हज़रत नियाज़ बे-नियाज़ की बैअ’त

हज़रत नियाज़ बे-नियाज़ की बैअ’त

जब दिल्ली में हज़रत नियाज़ बे-नियाज़ के कमाल की शोहरत हुई तो हासिदों ने ये मशहूर किया कि उनको किसी से बैअ’त ही नहीं कमाल क्या होगा। ये सुनकर नियाज़ बे-नियाज़ को सख़्त मलाल हुआ। कई रोज़ के बा’द मौलाना फ़ख़्रुद्दीन देहलवी रहमतुल्लाहि अ’लैह सुब्ह के वक़्त मकान से बरामद हुए। सब ख़ुद्दाम सलाम के लिए हाज़िर थे।मौलाना ने नियाज़ बे-नियाज़ की तरफ़ देखकर फ़रमाया कि मियाँ आज शब में हज़रत पीरान-ए-पीर ने तुम्हारी बैअ’त अपने दस्त-ए-मुबारक पर क़ुबूल फ़रमाई और मुझको एक सूरत दिखलाई है और फ़रमाया कि अपनी ख़ास औलाद में से उनको भेजता हूँ ब-ज़ाहिर उनके हाथ पर तकमील करा देना। ये सुनकर नियाज़ बे-नियाज़ ने मौलाना के क़दम चूमे।

इस बात को छः महीने गुज़र गए कि एक दिन मैलाना सुब्ह को बरामद हुए और फ़रमाया कि हज़रत पीरान-ए-पीर फ़रमाते हैं कि हमारे फ़र्ज़न्द-ए-मुर्सला को आज तीन रोज़ दिल्ली पहुंचे हुए गुज़रे और तुम उनसे ग़ाफ़िल हो। ये फ़रमा कर लोगों को तलाश के लिए भेजा। उनमें से एक शख़्स ने आ कर बयान किया कि एक साहिब बग़दाद शरीफ़ के रहने वाले जामे’-मस्जिद दिल्ली में मुक़ीम हैं।आपने उनकी  वज़्अ’ और क़त्अ’ दरयाफ़्त फ़रमाई।जैसा मौलाना ने आ’लम-ए-रूया में देखा वही वज़्अ’ और क़त्अ’ उसने बयान की। ये सुनकर मौलाना ने मिठाई लाने का हुक्म दिया। जब मिठाई आ गई तो उसको ख़्वान में रखकर उस ख़्वान को अपने सर पर उठाया। हर-चंद ख़ादिमों और ख़ुलफ़ा ने अ’र्ज़ किया कि ये हमारा काम है हुज़ूर हमको दें। मौलाना ने क़ुबूल नहीं फ़रमाया और इस हैसियत से कि मिठाई का ख़्वान सर पर और दाहिने हाथ से हाथ हज़रत नियाज़ का पकड़े हुए दिल्ली की जामे’-मस्जिद में दाख़िल हुए।देखा कि मस्जिद के बीच के दर में साहिब बैठे हुए हैं।ये वही साहिब हैं जिनकी सूरत मुझे दिखलाई गई थी। और उन बुज़ुर्ग ने जिनका इस्म-ए-मुबारक सय्यिद अ’ब्दुल्लाह बग़दादी है हज़रत नियाज़ बे-नियाज़ को देखकर फ़रमाया कि इन्ही की सूरत मुझको दिखलाई गई थी जिनके लिए मैं भेजा गया हूँ। ग़’र्ज़ कि ख़्वान मिठाई का हज़रत मौलाना ने सर से उतार कर हज़रत अ’ब्दुल्लाह बग़दादी के सामने रखा और आपने वहीं मेहराब-ए-मस्जिद में बा’द अदा-ए-दोगाना तहिय्यात-ओ-दुआ’-ए-मासूरा-ए-ख़ानदानी के बैअ’त फ़रमाई और हर क़िस्म की ता’लीम और तल्क़ीन से आपको माला-माल कर दिया।अ’लावा अश्ग़ाल के बावन तरीक़े से ज़िक्र-ए-नफ़ी-इस्बात ता’लीम हुआ जो ख़ुद्दाम-ए-हक़ीक़ी में मौजूद है।और अ’रबी में ख़िलाफ़त-नामा लिख कर जो मुज़य्यन पाँच मुहरों से है मआ’ अपनी दस्तार के मरहमत फ़रमाया जो तबर्रुकन इस वक़्त तक ख़ानक़ाह में मौजूद है।और नीज़ अपनी साहिब-ज़ादी का निकाह हज़रत नियाज़ बे-नियाज़ के साथ कर दिया जो चंद साल के बा’द ला-वलद इस आ’लम-ए-फ़ानी से आ’लम-ए-जाविदानी को रवाना हुईं। इन्ना लिल्लाहि व-इन्ना इलैहि राजिऊ’न।

–करामात-ए-निज़ामिया सफ़हा 19-20

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