Ramzan ki Azmat रमज़ान की अज़मत

इ़बादत का दरवाज़ा :e9f4a10040d26bcfa4c3d8138be159bd_ramzan-ki-azmat-1440-c-90

रोज़ा बाति़नी इ़बादत है, क्यूंकि हमारे बताए बग़ैर किसी को यह इ़ल्म नहीं हो सकता है कि हमारा रोज़ा है और अल्लाह बाति़नी इ़बादत को ज्‍़यादा पसन्द फ़रमाता है। एक ह़दीसे़ पाक के मुत़ाबिक़, “रोज़ा इ़बादत का दरवाज़ा है।” (अल जामिउ़स़्स़ग़ीर, स़-फ़हा:146, ह़दीस़:2415)

नुज़ूले कु़रआन :

इस माहे मुबारक की एक ख़ुस़ूसि़य्यत यह भी है कि अल्लाह ने इस में क़ुरआने पाक नाजि़ल फ़रमाया है। चुनान्चे मुक़द्दस क़ुरआन में खु़दाए रह़मान का नुजू़ले क़ुरआन और माहे रमज़ान के बारे में फ़रमाने आलीशान है :

रमज़ान का महीना, जिस में क़ुरआन उतरा, लोगों के लिये हिदायत और रहनुमाई और फ़ैस़ले की रौशन बातें, तो तुम में जो कोई यह महीना पाए ज़रूर इस के रोज़े रखे और जो बीमार या सफ़र में हो, तो उतने रोज़े और दिनों में। अल्लाह तुम पर आसानी चाहता है और तुम पर दुश्वारी नहीं चाहता और इसलिये कि तुम गिनती पूरी करो और अल्लाह की बड़ाई बोलो इस पर कि उस ने तुम्हें हिदायत की और कहीं तुम ह़क़ गुज़ार हो। (कंजुल ईमान पारह:2, अल ब-क़रह:185)

रमज़ान की तारीफ़ :

इस आयते मुक़द्दसा के इब्तिदाई हि़स़्स़े के तह़्त ह़ज़रत मुफ़्ती अह़मद यार ख़ान र.अ. तफ़्सीरे नइ़र्मी में फ़रमाते हैं :

“रमज़ान” या तो “रह़मान” की त़रह़ अल्लाह का नाम है, चूंकि इस महीने में दिन रात अल्लाह की इ़बादत होती है। लिहाज़ा इसे शहरे रमज़ान यानी अल्लाह का महीना कहा जाता है। जैसे मस्जिद व काबा को अल्लाह का घर कहते हैं कि वहां अल्लाह के ही काम होते हैं। ऐसे ही रमज़ान अल्लाह का महीना है कि इस महीने में अल्लाह के ही काम होते हैं। रोज़ा तरावीह़ वगै़रा तो हैं ही अल्लाह के। मगर ब ह़ालते रोज़ा जो जाइज़ नौकरी और जाइज़ तिजारत वगै़रा की जाती है वो भी अल्लाह के काम क़रार पाते हैं। इसलिये इस माह का नाम रमज़ान यानी अल्लाह का महीना है। या यह “रमज़ाअ” से मुश्तक़ है।

रमज़ाअ, मौसिमे ख़रीफ़ की बारिश को कहते हैं, जिस से ज़मीन धुल जाती है और “रबीअ़” की फ़स़्ल खू़ब होती है। चूंकि यह महीना भी दिल के गर्दो ग़ुबार धो देता है और इस से आ’माल की खेती हरी भरी रहती है इसलिये इसे रमज़ान कहते हैं। “सावन” में रोज़ाना बारिशें चाहियें और “भादों” में चार। फिर “असाड़” में एक। इस एक से खेतियां पक जाती हैं। तो इसी त़रह़ ग्यारह महीने बराबर नेकियां की जाती रहीं। फिर रमज़ान के रोज़ों ने इन नेकियों की खेती को पका दिया। या यह “रम्ज़” से बना जिस के मायने हैं “गरमी या जलना।” चूंकि इस में मुसल्मान भूक प्यास की तपिश बरदाश्त करते हैं या यह गुनाहों को जला डालता है, इसलिये इसे रमज़ान कहा जाता है।

