
क्या है ईद ए गदीर?
जिलहिज्जा की 18 तारीख का दिन जब नबी ए करीम अपने तमाम सहाबा के साथ हज्ज करके लौट रहे थे मक्का और मदीना के दरमियान एक मैदान पड़ता है जिसे गदीर कहते जब जब आप वहा पहुंचे तो अल्लाह ताअला ने आयत नाजिल फरमाई जो *सुराह माईदा आयत 67 फरमाई
*بِسْمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِيْمِ*
يٰۤـاَيُّهَا الرَّسُوۡلُ بَلِّغۡ مَاۤ اُنۡزِلَ اِلَيۡكَ مِنۡ رَّبِّكَ ؕ وَاِنۡ لَّمۡ تَفۡعَلۡ فَمَا بَلَّغۡتَ رِسٰلَـتَهٗ ؕ وَاللّٰهُ يَعۡصِمُكَ مِنَ النَّاسِ ؕ اِنَّ اللّٰهَ لَا يَهۡدِى الۡقَوۡمَ الۡـكٰفِرِيۡنَ
ए बुज़ुर्गज़ीदा रसूल जो कुछ आप के रब की तरफ से नाजिल किया गया है वो सारा का सारा लोगो तक पहुंचा दीजिए अगर आप ने ऐसा ना किया तो आप ने अल्लाह का कोई बैगाम पहुंचाया ही नहीं और अल्लाह मुखालिफ लोगो से आप की जान की हिफाज़त फरमाएगा बेशक अल्लाह काफिरों को राह ए हक़ नहीं दिखता।
जब यह आयत नाजिल हुई उसके बाद नबी ए पाक ने खुत्बा पढ़ा हो ज़ोहर से ले कर असर तक चला और मौला अली۴ की फजीलत को कुरआन कि आयत पढ़ पढ़ कर बताया इसके बाद आप ने फरमाया ए मेरे सहाबा अब वक्त आ गया है कि मै अपने रब से जा मिलु सहाबा रोने लगे या रसूल अल्लाह आप के जाने के बाद हम किसका दामन थामेंगे नबी ए पाक ने फरमाया परेशान मत हो मैं अपने जाने के बाद दो भारी चीज़े छोड़ कर जा रहा हूं इसको तुम थामे रहोगे कभी गुमराह नहीं होगे पहला अल्लाह की किताब दूसरी मेरी आल अहलेबैत यानी (अली,फातिमा,हसन,हुसैन,) इनका दामन थामे रहोगे कभी गुमराह नहीं होगे।
उसके बाद आप ने फरमाया कौन है जो मुझे अपनी जान ,माल मां, बाप ,से ज़्यादा मुहब्बत करता सबने लब्बैक कहा उसके बाद आप ने फरमाया
منکونت مولا فھذا علی یون مولا
जिसका मैं मौला उसका अली मौला।
समझने वाली बात यह है जिस विलायत का ऐलान किए बगैर अल्लाह खुद अपने महबूब को कह रहा आप ने नबुवत का काम ही ना पूरा किया तो ज़रा मुसलमान भाई सोचे की हमारी आप की क्या औकात हमारी नमाज़, रोज़े, हज,कैसे मानें जाएंगे बिना मौला अली को मौला माने बगैर गौर ओ फिक्र कर के जवाब खुद को दे
और ईद ए गदीर ज़रूर मनाए यह सुन्नत र रसूल है और जो सुन्नत ए रसूल को रद्द करता वो काफ़िर होता है।
जज़ाकअल्लाह खैर कसीरन कसीरा