चौदह सितारे पार्ट 24

जंगे हुनैन

हुक्के से तीन मील के फ़ासले पर ताएफ़ की तरफ़ एक वादी का नाम है। फ़तेह मक्का की ख़बर से बनी हवाज़न, बनी सक़ीफ़, बनी हबशम और बनी सअद ने आपस में फ़ैसला किया कि सब मिल कर मुसलमानों से लड़ें। उन्होंने अपना सरदारे लशकर मालिक इब्ने औफ़ नफ़री और अलमदार अबू जरवल को क़रार दिया और वह अपने साथ दरीद इब्ने सम्मा नमी 120 साल का तजरूबे कार सिपाही मशवेरे के लिये पांय हज़ार सिपहियों का लशकर ले कर हुनैन और ताएफ़ के बीच मक़ामे अवतास पर जमा हो गये। जब आं हज़रत ( स.व.व.अ.) को इस इजतेमा की ख़बर मिली तो आप बारह हज़ार (12,000 ) या (16, 000) सोलह हज़ार का लशकर ले कर जिसमें मक्के के दो हज़ार (2000) नौ मुस्लिम भी शामिल थे। 6 शव्वाल 8 हिजरी को दुलदुल पर सवार मक्के से निकल पड़े। हज़रत अली (अ.स.) हमेशा की तरह अलमदारे लशकर थे। मैदान में पहुँच कर हज़रत अबू बकर ने कहा कि हम लोग इतने ज़्यादा हैं कि आज शिकस्त नहीं खा सकते। मैदाने जंग में इस तरह के मंसूबे बांधे जा रहे थे कि वह दुश्मन जो पहाड़ों में छुपे हुये थे निकल आये और तीरों नैजो और पत्थरों से ऐसे हमले किये कि बुज़दिलों की जान के लाले पड़ गये। सब सर पर पांव रख कर भागे। किसी को रसूले ख़ुदा (स.व.व.अ.) की ख़बर न थी, वह पुकार रहे थे। ऐ बैअते रिज़वान वालों ! कहां जा रहे हो, लेकिन कोई न सुनता था। ग़रज़ कि ऐसी भगदड़ मची कि उसूले जंग शुरू होने से पहले ही हज़रत अली (अ.स.), हज़रते अब्बास, इब्ने हारिस और इब्ने मसूद के अलावा सब भाग गये। (सीरते हलबिया जिल्द 3 पृष्ठ 109) इस मौक़े पर अबू सुफ़ियान कह रहा था कि अभी क्या है मुसलमान समन्दर पार भागें गे।
हबीब अल सियर और रौज़ातुल अहबाब में है कि सब से पहले ख़ालिद इब्ने वलीद भागे उनके पीछे क़ुरैश के नौ मुस्लिम चले, फिर एक एक कर के महजिर व अन्सार ने राहे फ़रार इख़्तेयार की। इसी दौरान में दुश्मनों ने आं हज़रत ( स.व.व.अ.) पर हमला कर दिया जिसे जां निसारों ने रद्द कर दिया। हालात की नज़ाकत को देख कर रसूल अल्लाह ( स.व.व.अ.) खुद लड़ने के लिये आगे बढ़े मगर हज़रते अब्बास ने घोड़े की लजाम थाम ली और मुसलमानो को पुकारा, आप की आवाज़ पर नौ सौ (900) मुसलमान वापस आ गये और दुश्मन भी सब के सब मुक़ाबिल हो गये। घमासान की जंग शुरू हुई, अबू जरवल अलमदारे लशकर ने मुक़ाबिल तलब किया। हज़रत अली (अ.स.) अलमदारे लशकरे इस्लाम मुक़ाबले में तशरीफ़ लाये और एक ही वार में उसे फ़ना के घाट उतार दिया। मुसलमानों के हौसले बढ़े और कामयाब हो गये। सीरत इब्ने हश्शाम, जिल्द 2 पृष्ठ 261 में है कि इस जंग में चार मुसलमान और 70 काफ़िर क़त्ल हुए जिनमें से चालिस 40 हज़रत अली (अ.स.) को हाथ से मारे गये। इस जंग में ग़ैबी इमदाद मिली थी जिसका ज़िक्र क़ुरआने मजीद में है। इसके बाद मक़ामे अवतास में जंग हुई और वहां भी मुसलमान कामयाब हुए। इन दोनों जंगों में काफ़ी माले ग़नीमत हाथा आया। अवतास में असमा बिन्ते हलीमा साबिया भी हाथ आईं।
हलीमा सादिया की सिफ़ारिश

जंगे हुनैन की बची हुई फ़ौज ताएफ़ में पनाह गुज़ीन हो गई। आपने शव्वाल 8 हिजरी में इसके मोहासरे का हुक्म दिया और 20 दिन तक मोहासरा ( घिराव ) जारी रहा। उसके बाद आप ने मोहासरा उठा लिया और मक़ामे जवाना पर चले गये। वहां पांच ज़िकाद को बनी हवाज़न की तरफ़ से दरख्वास्त आई कि हम आपकी इताअत क़ुबूल करते हैं। आप हमारी औरतें माल वापस कर दीजिये । बनी हवाज़न की सिफ़ारिश में जनाबे हलीमा साबीया भी आई। आं हज़रत ( स.व.व.अ.) ने उनकी सिफ़ारिश कुबूल फ़रमाई।