(कन्जु़ल उ़म्माल की आठवीं जिल्द के स़-फ़ह़ा नम्बर दो सौ सत्‍तरह पर ह़ज़रते सय्यिदुना अनस रजि़. से रिवायत नक़्ल की गई है कि नबीए करीमﷺ ने इर्शाद फ़रमाया, “इस महीने का नाम रमज़ान रखा गया है क्यूंकि यह गुनाहों को जला देता है।”)

महीनों के नाम की वजह :

ह़ज़रते मुफ़्ती अह़मद यार ख़ान र.अ. फ़रमाते हैं: बा’ज़ मुफ़स्सिरीन ने फ़रमाया कि जब महीनों के नाम रखे गए तो जिस मौसिम में जो महीना था उसी से उस का नाम हुआ। जो महीना गरमी में था उसे रमज़ान कह दिया गया और जो मौसिमे बहार में था उसे रबीउ़ल अव्वल और जो सर्दी में था जब पानी जम रहा था उसे जुमादिल ऊला कहा गया। इस्लाम में हर नाम की कोई न कोई वजह होती है और नाम काम के मुत़ाबिक़ रखा जाता है। रमज़ान बहुत ख़ूबियों का जामेअ़ था इसी लिये उस का नाम रमज़ान हुआ। (तफ़्सीरे नइ़र्मी, जिल्द:2, स़-फ़ह़ा:205)

सोने के दरवाज़े वाला मह़ल :

सय्यिदुना अबू सई़द खु़दरी रजि़. से रिवायत है, हुजूरﷺ फ़रमाते हैं :

“जब माहे रमज़ान की पहली रात आती है तो आस्मानों और जन्नत के दरवाजे़ खोल दिय जाते हैं और आखि़र रात तक बन्द नहीं होते। जो कोई बन्दा इस माहे मुबारक की किसी भी रात में नमाज़ पढ़ता है तो अल्लाह उस के हर सज्दे के एवज़ (यानी बदले में) उस के लिये पन्द्रह सौ1500 नेकियां लिखता है और उस के लिये जन्नत में सुर्ख याक़ूत का घर बनाता है। जिस में साठ हजार 60000 दरवाज़े होंगे। और हर दरवाजे़ के पट सोने के बने होंगे जिन में याकू़ते सुर्ख़ जड़े होंगे। पस जो कोई माहे रमज़ान का पहला रोज़ा रखता है तो अल्लाह महीने के आखि़र दिन तक उस के गुनाह माफ़ फ़रमा देता है, और उस के लिये सु़ब्ह़ से शाम तक सत्‍तर हज़ार फ़रिश्ते दुआए मगि़्फ़रत करते रहते हैं। रात और दिन में जब भी वो सज्दा करता है उस के हर सज्दे के एवज़ (यानी बदले) उसे (जन्नत में) एक एक ऐसा दरख़्त अ़त़ा किया जाता है कि उस के साए में घौड़े सुवार पांच सौ बरस तक चलता रहे।” (शुउ़बुल ईमान, जिल्द:3, स़-फ़ह़ा:314, ह़दीस़:3635)

खु़दा का किस क़दर अ़ज़ीम एह़सान है कि उस ने हमें अपने ह़बीबﷺ के तुफ़ैल ऐसा माहे रमज़ान अ़त़ा फ़रमाया कि इस माहे मुकर्रम में जन्नत के तमाम दरवाजे़ खुल जाते हैं। और नेकियों का अज्र खू़ब खू़ब बढ़ जाता है। बयान कर्दा ह़दीस़ के मुत़ाबिक़ रमज़ानुल मुबारक की रातों में नमाज़ अदा करने वाले को हर एक सज्दे के बदले में पन्दरह सौ नेकियां अ़त़ा की जाती हैं नीज़ जन्नत का अ़ज़ीमुश्शान मह़ल मज़ीद बर आं। इस ह़दीस़े मुबारक में रोज़ादारों के लिये यह बिशारते उ़ज़्मा भी मौजूद है कि सु़ब्ह़ ता शाम सत्‍तर हज़ार फ़रिश्ते उन के लिये दुआए मगि़्फ़रत करते रहते हैं।

पांच5 ख़ुस़ूस़ी करम :

ह़ज़रते सय्यिदुना जाबिर बिन अ़ब्दुल्लाह रजि़. से रिवायत है कि हुजूरﷺ फरमाते हैं : “मेरी उम्मत को माहे रमज़ान में पांच चीज़ें ऐसी अ़त़ा की गईं जो मुझ से पहले किसी नबी को न मिलीं :

