
॥ वसीला ॥
(फ़ना से पाक नफ्स ए ख़ुदा मुहम्मद मुस्तफ़ा से तवस्सुल और क़ुरआन का फ़रमान)
ऐ #ईमान वालों अल्लाह का #तक़्वा इख़्तियार करो और उस की तरफ़ वसीला तलाश करो…
(सूरह माइदा आयत 35)
और काफिरीन में से कुछ बदबख़्त कहते हैं कि ज़िन्दों का वसीला लगाओ और मोमिनों के साहब #मुहम्मद मुस्तफ़ा का वसीला ना लगाओ कि वो अब ज़िन्दा/मौजूद नहीं हैं!
हालांकि यह वही बदबख़्त हैं जो अबतक वसीले के ही मुन्किर थे अगरचे क़ुरआन में अल्लाह का वाज़ेह फ़रमान पढ़ते थे!
लाअनत हो ऐसे बदबख़्तों पर!
क्या इन्होंने क़ुरआन में आयत ए #मीसाक़ (सूरह आले इमरान आयत 81) नहीं पढ़ी जिसमें अल्लाह ने तमाम अंबिया से भारी #अहद लिया कि जब तुम्हें किताब ओ हिकमत अता कर दूं फिर तुम में मेरा यह रसूल (मुह़म्मद) तशरीफ लाये तो ज़रूर इस पर ईमान लाओगे और ज़रूर इनकी नुसरत करोगे!
फिर उसके बाद #अल्लाह ने बनी इसराईल से ताकीदी अहद लिया कि मैं तुम्हारे साथ हूं, अगर तुम सलात क़ायम किये रहे और ज़कात अदा करते रहे और हमारे रसूलों पर ईमान लाते रहे और उनकी मदद करते रहे तो मैं तुमसे ज़रूर तुम्हारे गुनाह तुमसे दूर कर दूंगा और तुम्हें #जन्नत में दाख़िल करूंगा….. (सूरह माइदा आयत – 12)
और क्या वसीला ए नबवी के मुन्किर इन बदबख़्तों ने सूरह अअ़राफ़ की आयत 134 नहीं पढ़ी कि किस तरह अल्लाह अपने इसी नबी (मुह़म्मद) के वसीले से क़ौम ए #फिरौन पर आने वाले अज़ाब दूर करता था, जब वो मूसा से इल्तेजा करते थे कि ऐ #मूसा अपने रब से उस अहद के वसीले से दुआ कीजिये जो आपके पास है कि वो हमसे इस अज़ाब को दूर कर दे तो हम ज़रूर आप पर ईमान ले आयेंगे!
तो जब-जब उन्होंने अल्लाह के उस अहद ए मुस्तफ़ा के वसीले से दुआ की तो अल्लाह ने उनसे #अज़ाब दूर फरमाया, बावजूद इसके कि अगर एक बार अल्लाह का हुक्म ए अज़ाब सादिर हो जाये तो फिर टला नहीं करता।
और क्या इन बदबख़्त अंधे नजदियों ने #क़ुरआन में सूरह
बक़रह की आयत 89 नहीं पढ़ी?
जिसमें अल्लाह ने बताया है कि किस तरह अहले किताब अल्लाह के इस नबी (मुह़म्मद) के आने से पहले इनके वसीले से काफिरों पर फतहयाबी मांगते थे!
दर-असल !
यह बदबख़्त आले #इब्लीस हैं जो मुसलमानों में फितना फैलाने के लिये अल्लाह के हबीब को मुर्दा और ग़ैर मौजूद बताते हैं, और उनकी ग़ैर मौजूदगी में उनके वसीले का इंकार करते हैं!
तो फिर यह अक़्ल के अंधे बतायें कि जिस वक़्त अल्लाह ने अंबिया से अपने हबीब के बाबत अहद लिया उस वक़्त यह #नबी और दीगर अंबिया ज़िंदा थे या मुर्दा?
और जिस वक़्त क़ौम ए फिरौन इस आखरी नबी और इनके बाबत मूसा ओ बनी #इसराईल से लिये गये अहद के वसीले से अज़ाब को दूर कराते थे और बनी इसराईल फतहयाबी पाते थे तो क्या उस वक़्त यह नबी उनके दरमियान भी इसी तरह ज़िन्दा ओ मौजूद थे?
इन्हें क्या हो गया है जो कहते हैं #आदम ने हमारे नबी के वसीले से तौबा नहीं की?
क्या मूसा ने मुहम्मद मुस्तफ़ा के वसीले से दुआ नहीं की?
