
शिष्यता या प्रतिनिधित्व
हुजूर वारिस पाक जन्मजात ऋषि थे और इनके जन्म से ही विशेष और अद्भुत कार्य देखे जाने लगे। अतः लोग आपको सिद्ध और ईश्वर के प्रेम में लीन देखने तथा समझने लगे। मान्यवर हजरत खादिम अली शाह ने आपको केवल ग्यारह वर्ष की उम्र में गुरुमुख करके अपनी प्रतिनिधित्व से सुशोभित किया। कुछ लोगों ने इस कार्य पर तर्क-वितर्क भी किया किन्तु आपने इसकी कोई परवाह नहीं किया। मान्यवर ख़ादिम अली शाह कहते थे कि आप मुरीद नहीं है मुराद हैं। हाजी वारिस पाक उनके निसबती छोटे भाई थे फिर भी वह इनकी बड़ी इज़्ज़त करते थे।
सज्जादा नशीनी
हज़रत ख़ादिम अली शाह की शिक्षा-दीक्षा में अभी वारिस पाक को थोड़ा समय व्यतीत हुआ था कि अचानक हज़रत ख़ादिम अली शाह की तबीयत ख़राब हो गई और वृद्धापन के कारण और ख़राब होती गई। अंततः मृत्यु में परिवर्तित हो गई और एक दिन आपने उपस्थित चेलों और सेवकों को शान्ति तथा संतोष दिया तत्पश्चात् कलम-ए-शहादत उच्च स्वर से पढ़ा और कलमा पढ़ते-पढ़ते आपकी आत्मा ने इस नश्वर शरीर को त्याग दिया। पर्दा करने की तिथि १३ या १४ सफ़र बतायी जाती है। कफ़न-दफ़न के बाद तीसरे दिन फ़ातेहा ख़ानी की रस्म अदा की गई। इस अवसर पर तमाम छोटे- बड़े तथा सम्मानित व्यक्ति एकत्र थे। उसी सभा में जॉनशीनी (उत्तराधिकारी) के लिए बात चली। मौलवी मुन्ना जान जो आपके लंगरखाने के प्रबन्धक और व्यवस्थापक थे एक सुन्दर क़िस्ती (गोल सा बर्तन) में एक पगड़ी रखकर सभी उपस्थितगण के सामने प्रस्तुत किया और कहा जिसको योग्य समझा जाय उसे यह पगड़ी सौंप दी जाय। चूंकि मुन्ना जान साहब को इस पद की चाह थी । अतः विवाद खड़ा हो गया। अंतत: यह स्थान किसको दिया जाय और कौन इसके लायक है ? इसी बीच सआदत अली जो हज़रत गौस ग्वालियारी के पोते हैं उठे और वारिस पाक का हाथ अपने हाथ में लेकर कहा मेरे विचार में इनसे उत्तम कोई नहीं है। तुरन्त ही लोगों ने एक स्वर से समर्थन किया और वह वस्त्र सरकार वारिस के शरीर पर सुसज्जित किया गया।