(1) जब रमज़ानुल मुबारक की पहली रात होती है तो अल्लाह उन की त़रफ़ रह़मत की नज़र फ़रमाता है और जिस की त़रफ़ अल्लाह नज़रे रह़मत फ़रमाए उसे कभी भी अ़ज़ाब न देगा

(2) शाम के वक़्त उन के मुंह की बू (जो भूक की वजह से होती है) अल्लाह तआला के नज़्दीक मुश्क की खु़श्बू से भी बेहतर है

(3) फ़रिश्ते हर रात और दिन उन के लिये मगि़्फ़रत की दुआएं करते रहते हैं

(4) अल्लाह तआला जन्नत को हु़क्म फ़रमाता है, “मेरे (नेक) बन्दों के लिये मुज़य्यन (यानी आरास्ता) हो जा अ़न क़रीब वो दुनिया की मशक़्क़त से मेरे घर और करम में राह़त पाएंगे

(5) जब माहे रमज़ान की आखि़री रात आती है तो अल्लाह सब की मगि़्फ़रत फ़रमा देता है। क़ौम में से एक शख़्स़ ने खडे़ हो कर अ़र्ज़ की, या रसूलल्लाह क्या यह लैलतुल क़द्र है ? इर्शाद फ़रमाया: “नहीं क्या तुम नहीं देखते कि मज़्दूर जब अपने कामों से फ़ारिग़ हो जाते हैं तो उन्हें उजरत दी जाती है।” (अत्‍तरग़ीब वत्‍तरहीब, जिल्द:2, स़-फ़ह़ा:56, ह़दीस़:7)

स़ग़ीरा गुनाहों का कफ़्फ़ारा :

ह़ज़रते सय्यिदुना अबू हुरैरा रजि़. से मरवी है, हुज़ूरे अकरमﷺ फरमाते हैं, “पांचों नमाज़ें, और जुमा अगले जुमा तक और माहे रमज़ान अगले माहे रमज़ान तक गुनाहों का कफ़्फ़ारा हैं जब तक कि कबीरा गुनाहों से बचा जाए।” (स़ह़ीह़ मुस्लिम, स़-फ़ह़ा:144, ह़दीस़:233)

तौबा का त़रीक़ा :

रमज़ानुल मुबारक में रहमतों की झमाझम बारिशें और गुनाहे स़ग़ीरा के कफ़्फ़ारे क सामान हो जाता है। गुनाहे कबीरा तौबा से माफ़ होते हैं। तौबा करने का त़रीक़ा यह है कि जो गुनाह हुआ ख़ास़ उस गुनाह का जि़क्र कर के दिल की बेज़ारी और आइन्दा उस से बचने का अ़ह्द कर के तौबा करे। म-स़लन झूट बोला, तो बारगाहे खु़दावन्दी में अ़र्ज़ करे, या अल्लाह! मैं ने जो यह झूट बोला इस से तौबा करता हूं और आइन्दा नहीं बोलूंगा। तौबा के दौरान दिल में झूट से नफ़रत हो और “आइन्दा नहीं बोलूंगा” कहते वक़्त दिल में यह इरादा भी हो कि जो कुछ कह रहा हूं ऐसा ही करूंगा जभी तौबा है। अगर बन्दे की ह़क़ तलफ़ी की है तो तौबा के साथ साथ उस बन्दे से माफ़ करवाना भी ज़रूरी है।

 

फरमाने मुस्‍तफाﷺ

माहे रमज़ान के फ़ज़ाइल से कुतुबे अह़ादीस़ मालामाल हैं। रमज़ानुल मुबारक में इस क़दर बरकतें और रहमतें हैं कि हमारे हुज़ूरे अकरमﷺ फरमाते हैं, “अगर बन्दों को मालूम होता कि रमज़ान क्या है तो मेरी उम्मत तमन्ना करती कि काश! पूरा साल रमज़ान ही हो।” (स़ह़ीह़ इब्ने खु़जै़मा, जिल्द:3, स़-फ़ह़ा:190, ह़दीस़:1886)

