चौदह सितारे पार्ट 45

मोखीने इस्लाम के अलावा मोअर्रेख़ीने फिरहंग (अंग्रेज़ इतिहासकारों) ने भी हज़रत अली (अ.स.) इस्तेहक़ाक़े खिलाफ़त और नुमायां तौर पर ख़लीफ़ा मुक़र्रर किये जाने पर मुकम्मल रौशनी डाली है।

हम इस मौक़े पर मिस्टर डीवन पौर्ट की तहरीर का तरजुमा पेश करते हैं। इन दोनों फिरक़ों  में से एक ने मौहम्मद के चचा जाद भाई और दामाद अली से जैसा कि मुक़तजाए इन्साफ़ व हमियत है तो ला रखा है क्योंकि आहज़रत ऐलानिया तौर पर उनसे मोहब्बत व उल्फ़त रखते थे और कई बाद उनको अपना ख़लीफ़ा भी ज़ाहिर किया था। ख़ुसूसन दो मौकों पर एक जब आहज़रत स. ने अपने घर में बनी हाशिम की दावत की थी और अली (अ.स.) ने कुफ़्फ़ार के मज़ाक उड़ाने और तौहीन करने के बावजूद अपना ईमान जाहिर किया था। हज़रत ने अपनी बाहें उस जवान के गले में डाल कर छाती से लगाया और बाआवाज़े बलन्द कहा, देखो मेरे भाई, मेरे वसी और मेरे ख़लीफ़ा को ।

दूसरे जब आं हज़रत ने अपने इन्तेक़ाल से कुछ महीने पहले ख़ुतबा पढ़ा था। बा हुक्मे ख़ुदा जिसको जिब्राईल आं हज़रत के पास लाये थे और यूं कहा था कि ऐ पैग़म्बर मैं ख़ुदा की तरफ़ से आप पर सलवात व रहमत लाया हूँ और इसका हुक्म आपके पैरों के नाम जिनको आप बग़ैर ताख़ीर के सुना दीजिये और शरीरों से कोई ख़ौफ़ न कीजिये। ख़ुदा आपको उनके शर से बचाएगा। ख़ुदा के हुक्म के मुताबिक़ आहज़रत ने अनस से कहा कि लोगों को जमा करें जिसमें आहज़रत के पैरव व यहूदी व नसरानी व मुख़्तलिफ़ बाशिन्दे भी हाजिर हों। यह जीमयत एक गांव के पास जमा हुई जिसे ग़दीरे ख़ुम कहते हैं जो नवाह शहर हजफ़ा में मक्के और मदीने के बीच में है। पहले इस मक़ाम को साफ़ किया गया और 2 अप्रैल 626 ई0 को आंहज़रत एक ऊंचे मिम्बर पर गये जो वहां उनके लिये तय्यार किया गया था और जब कि हाज़ेरीन निहायत तवज्जोह से सुनते थे। एक ख़ुतबा हज़रत ने बड़ी शानो शौकत और फ़साहत व बलाग़त से पढ़ा, जिसका खुलासा यह है :-

