वसीला शिर्क कैसे हुआ???

ताबूत ए सकीना को सामने रख के बनी इस्राइल जो दुआ करते वो कबूल होती थी इस बात पर मुसलमानों का हर फिरका मुताफिक है,.!!!
अबे यही तो वसीला है तो अब वसीला
शिर्क कैसे हुआ???

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हजरत जकरिया अलैहिस्सलाम का हजरत मरियम सलामुल्लाह अलैहा के “मकाम ए मेहराब” को वसीला बनाना-

तर्जुमा- और उसे जकरिया की निगेहबानी मैं दिया जब जकरिया उसके पास उसकी नमाज पढ़ने की जगह जाते उसके पास नया रिज़्क़ पाते, कहा ऐ मरियम यह तेरे पास कहां से आया बोली अल्लाह के पास से बेशक अल्लाह जिसे चाहे बे गिनती दे” (आयात नम्बर 37)

” यहां पुकारा जकरिया ने अपने रब को बोला ऐ मेरे रब मुझे अपने पास से दे सुथरी औलाद बेशक तू ही है दुआ सुनने वाला (आयत नम्बर 38)

“तो फरिश्ते ने उसे आवाज़ दी और वो उसे अपनी नमाज की जगह खड़ा नामज़ पढ़ रहा था। बेशक अल्लाह आपको मुज़दा देता है याहिया का जो अल्लाह की तरफ से एक कलिमे की तस्दीक करेगा और सरदार और हमेशा के लिए औरतों से बचने वाला और नबी हमारा ख़ासों में से – (आयात नम्बर 39)

(सूरह अल इमरान आयात 37 से 39)

हजरत मरियम सलामुल्लाह अलैह अल्लाह की मक़बूल वलिया हैं हज़रत ईसा अलैहिस्लाम की वालिदा माज़िदा हैं,
बैतूल मुक़द्दस में हजरत जकरिया अलेहीस्सलाम की निगेहबानी में रही वहां एक खास जगह मुकर्रर थी जहां हजरत मरियम नमाज पढ़ती जो मेहराब ए मरियम है, और अल्लाह की जानिब से उस मेहराब में नया नया रिज़्क़ आता ठंड में में गर्मी के फल गर्मी में ठंड और भी तरह तरह की करामातें नज़र आती,

चंद बातें जो क़ाबिले गौर हैं

हज़रत ज़कारिया अलैहिस्सलाम नबी हैं इससे पहले भी बैतूल मुक़द्दस में बार बार दुआ मांगते रहे पर दुआएँ मकबूल न होतीं जब ये देख के मेहराब ए मरियम का मकाम अल्लाह के नज़दीक कबूल ओ मक़बूल है तो खास मेहराब ए मरियम में जाके नामज़ पढ़ी और दुआ की है तब अल्लाह ने दुआ क़ुबूल फरमाई फरिश्ते से मुज़दा सुनाया, पाक और नेक औलाद की बशारत फरिश्ते को भेज सुनाई के जो नबियों में होगा जिन्हें हज़रत याहया अलैहिस्सलाम कहते हैं।

पता चला उस खास मकाम में दुआ क़ुबूल हुई जो मेहराब ए मरियम है.

जो मेहराब ए मरियम का वासिला ले रहे है वो अल्लाह के नबी हैं उस जगह नमाज़ पढ़ दुआ कर रहे है ये जान कर यहाँ अल्लाह की बरकतें उतरती हैं इस जगह में खास बात है इस जगह की निस्बत अल्लाह से ख़ास है।

ए अल्लाह तुझे उसी “मेहराब ए मरियम” का वास्ता मौला
उस बरकत वाली जमीन “बैत अल मुक़द्दस” के तवस्सुल से तमाम आलम ए इस्लाम की हिफाजत फरमा इस वबा से

और इस वबा (कोरोना वाइरस) से निजात दे दे-

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