
पहली मंज़िल
झूठी बैअत के गले में तौके लानत डाल कर
ले गये आबिद अमीर शाम के दरबार तक
सैय्यद सज्जाद नंगे पैर ऊंटों की महार पकड़े चल रहे हैं दिन भर के सफर के बाद शाम को जब यज़ीदी अपनी पहली मंजिल पर ठहरे तो अहले बैते अत्हार से छीना हुआ एक ऊंट ज़िबह किया लेकिन जब खाने बैठे तो सारा गोश्त खून बन गया और उस से आग के भड़कते हुए शोले निकलने लगे, नाचार रात गुज़ारी और सुबह फिर सफर को कूच किया।
दूसरी मंज़िल :
यजीदी जब दूसरी मंजिल पर पहुंचे तो सामने एक गिरजा नज़र आया जालिमों ने नेज़ों को गिरजा की दीवार से खड़ा कर दिया। अचानक गिर्जे की दीवार शक हुई और उस से एक हाथ नमूदार हुआ जिसमें लोहे का कलम था। उस हाथ ने लोहे के कलम को शुहदा के टपकते हुए खून में डिबो कर गिर्जे की दीवार पर यह शेर लिखा :
किया है जिन्होंने कत्ल प्यारे हुसैन को। उन्हें क्या उम्मीदे शफाअत है उनके नाना से। उसको देखते ही यज़ीदी बौखला गये यज़ीदियों के होश उड़ गये।
यहां से घबरा कर यज़ीदियों ने सफर को आगे बढ़ाया। आगे एक और गिरजा नज़र आया यही शेअर वहां की दीवार पर पहले ही से लिखा हुआ नज़र आया। यज़ीदियों ने वहां के फादर से जा कर पूछा
कि गिर्जे की दीवार पर यह शेअ किस ने लिखा है और कब लिखा है? पादरी ने जवाब दिया कि यह उस जमाने का लिखा हुआ नहीं है बल्कि मैं अपने बाप, दादा, परदादा से सुनता चला आया हूं कि यह शेअ नबी आखिरुज्जमां सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की पैदाइश से पांच सौ साल पहले उस गिर्जे की दीवार पर लिखा हुआ पाया। और उस वक्त से लेकर आज तक वैसा ही मौजूद है। पादरी ने पूछा लेकिन तुम लोग कौन हो और इस शेअर के मुतअल्लिक क्यों दरयाफ्त कर रहे हो? पादरी ने शुहदाए किराम के सरों के मुतअल्लिक पूछा कि यह किन लोगों के सर हैं जिन्हें तुमने नेज़ों पर चढ़ा रखा है?
यज़ीदियों ने जवाब दिया कि यह सर अमीरुल-मुमिनीन यज़ीद के बागियों के सर हैं। (मआजल्लाह)।
पादरी ने बगौर देखा तो उसकी निगाह इमाम आली मकाम रजि अल्लाहु अन्हु के सरे मुबारक पर पड़ी तो इमाम पाक के चेहर-ए-अनवर पर निगाह जमी की जमी रह गई। उसने बेताबाना पूछा यह किस का सर है। यज़ीदियों ने जवाब दिया कि यह सर हुसैन इने अली का है। पादरी ने कहा कि वह अली जो तुम्हारे नबी के दामाद हैं। यज़ीदियों ने कहा हां।
पादरी ने कहा अरे ज़ालिमो! साफ़ क्यों नहीं कहते कि यह तुम्हारे नबी मुहतरम के नवासे का सर है। अरे ज़ालिमो! क्या तुम कभी अपने जुर्म को छुपा सकोगे। याद रखो मुन्तकिम हकीकी का इंतिकाम बहुत सख्त है।
पादरी ने कहा कि यह सर मुबारक दस हजार दिरहम के एवज़ रात भर के लिए मुझे दे दो सुबह वापस ले लेना।

