चौदह सितारे पार्ट 25

9 हिजरी के अहम वाकैयात

फिलिस की तबाही

बु क़बीलाए बनी तय जिसमें मशहूर सक़ी हातम ताई पैदा हुआ था फिलिस नामी को पूजता था। फ़तेह मक्का के कुछ दिन बाद आं हज़रत ( स.व.व.अ.) ने 150 डेढ सौ सवारों समैत रबीउल अव्वल 9 हिजरी में उसकी तरफ़ हज़रत अली (अ.स.) को भेजा। अदी अब्ने हातम जो सरदारे क़बीला था भाग गया। बहुत सा माले ग़नीमत और क़ैदी हाथ आये। हज़रते अली (अ.स.) ने इन्सान और माल लशकर में बांट दिये और अदी की बहन यानी हातम ताई की बेटी सफ़ाना में बहुत ही इज़्ज़तो एहतेराम के साथ आं हज़रत की खिदमत मे पहुँचाया। उसने शराफ़ते ख़ानदान का हवाला दे कर रहम की दरख्वास्त की । आपने उसे आज़ाद कर दिया और किराया दे कर उसको उसके भाई के पास भिजवा दिया। आपके इस हुस्ने इख़लाक़ी से अदी बहुत प्रभावित हुआ। 10 हिजरी में आकर मुसलमान हो गया ।

ग़ज़वा ए तबूक़

तबूक़ और दमिश्क के बीच 12 या 14 मंज़िल पर था। हज़रत को ख़बर मिली कि नसारा शाम ने हरकुल बादशाहे रूम से चालीस हज़ार (40, 000) फ़ौज मगा कर मदीने पर हमला करने का फ़ैसला किया है। आपने हिफ़ाज़त को ध्यान में रखते हु पेश क़दमी की। मदीने का निज़ाम हज़रते अली (अ.स.) के सिपुर्द फ़रमाया और 30,000 (तीस हज़ार) फ़ौज ले कर शाम की तरफ़ रवाना हो गये। रवानगी के वक़्त हज़रत अली (अ.स.) ने अर्ज़ की मौला मुझे बच्चों और औरतों में छोड़े जाते हैं। क्या तुम इस पर राज़ी नहीं हो कि मैं उसी तरह अपना जां नशीन बना कर जाऊं जिस तरह जनाबे मूसा आपने भाई हारून को बना कर जाया करते थे। (सही बुख़ारी किताबुल मग़ाज़ी) ऐ अली ख़ुदा का हुक्म है कि मैं मदीने रहूं या तुम रहो। (फ़तेहुल बारी जिल्द 3 पृष्ठ 387 ) ग़रज़ की आप रवाना हो कर मंज़िले तबूक़ तक पहुँचे। आपने वहां दुश्मनों का 20 दिन तक इन्तेज़ार किया लेकिन कोई भी मुक़ाबले के लिये न आया। दौराने क़याम में अरीब क़रीब में दावते इस्लाम का सिलसिला जारी रहा। बिल आखिर वापस तशरीफ़ लाये। यह वाकेया रजब 9 हिजरी का है।

वाक़ऐ उक़बा

तबूक़ से वापसी में एक घाटी पड़ती थी जिसका नाम उक़बा जी फ़तक़ था। यह घाटी सवारी के लिये इन्तेहाई ख़तरनाक थी । अन्देशा यह था कि कहीं ऊंट का पांव फिसल न जाये कि हज़रत को चोट न लगे। इसी वजह से ऐलान करा दिया गया कि जब तक हज़रत का ऊँट गुज़र न जाए कोई भी घाटी के क़रीब न आय । ग़रज़ कि रवानगी हुई हज़रत सवार हुए। हुज़ैफ़ा ने मेहार (ऊँट की रस्सी) पकड़ी, अम्मार हंकाते हुये रवाना हुए। यह हज़रात समझ रहे थे कि निहायत पुर अमन जा रहे हैं नागाह बिजली चमकी और उनकी नज़र कुछ ऐसे सवारों पर पड़ी जो चेहरों को कपड़े से छुपाये हुए थे। हज़रत ने फ़रमाया ऐ हुज़ैफ़ा तुम ने पहचाना यह मुनाफ़िक़ मेरी जान लेना चाहते हैं। फिर आपने सब के नाम बता दिये और कहा किसी से कहना नहीं वरना फ़साद होगा ।

