चौदह सितारे पार्ट 23

फ़तेह मक्का

सुलैह हुदैबिया की वजह से 10 साल तक आपसी जंगों जेदाल मना होने के बावजूद कुरैश के दुश्मन क़बिले बनू बक्र ने आं हज़रत ( स.व.व.अ.) के दुश्मन क़बीले बनू ख़ज़ाआ पर चढ़ाई कर दी और क़ुरैश की मदद से उन्हें तबाह व बरबाद कर डाला। आखिरकार हालात से मजबूर हो कर बनी ख़ज़ाआ ने आं हज़रत ( स.व.व.अ.) से मद्द मांगी। आं हज़रत ( स.व.व.अ.) ने 10 हज़ार का लश्कर तैयार कर के मक्के का इरादा किया। अबू सुफ़ियान ने जब यह तैयारी देखी तो यह दरख़्वास्त पेश करने के लिये कि सुलह नामा हुदैबिया की तजदीद (रीनीवल) कर दी जाय। मदीने आया और अपनी बेटी उम्मे हबीब रसूल (स.व.व.अ.) की पत्नी के घर गया उन्होंने यह कह कर उसे बिस्तरे रसूल (स. अ. ) से हटा दिया कि तू काफ़िरो मुशरिक है। ( अबुल फ़िदा) फिर आं हज़रत ( स.व.व.अ.) के पास गया, आपने ख़ामोशी इख़्तेयार की। फिर हज़रत अली (अ.स.) से मिला। उन्होंने भी मुंह न लगाया। फिर हज़रत फातेमा ( स.व.व.अ.) के पास पहुँचा और इमाम हसन (अ. स.) और इमाम हुसैन (अ.स.) के वास्ते से अमान मांगी उन्होंने भी कोई सहारा न दिया। इसके बाद मस्जिद में तजदीदे सुलोह का ऐलान कर के वापस चला गया। हज़रत मोहम्मद ( स.व.व.अ.) ने पूरे पूरे ध्यान के साथ जंग की ख़ुफ़िया तैयारियां कर लीं मगर यह न ज़ाहिर होने दिया कि किस तरफ़ जाने का इरादा है। इसी ख़ुफ़िया तैयारी की इस्कीम के तहत इस्कीम के तहत आपने मक्के आना जाना बिल्कुल बन्द कर दिया था। आपका ख़्याल था कि अगर मक्के वालों को वक़्त से पहले यह ख़बर मिल जायेगी तो कामयाबी मुश्किल हो जायेगी। मगर एक  सहाबी हातिब इब्ने बलतअः ने जिसके बच्चे मक्के में थे, एक औरत के ज़रिये से हमले का मुकम्मल हाल लिख भेजा । वह तो कहिये हज़रत को इत्तेला मिल गई आपने अली (अ.स.) को भेज कर ख़त वापस करा लिया अलग़रज़ 10 रमज़ान 8 हिजरी को आप अन्जान रास्तों से अचानक मक्के पहुँचे और मक्के से चार फ़रसक़ की दूरी पर सरा नतहरान पर पड़ाओ डाला। लश्कर की कसरत का चरचा हो गया। अबू सुफ़ियान हज़रते अब्बास से मशविरे से मुसलमान हो गया। आं हज़रत ( स.व.व.अ.) ने उसके लिये यह छूट कर दी कि जो उसके घर में फ़तेह मक्का के मौके पर पनाह ले उसे छोड़ दिया जाय। अबू सुफ़ियान मक्के वापस गया और उसने आं हज़रत ( स.व.व.अ.) की तरफ़ से ऐलान कर दिया कि जो मक्के में मेरे मकान में पनाह लेगा महफ़ूज़ रहेगा। जो हथियार लगाये बग़ैर सामने आयेगा उस पर हाथ न उठाया जायेगा। उसके बाद जंग शुरू हुई और थोड़ी सी रूकावट के बाद मक्के पर क़ब्ज़ा हो गया। सरदारे लशकर हज़रत अली (अ.स.) थे। आं हज़रत ( स.व.व.अ.) कसवा नामी ऊंट पर सवार हो कर मक्के में दाखिल हुए और ज़ुबैर के लगाए हुए इस्लामी झंडे के क़रीब जा कर उतरे। खेमें लगाए गए। आपने क़ुरैश से फ़रमाया बताओ तुम्हारे साथ क्या सुलूक करूं । सबने कहा आप करीम इब्ने करीम हैं हमें माफ़ फ़रमायें। आपने माफ़ी दी और आप सात मरतबा तवाफ़ के बाद दाखिले हरमे काबा हो गये और उन तमाम बुतों को अपने हाथ से तोड़ा जो नीचे थे और ऊंचे बुतों को तोड़ने के लिये हज़रत अली (अ.स.) को अपने कंधे पर चढ़ाया। अली (अ.स.) ने तमाम बुतों को तोड़ कर ज़मीन पर फेंक दिया गोया पत्थर के ख़ुदाओं को मिट्टी मे मिला दिया। मुवर्रेख़ीन का है कि जिस जगह मोहरे नबूवत थी और जहां मेराज की शब रसूल (स.व.व.अ.) के कांधे पर हाथ रखा हुआ महसूस हुआ था, उसी जगह अली (अ.स.) ने पांव रख कर बुतों को तोड़ा। उनका यह भी बयान है कि हज़रत अली (अ.स.) को रसूल (स.व.व.अ.) ने अपनी पीठ पर सवार किया और जिब्राईल (अ. स.) ने बुत तोड़ने के बाद अपने हाथों से उतारा। (तारीख़े ख़मीस जिल्द 2 पृष्ठ 92 ज़िन्देगानी मोहम्मद पृष्ठ 77, अजायब अल क़स्स पृष्ठ 278 में है कि काबे में तीन सौ साठ (360) बुत थे।

दावते बनी ख़ज़ीमा

मक्का मोअज़्ज़ेमा फ़तेह हो जाने के बाद आं हज़रत ( स.व.व.अ.) ने कुछ लोगों को तबलीग़ इस्लाम के लिये क़रीब की जगहों पर भेजा। जिनमें ख़ालिद बिन वलीद भी थे। यह लोग जब बनी ख़ज़ीमा के पास पहुँचे तो उन्होंने अपने मुसलमान होने का यकीन दिलाया लेकिन इब्ने वलीद ने कोई परवाह न की और उन पर ग़ैर इख़लाकी ज़ुल्म किया। आं हज़रत ( स.व.व.अ.) ने जब यह ख़बर सुनी तो आपने अपने बरी उज़ ज़िम्मा होने का ऐलान किया और हज़रत अली (अ.स.) को भेज कर हर क़िस्म का तावान अदा किया और ख़ू बहा दिया। (तबरी जिल्द 3 पृष्ठ 124)