसाफिर लगते हो, मेरे साथ आओ ताके तुम्हें खाना खिलासकु तुम्हारे आरम का बंदोबस्त कर सकू और तुम्हें जादे राह दे सकू । वो शख्स आप के साथ गया खाना और आराम भी किया जब वापिस निकला तो मदीने के लोगों ने कहां ये उन लोगों का ही घर था जिनकी तु
बुराई कर रहा था और जिस ने तुम्हारी महेमान नवाजी की वो कोई और नहीं बल्कि खुद ईमाम हसन मुज्तबा थे ये सुन कर शामी रो पड़ा
और ईमाम हसन के कदमों में गीर कर माफ़ी मांगी