तबलीग़ सूरा ए बराअत

9 हिजरी में आं हज़रत ( स.व.व.अ.) ने 300 ( तीन सौ ) आदमियों के साथ हज़रते अबू बकर को हज और तबलीग़ सूरा ए बराअत के लिये भेजा। अभी आप ज़्यादा दूर न जाने पाये थे कि वापस बुला लिये गये और यह सआदत हज़रत अली (अ. स.) के सिपुर्द कर दी गई। हज़रत अबू बकर के एक सवाल के जवाब में फ़रमाया कि मुझे ख़ुदा का यही हुक्म है कि मैं जाऊं या मेरी आल में से कोई जाए। शाह वली उल्लाह कहते हैं कि शेख़ैन दोनों के दोनों मामूर थे मगर माज़ूल (बरखास्त) किये गये। कुर्रतुल ऐन पृष्ठ 234 सही बुखारी पैरा 2 पृष्ठ 238, कन्जुल आमाल जिल्द 1 पृष्ठ 126, दुर्रे मन्शूर जिल्द 3 पृष्ठ 310, तारीख़े ख़मीस जिल्द 2 पृष्ठ 157 से 160 तक, ख़माएसे निसाई पृष्ठ 61, रौज़ौल अनफ जिल्द 2 पृष्ठ 328, तबरी जिल्द 3 पृष्ठ 154, रियाजुल नज़रा पृष्ठ 174।

जंगे वादीउल रमल

वादी रमल मदीने से पांच मंज़िल के फ़ासले पर वाक़े है। वहां अरबों की एक बड़ी जमीअत (ग्रुप) ने मदीने पर शब ख़ू (रात के अंधेरे में चुपके से हमला करना) मारने और अचानक शहर पर क़ब्ज़ा कर के इस्लामी ताक़त को चकना चूर कर देने का मन्सूबा तैयार किया। हज़रत ( स.व.व.अ.) को जैसे ही ख़बर मिली आपने उनकी तरफ़ एक लशकर भेज दिया और अलमदारी हज़रत अबू बकर के सिपुर्द
की। उन्हें हज़ीमत (शिकस्त) हुई। फिर हज़रत उमर को अलमदार बनाया। वह ख़ैर से घर को आ गये। फिर उमर बिन आस को रवाना किया वह भी शिकस्त खा गये। जब का कामयाबी किसी तरह न हुई तो आं हज़रत ( स.व.व.अ.) ने हज़रत अली (अ.स.) को अलम दे कर रवाना किया। ख़ुदा ने अली (अ.स.) को शानदार कामयाबी अता की। जब हज़रत अली (अ.स.) वापस हुए तो आं हज़रत (स.व.व.अ.) ने खुद हज़रत अली (अ.स.) का इस्तेकबाल किया । (हबीबुस सियर, माआरिजुन नुबूवा)

वफ़ूद

9 हिजरी में वफूद आना शुरू हुए और आं हज़रत ( स.व.व.अ.) की वफ़ात से पहले तक़रीबन अरब का बड़ा हिस्सा मुसलमान हो गया। इसी हिजरी मे हुक्मे नजासते मुशरेकीन भी नाज़िल हुआ।

वसूली सदक़ात

इसी 9 हिजरी में बनी तय से अदी बिन हातम ताई, बनी हंज़ला से मालिक इब्ने नवेरा, बनी नजरान से हज़रत अली (अ.स.) जज़िया व सदक़ात वसूल करने गये और माल भिजवाया। (इब्ने खल्दून)