
हुज़ूर अकदस ﷺ सरकारे दो आलम से क़राबत मुनकता नहीं होगी: फरमाते हैं:
“كل سبب و نسب منقطع يوم القيمة الاسببي ونسبي हर इलाके और रिश्ता रोज़े कयामत कता हो जाएगा मगर मेरा इलाका और रिश्ता (मुनकृता नहीं होगा )
(المعجم الكبير حدیث ۲۲۳۳)
(2) “हज़रत अब्दुल रहमान अबी लैला अपने वालिद से रिवायत करते हैं कि हुजूर ने फ़रमायाः कोई बंदा उस वक्त तक मोमिन नहीं हो सकता जब तक कि मैं उसके एहले खाना से महबूब तर न हो जाऊँ और मेरी औलाद उसे अपनी औलाद से बढ़ कर महबूब न हो जाए और मेरी जात उसे अपनी ज़ात से महबूब तर न हो जाए । ” इसे इमाम तिबरानी और इमाम बैहकी ने रिवायत किया है।

ताज़ीम, एहले बैत का हक है इस्लाम हज़रत ख़्वाजा नसिरुद्दीन उबैदुल्लाह एहरार नक्शबंदी कुद्दस सिर्रहू (895 हि.) एक रोज़ सादाते किराम की तौकीर व ताज़ीम के बारे में फ़रमा रहे थे कि जिस बस्ती (गोठ) सादात किराम रहते हों मैं उसमें रहना नहीं चाहता क्योंकि उनकी बुजुर्गी और शर्फ ज़्यादा है। मैं उनकी ताज़ीम का हक़ बजा नहीं ला सकता। (तज़किरा मशाईख नक्शबंदिया) ( ज़ैनुल बरकात)