
मुफ्ती – ए-अल्लामा सैयद मुहम्मद रियासत अली कादरी ( बानी इदारा
तहकीकात इमाम अहमद रज़ा) लिखते हैं: एक दफा का वाकिआ है कि उर्स रिज़वी के मौके पर एक गरीब सैयद साहब जो अभी जवान थे और दीवानों जैसी बातें करते थे तशरीफ ले आए और कहा, मुझे पहले खाना दो मुंतज़मीन ने कहा कि अभी नहीं इतनी देर में सैयद साहब आलम दीवांगी में हज़रत मुफ्ती आज़म हिंद की खिदमत में जाने लगे उलमा ने उनको रोका मगर किसी न किसी तरह वह मुफ्ती आज़म हिंद की ख़िदमत में हाज़िर हो गए और फरमाया देखिए हज़रत यह लोग मुझे खाना नहीं देते, मैं भूखा हूँ और सैयद भी हूँ। यह सुनना था कि हुज़ूर मुफ्ती आज़म हिंद खड़े हो गए और इन सैयद साहब का हाथ पकड़ कर अपने पास तख़्त पर बिठाया डिबडिबाई आंखों से फरमाया कि हुज़ूर सैयद साहब पहले आप ही को खाना मिलेगा यह सब आप ही का है वह सैयद साहब बहुत खुश हुए और हज़रत मुफ्ती आज़म हिंद ने जनाब साजिद अली ख़ाँ साहब को बुला कर फौरन हिदायत फरमाई कि सैयद साहब को ले जाइए और उनकी मौजूदगी में फातिहा दिलवाइए और सबसे पहले खाना उनको दीजिए तबर्रुक फरमा लें तो सब को खिलाइए अब क्या था साहब अकड़े हुए निकले और कहा देखा मुझे पहचानने वाले पहचानते हैं।
हुज़ूर मुफ्ती आज़म हिंद को जब यह मालूम होता कि उनके घर में कोई सैयद आया है तो बहुत खुश होते…. मैं ( सैयद मुहम्मद रियासत अली कादरी) अपने बरेली के कृयाम के दौरान जब भी आपका नियाज़ हासिल करने गया तो आपने मुझे कभी अपने पाईंती बैठने नहीं दिया बल्कि अपने पास बिठाते और मेरे बड़े साहबजादे सैयद मुहम्मद उवैस अली को अपने पास बुला कर बहुत ही प्यार फरमाते थे। (इमाम अहमद रज़ा और अहतरामे सादात)