जातुलउयून (आंख वाला)

जातुलउयून (आंख वाला)

जंगे फारस में इस्लामी सिपाह के सरदार हजरत अकराह बिन हाबिस थे। यह ऐसे बहादुर और चुलबुली तबीयत के शख़्स थे कि बगैर कुफ्फार के साथ जिहाद के उनको चैन न आता था । चुनांचे उन्होंने जब दुशमन से जंग जारी रखी एक हजार तीर अंदाज़ों को आगे बढ़ाया और हुक्म दिया कि दुशमनों की आंखों का निशाना बांधकर एक साथ तीर अंदाज़ी करें। चुनाचे उन एक हज़ार तीर अंदाज़ मुजाहिदीन ने कमानों में तीर चढ़ाकर निशाने बांधकर एक हज़ार तीर ऐसे तरीके से फेंके कि किसी तीर ने भी निशाना खता न किया। एक चुटकी बजाने में दुशमनों के सिपाहियों की एक हजार आंख छिद गयीं। इसी वास्ते मुसलमानों ने उस दिन का नाम ‘जातुल उयून’ यानी आंख वाला दिन रख दिया।

ईरानियों का सरदार शेरज़ाद नामी एक शख्स था। उसने दम भर में अपने एक हज़ार सिपाहियों की एक हज़ार आंखें ख़त्म होते देखीं तो फौरन लड़ाई से रुककर सुलह का पैग़ाम भेज दिया मगर उसकी शराइत हज़रत खालिद बिन वलीद रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ने मंजूर न फरमाई। लड़ाई फिर ज़ोर शोर से शुरू हो गयी। ईरानियों को अपने खंदक महफूज़ किये हुए थे। उन खंदकों के बाइस मुसलमानों को उनके लशकर तक पहुंचना दुश्वार था । आख़िर मुसलमानों ने खंदक के पार उतरने के लिये यह कार्रवाई शुरू की कि अपनी फ़ौज से तमाम कमज़ोर और मंरीज़ ऊंट ज़बह करके ख़दक् में डाल दिये। उन ऊंटों की लाशों से खंदक का एक हिस्सा पाट के पुल सा बनाया और उसी पर से होकर दुशमन की सफ़ों की तरफ बढ़े। ईरानियों ने बढ़कर रोका मगर मुसलमानों के जज़्बे के सामने ढह गये। शेरज़ाद ने फिर प्यामे सुलह दिया। अबकी मर्तबा जो शर्ते पेश की गयीं वह हज़रत खालिद रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ने कुबूल फरमा लीं इस सुलह में एक शर्त यह भी थी कि दुशमनों को बगैर माल व असबाब के ऐसी जगह पहुंचा दिया जाये जहां से अपनी हुदूद में जा सकें। चुनांचें मुसलमानों ने यही किया । शेरज़ाद को मअ उसकी फौज के सरहद अजम (शहर अजम की सरहद ) पर पहुंचा दिया। शहर अबना मअ तमाम साज़ व सामान के सहाबाए किराम के कब्ज़े में आ गया। (तारीखे इस्लाम सफा ३७६)

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