Hazrat Syedna Rasheed Al Deen Ahmad Al Madni Al Gaznavi [r.a.]

हज़रत सैय्यदना रशीदउद्दीन मदनी हसनी अल हुसैनी रहमतउल्लाह अलैहहज़रत सैय्यदना रशीदउद्दीन मदनी रहमतउल्लाह अलैह सन् 528 हिजरी मे मदीना तय्यबा मे हज़रत सैय्यदना यूसुफ़ रहमतउल्लाह अलैह के यहाँ पैदा हुए! हज़रत सैय्यदना हसन अल जव्वाद रहमतउल्लाह अलैह की सिलसिला-ए-औलाद मे हज़रत रशीदउद्दीन मदनी रहमतउल्लाह अलैह वो पहले शख़्स हैं जो मदीना मुनव्वरा से बग़दाद तशरीफ़ लाएं! इनके जलालते शान और मर्तबा रूहानी का अन्दाज़ा इस बात से किया जा सकता है कि सैकड़ो तुल्बा व उलेमा हर वक़्त इनके काफ़्ले के साथ रहते थें! हज़रत सैय्यदना रशीदउद्दीन मदनी रहमतउल्लाह अलैह जब बग़दाद तशरीफ़ लाएं तो उस वक़्त वहाँ हज़रत सैय्यदना मोहिउद्दीन अब्दुल क़ादिर जीलानी रहमतउल्लाह अलैह मस्नदे हिदायत पर जलवा फ़िकन थें, हज़रत अब्दुल क़ादिर जीलानी रहमतउल्लाह अलैह ने हज़रत अमीर रशीदउद्दीन मदनी रहमतउल्लाह अलैह का पूरे जोशो ख़रोश के साथ ख़ैरमख़दम किया और आपको अपनी ख़ानकाह मे  ठहराया! हज़रत सैय्यदना रशीदउद्दीन मदनी रहमतउल्लाह अलैह और हज़रत सैय्यदना मोहिउद्दीन अब्दुल क़ादिर जीलानी रहमतउल्लाह अलैह अमज़ात थें और इसी ताल्लुक़े नस्बी और हमराही होने के सबब हज़रत सैय्यदना रशीदउद्दीन मदनी रहमतउल्लाह अलैह को हज़रत सैय्यदना अब्दुल क़ादिर जीलानी रहमतउल्लाह अलैह की हमशीरा सैय्यदा बीबी मात रहमतउल्लाह अलैहा मन्सूब थीं! हज़रत सैय्यदना रशीदउद्दीन मदनी रहमतउल्लाह अलैह ने कुछ साल बग़दाद मे क़याम किया और उसके बाद मै अपने ज़ौजा (आप उस वक़्त हामला थीं) और मुरीदों मोतक़िद के साथ हज बैतउल्लह शरीफ़ के लिये मक्का मुकर्रमा तशरीफ़ ले गएँ और उसके बाद अपने वतन मदीना मुनव्वरा लौट गएँ और वहाँ पहुंचते ही अपने जद् अमजद पैग़म्बरे ख़ुदा शहेंशाहे कुल जहाँ इमामुल अम्बिया व औलिया वजहे तख़लीके कायनात व लौहो क़लम जनाब मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम के रौज़ा-ए-अतहर की ज़ियारत मे मशग़ूल हुएं बस उसी के दो चार दिन के बाद क़ुतुबउल अक़ताब ग़ौसुल आलमीन हज़रत सैय्यदना क़ुतुबउद्दीन मदनी हसनी अल हुसैनी रहमतउल्लाह अलैह ने मदीना तय्यबा मे आँखे खोली! हज़रत सैय्यदना रशीदउद्दीन मदनी रहमतउल्लाह अलैह ने अस्सी साल हयाते ज़ाहिरी पाया और सन् 608 हिजरी मे इस दुनियाए फ़ानी से पर्दा फ़रमा गएँ और आपकी रफ़ाक़त मे सात सौ अठ्ठाईस (728) आदमी थें जो सब की सब आलिम व ज़ाहिद थें! कुछ सीरत व तारीख़ से पता चलता है कि आप ने तातारियों के हंगामे मे जाम-ए-शहादत नोश फ़रमाया और आपके साथ बहुत से उलेमा ने भी शहादत नोश फ़रमाया जो आपके हमराह रहते थें! बाज़ दूसरे तज़किरह निगारों ने लिखा है कि वो आख़िर तक बग़दाद मे मुक़ीम रहें और वहीं वफ़ात पाई और हज़रत शैख़ अब्दुल क़ादिर जीलानी रहमतउल्लाह अलैह के ख़ज़ीरे मे मदफ़न हुए

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