तमाम हम्दो सना उस खुदाए यकता के लिये हैं जिसके कोई देख नहीं सकता। उसका इल्म माज़ी, हाल और मुस्तक़बिल को शामिल है और उसको इन्सानों के कुल पोशीदा इसरार मालूम हैं क्यों कि उस से कोई चीज़ पोशीदा नहीं रह सकती । वह बेइन्तेहां बईद और बिल्कुल क़रीब है। वही वह है जिसने आसमानों ज़मीन और उसके दरमियान की तमाम चीज़ों को ख़ल्क़ किया। वह ग़ैर फ़ानी है और जो कुछ है सब उसकी क़ुदरत और उसके इख्तियार के ताबे है। उसकी रहमत और उसका फ़ज़ल सबके शामिले हाल है। वह जो करता है मसलेहत से करता है। वह नुज़ूले अज़ाब में टाल मटोल करता है। उसका सज़ा देना रहमत से खाली नहीं है। उसकी ज़ात का भेद मुमकिनात को मालूम नहीं हो सकता । आफ़ताब (सूरज) व महताब (चाँद) और बाक़ी अजरामे समावी (नक्षत्र) उसी के इल्म से अपनी राह पर जो उसी ने मुक़र्रर कर दी है चलते हैं। बाद हम्दे ख़ुदा वाज़े हो के मैं ख़ुदा का सिर्फ़ एकबन्दा हूं। मुझे ख़ुदा का हुक्म हुआ है और मैं उसकी तामील में सरे नियाज़ बा कमाले अदब व ख़ुज़ू झुकाता हूँ। सुनो तीन बार जिब्राईल मेरे पास आ चुके हैं और तीनों दफ़ा उन्होंने मुझे हुक्म दिया है कि मैं अपने तमाम पैरवों से ख़्वाह वह गोरे हों या काले यह ज़ाहिर कर दूँ कि अली (अ.स.) मेरे खलीफ़ा और मेरे वसी और तमाम उम्मत के इमाम हैं और मेरे गोश्त व पोस्त हैं और मेरे ऐसे हैं जैसे मूसा के हारून थे और मेरी वफ़ात के बाद वही तुम्हारी हिदायत करेंगे और हादी होंगे। जब मैं इस दुनिया से रेहलत कर जाऊं तो मेरे पैरवों को उनकी फ़रमा बरदारी ऐसी करनी चाहिये जैसे इताअत मेरी करते थे जब कि मैं तुम में मौजूद था।

सुनो ! जिसने अली (अ.स.) की नाफ़रमानी की उसने दर हक़ीक़त ख़ुदा और रसूल स. की नाफ़रमानी की, ऐ दोस्तों, यह ख़ुदा के अहकाम हैं। सब वहीयां (जिब्राईल के ज़रिये ख़ुदा के भेजे हुए सारे पैग़ामात) जो वक़्तन फ़ावक़्तन मुझ पर आई हैं अली (अ.स.) ने मुझ से सीख ली हैं। जो अली (अ.स.) का हुक्म न मानेगा उसके सर पर अल्लाह की दाएमी लानत ज़रूर रहेगी।

ख़ुदा ने क़ुरआन की हर सूरत में अली (अ.स.) की तारीफ़ की है मैं दोबारा कहता हूँ कि अली मेरे चचा ज़ाद भाई और मेरे गोश्त और ख़ून हैं और ख़ुदा ने उनको निहायत नादिर ख़ूबियां अता की हैं। अली (अ.स.) के बाद उनके बेटे हसन (अ. स.) और हुसैन (अ.स.) उनके जांनशीन होंगे। इस ख़ुतबे के तमाम होने पर अबू बक्र, उमर, उस्मान, अबू सुफियान और दूसरे लोगों ने अली (अ.स.) के हाथ चूमेऔर उनको रसूल स. के ख़लीफ़ा मुक़र्रर होने की मुबारक बाद दी और इक़रार किया कि उनके कुल अहकाम को सच्चे तौर पर बजा लाऐंगे।


आरएबिल मिस्टर टायलर ने अपनी किताब में लिखा है कि मौहम्मद      ﷺ ने ख़ुद अपने दामाद अली (अ.स.) को अपना ख़लीफ़ा और जांनशीन कर दिया था लेकिन आपके ससुर अबु बकर ने लोगों को अपनी  साथ में ले कर खिलाफ़त  हासिल कर ली। (मुलाहेज़ा हो एलीमेंट्स आफ़ जनरल हिस्टी” पृष्ठ 249, 1851 ई0 में छपा)

इन्साइक्लोपीडिया बरटानिका में है कि, रसूल स. के बाद इस्लाम की सरदारी का दावा अली (अ.स.) को ज़्यादा मुनासिब मालूम होता था। मिस्टर टरयो ने लिखा हैकि अगर क़राबत (नज़दीकी) की वजह से तख़्त नशीनी का उसूल अली (अ.स.) के मोअल्लिफ़ माना जाता तो वह बरबाद कुन झगड़े पैदा न होते जिन्होंने इस्लाम को मुसलमानों के ख़ून में डूबो दिया । (स्प्रिट आफ़ इस्लाम मिस्टर सडीवाज़ तारीख़े इस्लाम जिल्द 3 पृष्ठ 201)

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