और अगर तुम्हारा यह गुमान है कि वसीला सिर्फ़ चलते-फिरते ज़िन्दा शख़्स का लिया जायेगा इसके सिवा दूसरों का वसीला शिर्क है तो बनी इसराईल जिस ताबूत ए #सकीना के वसीले से जंग में फतह मांग-मांग कर मुल्के सुलेमान तक पहुंच गये तो क्या वो ताबूत चलता-फिरता इंसान था?
और जिस क़मीज़ के वसीले से #याक़ूब की आंखों को बीनाई मिली को क़मीज़ उस वक़्त चलता-फिरता #इब्राहीम थी या क़ब्र वाले इब्राहीम का तरका?
और तुम्हारा यह गुस्ताख़ाना ख़याल कि यह नबी मुहम्मद भी दूसरों की तरह मुर्दा हैं भी तुम्हारी तरह ही #बातिल ओ मरदूद है!
इसलिये कि अल्लाह का वाज़ेह फरमान है “जो कोई आमाल ए #सालेह करे मर्द हो या औरत और मोमिन भी हो तो हम उसे ज़रूर पाकीज़ा ज़िन्दगी के साथ ज़िन्दा रखेंगे!
(सूरह नहल आयत 97)
और सूरह फ़ुरक़ान आयत 30 के मुताबिक़ जो यह नबी बरोज़ ए #हश्र अल्लाह से शिकायत करेंगे कि मेरी इस क़ौम ने क़ुरआन को बिल्कुल छोड़ रखा था तो यह बात उन्हें कैसे मालूम होगी अगर वो ज़िन्दा ना हों?
और सूरह निसा की आयत 41 के मुताबिक़ हर #उम्मत से एक गवाह लाया जायेगा और उन सब गवाहों पर हुज़ूर नबी करीम को बतौर गवाह लाया जायेगा, तो यह कैसे मुमकिन है कि अगर यह नबी ज़मान ओ मकान ओ फ़ना की क़ैद से पाक ना हो तो अगली-पिछली उम्मतों के गवाहों की तसदीक़ करे?
और अल्लाह और मलायका जिस नबी पर दुरूद ओ सलाम भेजते हैं वो भी अगर सलामत न रहे तो फिर यह तो अल्लाह की क़ुदरत पर सवाल खड़ा हो जायेगा #नज्दी ख़बीसों!
नादानिश्ता तौर पर क़ुरआन को भी झुठला रहे हो लईनों!
ऐ बदबख़्तों!
क्या अल्लाह के उस #नफ्स को मुर्दा क़रार देते हो जिससे वो तुम्हें डराता है?
यह तो बड़ी अजीब बात होगी कि जिसके आने से पहले दूसरी उम्मतें उसके वसीले से दुआ करे तो अल्लाह ऐसी दुआएं भी क़ुबूल करता है जो बसूरते दीगर मुमकिन नहीं लेकिन जब वो ज़ात ए #मुक़द्दस तशरीफ ले आये तो उसके बाद उसका वसीला उसी की उम्मत के लिये शिर्क ठहरे!
पस अगर तुम सच्चे हो तो क़ुरआन से #दलील लाओ कि सिर्फ़ चलते-फिरते ज़िन्दा का ही वसीला जायज़ है बाकी़ का वसीला शिर्क!
क़ुरआन ओ #अहलेबैत से दूर रहने वालों का यही अंजाम होता है कि उन्हें अंधे #सहाबी का अमल तो काबिले पैरवी नज़र आता है लेकिन वारिस ए दीन आले रसूल के आमाल के बारे में इन्हें जानना भी रिफ्ज़ लगता है फिर यह लोग अल्लाह और उसके रसूल के हुक्म की तामील में उनकी इताअ़त क्योंकर करें!
हालांकि #पंजतन पाक के वसीले के लिये इतना ही काफ़ी था कि इनकी कोई दुआ या नमाज़ क़ुबूल होना तो बहुत दूर की बात है जब तक उसके साथ #दुरूद शरीफ ना हो वो दुआ या नमाज़ आसमान में परवाज़ भी नहीं करती!
अल्लाह की लाअनत हो काज़िबीन पर!
अल्लाह की लाअनत हो इब्लीस और आले इब्लीस पर!
अल्लाह की लाअनत हो उन बदबख़्तों पर जो ज़ात ए मुक़द्दस ओ मुबारक मुहम्मद मुस्तफ़ा को मुर्दा समझें!
اللھم صل وسلم و بارک علٰی سیدنا محمد و علٰی آل سیدنا محمد
✍️ सैय्यद मुहम्मद अल्वी अल-हुसैनी