ह़ज़रते सय्यिदुना सलमान फ़ारसी रजि फ़रमाते हैं कि हुज़ूरे अकरमﷺ ने माहे शा’बान के आखि़री दिन बयान फ़रमाया : “ऐ लोगो! तुम्हारे पास अ़ज़मत वाला बरकत वाला महीना आया, वो महीना जिस में एक रात (ऐसी भी है जो) हज़ार महीनों से बेहतर है, इस (माहे मुबारक) के रोज़े अल्लाह ने फ़र्ज़ किये और इस की रात में कि़याम1 ततव्वुअ़ (यानी सुन्नत) है, जो इस में नेकी का काम करे तो ऐसा है जैसे और किसी महीने में फ़र्ज़ अदा किया और इस में जिस ने फ़र्ज़ अदा किया तो ऐसा है जैसे और दिनों में सत्‍तर फ़र्ज़ अदा किये। यह महीना स़ब्र का है और स़ब्र का स़वाब जन्नत है और यह महीना मुआसात (यानी ग़म ख़्वारी और भलाई) का है और इस महीने में मोमिन का रिज़्क़ बढ़ाया जाता है। जो इस में रोज़ादार को इफ़्त़ार कराए उस के गुनाहों के लिये मगि़्फ़रत है और उस की गरदन आग से आज़ाद कर दी जाएगी। और इस इफ़्त़ार कराने वाले को वैसा ही स़वाब मिलेगा जैसा रोज़ा रखने वाले को मिलेगा। बग़ैर इस के कि उस के अज्र में कुछ कमी हो।”

हम ने अ़र्ज़ की, या रसूलल्लाह हम में से हर शख़्स़ वो चीज़ नहीं पाता जिस से रोज़ा इफ़्त़ार करवाए। आप ने इर्शाद फ़रमाया: अल्लाह तआला यह स़वाब (तो) उस (शख़्स़) को देगा जो एक घूंट दूध या एक खजूर या एक घूंट पानी से रोज़ा इफ़्त़ार करवाए और जिस ने रोज़ादार को पेट भर कर खिलाया, उस को अल्लाह तआला मेरे ह़ौज़ से पिलाएगा कि कभी प्यासा न होगा। यहां तक कि जन्नत में दाखि़ल हो जाए।

यह वो महीना है कि

इस का इब्तिदाई दस दिन रह़मत है और

दरमियानी दस दिन मगि़्फ़रत है और

आखि़री दस दिन जहन्नम से आज़ादी है।

जो अपने गु़लाम पर इस महीने में तख़्फ़ीफ़ करे (यानी काम कम ले) अल्लाह तआला उसे बख़्श देगा और जहन्नम से आज़ाद फ़रमा देगा

इस महीने में चार बातों की कस़रत करो। इन में से दो2 ऐसी हैं जिन के ज़रीए़ तुम अपने रब को राज़ी करोगे और बकि़य्या दो से तुम्हें बे नियाज़ी नहीं। पस वो दो बातें जिन के ज़रीए़ तुम अपने रब को राज़ी करोगे वो यह हैं: (1) की गवाही देना (2) इस्तिग़्फ़ार करना। जब कि वो दो बातें जिन से तुम्हें ग़ना (बे नियाज़ी) नहीं वो यह हैं: (1) अल्लाह तआला से जन्नत त़लब करना (2) जहन्नम से अल्लाह की पनाह त़लब करना।” (स़ह़ीह़ इब्ने ख़ुज़ैमा, जिल्द:3, स़-फ़ह़ा:1887)

अभी जो ह़दीस़े पाक बयान की गई इस में माहे रमज़ानुल मुबारक की रहमतों, बरकतों और अ़ज़मतों का खू़ब तजि़्करा है। इस माहे मुबारक में कलमा शरीफ़ ज्‍़यादा ता’दाद में पढ़ कर और बार बार इस्तिग़्फ़ार यानी खू़ब तौबा के ज़रीए़ अल्लाह तआला को राज़ी करने की कोशश करनी है। और इन दो बातों से तो किसी स़ूरत में भी लापरवाही नहीं होनी चाहिये यानी अल्लाह तआला से जन्नत में दाखि़ला और जहन्नम से पनाह की बहुत ज्‍़यादा इल्तिजाएं करनी हैं।

रमज़ानुल मुबारक के चार नाम :

