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आपका गहवारे में कल्ला ए अज़दर दो पारा करना
एक दफ़ा का जिक्र है कि हवालिये मक्का में एक निहायत ज़बर दस्त और तवील अज़दहा आ गया है और उसने तबाही मचा दी, एक लशकर ने उसे मारने की कोशिश की मगर कामयाब न हुआ। एक दिन वह अज़दहा मदीने की तरफ़ चला, जब क़रीब पहुँचा, शहरे मदीना में हलचल मच गई। लोग घरों को छोड़ कर भागने लगे। इत्तेफ़ाक़न वह अज़दहा ख़ाना ए अबू तालिब (अ. स.) में दाखिल हो गया। वहां मौला ए काएनात गहवारे में फ़रोकश थे और उनकी मादरे गेरामी कहीं बाहर तशरीफ़ ले गईं थी। जब वह अज़दहा गहवारे के क़रीब पहुँचा तो यदुल्लाह उसके दोनो जबड़ों को पकड़ कर दो कर दिया। रसूले ख़ुदा स. ने मसर्रत का इज़हार किया, अवाम ने दादे शुजाअत दी। माँ ने वापस आकर माजरा देखा और अपने नूरे नज़र का नाम हैदर रखा। इस नाम का जिक्र मरहब के मुक़ाबले में अली बिन अबी तालिब (अ. स.) ने ख़ुद भी फ़रमाया है।
अना अल लज़ी सम्मतनी अम्मी हैदर ।
ज़रग़ाम, आजाम वल यस क़सूरा । ।
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साकिए कौसर और संगे ख़ारा
रवायत में है कि हज़रत अमीरल मोमेनीन (अ. स.) जंगे सिफ़्फ़ीन से वापस जाते हुए एक सहराए लक़ो दक़ से गुज़रे, शिद्दते गरमा की वजह से आपका लशकर बे
इन्तेहा प्यासा हो गया उसने हज़रत से पानी की ख्वाहिश की। आपने सहरा में इधर उधर नज़र दौड़ाई, एक बहुत बड़ा पत्थर नज़र आया, उसके क़रीब तशरीफ़ ले गये और पत्थर से कहा कि मैं तुझसे सुनना चाहता हूँ कि इस सहरा में पानी कहां है उसने ब क़ुदरते ख़ुदा जवाब दिया कि चशमाए आब मेरे ही नीचे है। हज़रत ने लशकर को हुक्म दिया कि इस पत्थर को हटाएं लेकिन सौ (100) आदमी कामयाब न हो सके। फिर आपने लबे मुबारक को हरकत दी और दस्ते ख़ैबर कुशा उस पर मारा, पत्थर दूर जा गिरा। उसके हटते ही शहद से ज़्यादा शीरीं और बर्फ़ से ज़्यादा सर्द पानी का चश्मा बरामद हो गया । सब सेराब हुए और सब ने पानी से छाबने भर लीं। फिर आपने पत्थर को हुक्म दिया कि अपनी जगह पर आ ज बरवायत इब्ने अब्बास पत्थर उस जगह से खुद ब खुद सरक कर अपनी जगह पर आ पहुँचा और लश्कर शुकरे ख़ुदा करता हुआ रवाना हो गया।
मौला अली (अ.स.) और इन्सान की शक्ल बदल देना
असबग़ बिन नबाता का बयान है कि एक शख़्स कुरैश से हज़रत अली (अ.स.) की खिदमत में हाज़िर हो कर कहने लगा कि मैं वह हूँ कि जिसने बे शुमार इन्सानों को क़त्ल किया है और बहुत से अत्फ़ाल को यतीम किया है। हज़रत ने उसका जब यह ताअरूफ़ सुना तो आपको गुस्सा आ गया। आपने फ़रमाया कि अख़साया कल्ब ऐ कुत्ते ! मेरे पास से दूर हो जा, हज़रत के दहने अक़दस से इन
अल्फ़ाज़ का निकलना था कि उसकी माहियत और उसकी हय्यत बदल गई। और वह कुत्ते की शक्ल में हो कर दुम हिलाने लगा लेकिन साथ ही साथ बेताब हो कर फ़रयादो फ़ुग़ा करते हुए ज़मीन पर लोटने लगा। हज़रत को उस पर रहम आया और आपने दुआ की ख़ुदा ने फिर उसे उसकी शक्ल में बदल दिया ।
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ऐन उल्लाह, अली (अ.स.) ने कोरे मादर ज़ाद को चशमे बीना दे दी
अब्दुल्लाह बिन यूनुस का बयान है कि मैं एक साल हज्जे बैतुल्लाह के लिये घर से रवाना हो कर जा रहा था। नागाह रास्ते में एक नाबीना ज़ने हबशिया को देखा कि वह हाथों का उठाए हुए इस तरह दुआ कर रही है। ऐ अल्लाह ब हक़्क़े अली बिन अबी तालिब (अ.स.) मुझे चश्में बीना दे दे। यह देख कर मैं उसके क़रीब गया और उस्से पूछा कि क्या तू वाक़ेइ अली बिन अबी तालिब (अ.स.) से मोहब्बत रखती है? उसने कहा बे शक मैं उन पर सद हज़ार जान से क़ुरबान हूँ। यह सुन कर मैंने उसे बहुत से दिरहम दिये मगर उसने क़ुबूल न किया और कहा कि मैं दिरहम व दिनार नहीं मांगती । मैं आंख चाहती हूँ फिर मैं उसके पास से रवाना हो कर मक्के मोअज़्ज़मा पहुँचा और हज से फ़राग़त के बाद फिर उसी रास्ते से वापस आया। जब उस मक़ाम पर पहुँचा जिस मक़ाम पर वह नाबीना औरत थी तो देखा कि वह औरत चशमे बीना की मालिक है और सब कुछ देखती है। मैंने उस से पूछा कि तेरा माजरा क्या है? उसने कहा कि मैं बदस्तूर दुआ किया करती थी,
एक दिन हसबे मामूल मशग़ले दुआ थी नागाह एक मुक़द्दस तरीन शख़्स नमूदार हुए और उन्होंने मुझ से पूछा कि क्या तू वाक़ेइ अली को दोस्त रखती है? मैंने कहा जी हाँ, ऐसा ही है। यह सुन कर उन्होंने कहा कि खुदाया अगर यह औरत दावाए मोहब्बत में सच्ची है तो उसे बीनाई अता फ़रमा । उनके इन अल्फ़ाज़ के ज़बान पर जारी होते ही मेरी आंखें खुल गईं, चशमे बीना मिल गई। मैं सब कुछ देखने लगी। मैंने उसके फ़ौरन बाद क़दमों पर गिर कर पूछा, हुज़ूर आप कौन हैं? फ़रमाया, मैं वही हूँ जिसके वास्ते से तू दुआ कर रही थी ।