माहे रमज़ान का भी क्या खू़ब फै़ज़ान है! ह़ज़रत मुफ़्ती अह़मद यार ख़ान र.अ. तफ़्सीरे नई़मी में फ़रमाते हैं: “इस माहे मुबारक के कुल चार नाम हैं (1) माहे रमज़ान (2) माहे स़ब्र (3) माहे मुआसात और (4) माहे वुस्अ़ते रिज़्क़।” मज़ीद फ़रमाते हैं, रोज़ा स़ब्र है जिस की जज़ा रब है और वो इसी महीने में रखा जाता है। इसलिये इसे माहे स़ब्र कहते हैं। मुआसात के मायने हैं भलाई करना। चूंकि इस महीने में सारे मुसल्मानों से ख़ास़ कर अहले क़राबत से भलाई करना ज्‍़यादा स़वाब है इसलिये इसे माहे मुआसात कहते हैं इस में रिज़्क़ की फ़राख़ी भी होती है कि ग़रीब भी ने’मतें खा लेते हैं, इसी लिये इस का नाम माहे वुस्अ़ते रिज़्क़ भी है।” (तफ़्सीरे नई़मी, जिल्द:2, स़-फ़ह़ा:208)

Ramadan ke 13 Huruf “माहे रमज़ानुल मुबारक” के 13 ह़ुरूफ़

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1

का’बए मुअ़ज़्ज़मा मुसल्मानों को बुला कर देता है और यह आ कर रहमतें बांटता है। गोया वो (यानी काबा) कुंवां है और यह (यानी रमज़ान शरीफ़) दरया, या वो (यानी काबा) दरया है और यह (यानी रमज़ान) बारिश।

2

हर महीने में ख़ास़ तारीखें और तारीख़ों में भी ख़ास़ वक़्त में इ़बादत होती है। मस़लन बक़र ईद की चन्द (मख़्स़ूस़) तारीख़ों में ह़ज, मुह़र्रम की दस्वीं तारीख़ अफ़्ज़ल, मगर माहे रमज़ान में हर दिन और हर वक़्त इ़बादत होती है। रोज़ा इ़बादत, इफ़्त़ार इ़बादत, इफ़्त़ार के बाद तरावीह़ का इन्तिज़ार इ़बादत, तरावीह़ पढ़ कर सेहरी के इन्तिज़ार में सोना इ़बादत, फिर सेहरी खाना भी इ़बादत अल ग़रज़ हर आन में खु़दा की शान नज़र आती है।

3

रमज़ान एक भट्टी है जैसे कि भट्टी गन्दे लोहे को स़ाफ़ और स़ाफ़ लोहे को मशीन का पुर्जा बना कर क़ीमती कर देती है और सोने को ज़ेवर बना कर इस्ते’माल के लाइक़ कर देती है। ऐसे ही माहे रमज़ान गुनहगारों को पाक करता और नेक लोगों के दरजे बढ़ाता है।

4

रमज़ान में नफ़्ल का स़वाब फ़र्ज़ के बराबर और फ़र्ज़ का स़वाब सत्‍तर गुना मिलता है।

5

बा’ज़ उ़-लमा फ़रमाते हैं कि जो रमज़ान में मर जाए उस से सुवालाते क़ब्र भी नहीं होते।

6

इस महीने में शबे क़द्र है। गुज़श्ता आयत से मालूम हुआ कि कु़रआन रमज़ान में आया और दूसरी जगह फ़रमाया:- बेशक हम ने इसे शबे क़द्र में उतारा। (पारह 30, अल क़द्र:1) दोनों आयतों के मिलाने से मालूम हुआ कि शबे क़द्र रमज़ान में ही है और वो ग़ालिबन सत्‍ताईस्वीं शब है। क्यूंकि लैलतुल क़द्र में नौ हु़रूफ़ है और यह लफ़्ज़ सूरए क़द्र में तीन बार आया। जिस से सत्‍ताईस ह़ासि़ल हुए मालूम हुआ कि वो सत्‍ताईस्वीं शब है।

7

रमज़ान में इब्लीस कै़द कर लिया जाता है और दोज़ख़ के दरवाजे़ बन्द हो जाते हैं जन्नत आरास्ता की जाती है इस के दरवाज़े खोल दिये जाते हैं। इसी लिये इन दिनों में नेकियों की जि़यादती और गुनाहों की कमी होती है जो लोग गुनाह करते भी हैं वो नफ़्से अम्मारा या अपने साथी शैत़ान (क़रीन) के बहकाने से करते हैं।

8

रमज़ान के खाने पीने का हि़साब नहीं।

9

कि़यामत में रमज़ान व कु़रआन रोज़ादार की शफ़ाअ़त करेंगे कि रमज़ान तो कहेगा, मौला! मैं ने इसे दिन में खाने पीने से रोका था और कु़रआन अ़र्ज़ करेगा कि या रब! मैं ने इसे रात में तिलावत व तरावीह़ के ज़रीए़ सोने से रोका।

10

हुज़ूरे अकरमﷺ रमज़ानुल मुबारक में हर कै़दी को छोड़ देते थे और हर साइल को अ़त़ा फ़रमाते थे। रब भी रमज़ान में जहन्नमियों को छोड़ता है। लिहाज़ा चाहिये कि रमज़ान में नेक काम किये जाएं और गुनाहों से बचा जाए।

11

कु़रआने करीम में सि़र्फ रमज़ान शरीफ़ ही का नाम लिया गया और इसी के फ़ज़ाइल बयान हुए। किसी दूसरे महीने का न स़रा-ह़तन नाम है न ऐसे फ़ज़ाइल। महीनों में सि़र्फ माहे रमज़ान का नाम क़ुरआन शरीफ़ में लिया गया। औरतों में सि़र्फ बीबी मरयम का नाम क़ुरआन में आया। स़ह़ाबा में सि़र्फ हज़रते सय्यिदुना ज़ैद इब्ने हारिसा रजि का नाम कु़रआन में लिया गया जिस से इन तीनों की अ़ज़मत मालूम हुई।

12

रमज़ान में इफ़्त़ार और सेहरी के वक़्त दुआ क़बूल होती है । यानी इफ़्त़ार करते वक़्त और सेहरी खा कर। यह मरतबा किसी और महीने को ह़ासि़ल नहीं।

13

रमज़ान में पांच हु़रूफ़ हैं से मुराद “रह़्मते इलाही , से मुराद मह़ब्बते इलाही , से मुराद ज़माने इलाही , से अमाने इलाही , से नूरे इलाही। और रमज़ान में पांच इ़बादात ख़ुस़ूस़ी होती हैं। रोज़ा, तरावीह़, तिलावते कु़रआन, ए’तिकाफ़, शबे क़द्र में इ़बादात। तो जो कोई सि़द्क़े दिल से यह पांच इ़बादात करे वो उन पांच इन्आमों का मुस्तह़क़ है।” (तफ़्सीरे नइ़र्मी, जिल्द:2, स़-फ़ह़ा:208)

 

Sound Waves

Earliest sound waves in the universe.

Today physicists have an audio recording of the Big Bang, 380,000 years compressed to 100 seconds. Click here and listen to the Sound Of The Big Bang.

A 100-second recording represents the sound from about 380,000 years after the Big Bang until about 760,000 years after the Big Bang.

The original sound waves were not temperature variations, though, but were real sound waves propagating around the universe,’ he said. Cramer noted, however, that the 2003 data lacked high-frequency structure. More complete data were recently gathered by an international collaboration using the European Space Agency’s Planck satellite mission, which has detectors so sensitive that they can distinguish temperature variations of a few millionths of a degree in the cosmic microwave background. That data were released in late March and led to the new recordings.

As the universe cooled and expanded, it stretched the wavelengths to create “more of a bass instrument,” Cramer said. The sound gets lower as the wavelengths are stretched farther, and at first it gets louder but then gradually fades. The sound was, in fact, so “bass” that he had to boost the frequency 100 septillion times (that’s a 100 followed by 24 more zeroes) just to get the recordings into a range where they can be heard by humans.
University of Washington, Listening to the Big Bang- in high fidelity (audio), 2013

But 1400 years ago this was portrayed in the Quran:

[Quran 41.11] Then He directed himself to the Heaven when it was smoke and then said to it and to Earth: “Come willingly or by force” they said “We do come willingly”

The heaven “said” implies the heaven had a voice. Voice means it emitted a sound wave (not a gravitational wave nor an electromagnetic wave). Today we know that heaven gave a sound wave that lasted 380,000 years.

Minerals

Minerals have different colors. minerals

Different minerals have different colors. But it is very rare to see the same mountain streaked with different colors. This picture is from Peru.

But 1400 years ago this was portrayed in the Quran:

Quran 35.28 Have you not seen that Allah sends down water from the sky? With it We produce fruits of various colors. And in the mountains are streaks of white and red, varying in their hue and pitch-black.

Mountains with streaked colors. But there is no such thing in the desert of Arabia; this image is from Peru.