
1️⃣ “शिया” (شيعة) लफ़्ज़ का मतलब क्या है,
2️⃣ क़ुरआन में यह लफ़्ज़ कहाँ-कहाँ आया है,
3️⃣ रसूलुल्लाह ﷺ ने “शिया” का लफ़्ज़ कब और किस लिए इस्तेमाल किया।
आइए इसे एक-एक करके तफ़सील से समझते हैं 👇
🕋 1. “शिया” लफ़्ज़ का असली मतलब (معنی)
अरबी लफ़्ज़ شيعة (शियअ) का मतलब है —
> “किसी के मानने वाले, साथ देने वाले, मददगार या गिरोह।”
लुग़वी (भाषाई) तौर पर “शिया” का अर्थ है “ताबेईन या समर्थक।”
जैसे — किसी पैग़म्बर, हक़ या नेक इंसान के साथ चलने वाले लोग।
📖 2. क़ुरआन मजीद में ‘शिया’ लफ़्ज़ कहाँ आया है
“شيعة” या “شِيعَة” लफ़्ज़ क़ुरआन में चार जगह आया है।
आइए हर जगह अरबी आयत, उसका तरजुमा और संदर्भ देखें 👇
(1) सूरह अल-अनआम — 6:65
> قُلْ هُوَ الْقَادِرُ عَلَىٰ أَنْ يَبْعَثَ عَلَيْكُمْ عَذَابًا مِّن فَوْقِكُمْ أَوْ مِن تَحْتِ أَرْجُلِكُمْ أَوْ يَلْبِسَكُمْ شِيَعًا وَيُذِيقَ بَعْضَكُم بَأْسَ بَعْضٍ
अनुवाद: कह दो (ऐ नबी), वही (अल्लाह) क़ादिर है कि तुम पर ऊपर से या नीचे से अज़ाब भेज दे, या तुम्हें गुटों (शियअ) में बाँट दे, और तुम्हें एक-दूसरे की ताक़त का मज़ा चखा दे।
📘 यहाँ “شِيَعًا” का मतलब है — फिरक़े या गुट, यानी अलग-अलग सोच वाले लोग।
(2) सूरह अल-क़सस — 28:15
> فَوَجَدَ فِيهَا رَجُلَيْنِ يَقْتَتِلَانِ هَٰذَا مِن شِيعَتِهِ وَهَٰذَا مِنْ عَدُوِّهِ
अनुवाद: वहाँ (शहर में) उसने दो आदमियों को लड़ते पाया — एक उसकी शियअ (यानि उसके गिरोह या मानने वालों) में से था, और दूसरा उसके दुश्मनों में से।
📖 यह हज़रत मूसा (अ.स.) के बारे में है।
यहाँ “شِيعَتِهِ” का मतलब — “मूसा अ.स. के मानने वाला”।
(3) सूरह अस-साफ़्फ़ात — 37:83
> وَإِنَّ مِن شِيعَتِهِ لَإِبْرَاهِيمَ
अनुवाद: और बेशक इब्राहीम (अ.स.) भी उन्हीं (नबियों) के शियअ में से थे।
📘 यानी, इब्राहीम अ.स. भी नूह अ.स. के रास्ते पर चलने वालों में से थे।
यहाँ “शिया” का मतलब है — “एक ही रास्ते, एक ही हक़ के मानने वाले।”
(4) सूरह मरयम — 19:69
> ثُمَّ لَنَنزِعَنَّ مِن كُلِّ شِيعَةٍ أَيُّهُمْ أَشَدُّ عَلَى الرَّحْمَـٰنِ عِتِيًّا
अनुवाद: फिर हम हर शियअ (गुट या जमाअत) में से उन लोगों को निकालेंगे जो रहमान के मुक़ाबले में सबसे ज़्यादा सरकश होंगे।
📘 यहाँ भी “शियअ” का मतलब है — गुट या जमाअत, यानी लोगों के अलग-अलग गिरोह।
📜 नतीजा (क़ुरआनी इस्तेमाल):
क़ुरआन में “शिया” शब्द तारीफ़ या बुराई दोनों मायनों में आया है —
इसका मतलब “किसी का ताबे या गिरोह” है।
यह शब्द खुद एक लुग़वी (भाषाई) शब्द है, न कोई फिरक़ा।
🌹 3. रसूलुल्लाह ﷺ ने “शिया” लफ़्ज़ का इस्तेमाल कैसे किया
हदीस की किताबों में (सुन्नी और शिया दोनों रिवायतों में) “शिया अली” का ज़िक्र मौजूद है।
रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया:
> يا علي، أنت وشيعتك هم الفائزون يوم القيامة
(“या अली, أنت وشيعتك هم الفائزون يوم القيامة”)
अर्थ: “ऐ अली! तू और तेरे शिया (यानि तेरे मानने वाले) क़यामत के दिन कामयाब होंगे।”
— 📚 (तफ़्सीरुद-दुर्रुल मन्सूर, इब्न अब्बास से रिवायत)
इसी तरह एक और रिवायत में आया है:
> يا علي، أنت وشيعتك في الجنة
(“ऐ अली! तू और तेरे शिया (मानने वाले) जन्नत में होंगे।”)
— 📚 (तफ़्सीर फ़ख़्रुद्दीन राज़ी, सूरह बय्यिनह की तफ़्सीर में)
📌 इन रिवायतों में “शिया” का मतलब “अली अ.स. के सच्चे मानने वाले” है —
यानी वो लोग जो रसूलुल्लाह ﷺ के बाद भी अली अ.स. की वालायत, इल्म और हक़ को मानते हैं।
🌙 सारांश (खुलासा):
पहलू विवरण
लफ़्ज़ “शिया” का मतलब किसी के साथ देने वाले या ताबे (followers)
क़ुरआन में उल्लेख 4 बार (सूरह 6:65, 19:69, 28:15, 37:83)
नबी ﷺ का इस्तेमाल “शिया अली” यानी “अली और उनके मानने वाले” के लिए
मतलब अली अ.स. के मानने वाले, जो हक़ और इंसाफ़ के रास्ते पर हैं
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अरबी मतन, हिंदी तर्जुमा और संदर्भ, जिसमें
नबी-ए-अकरम ﷺ ने हज़रत अली (अ.स.) से “ऐ अली, तुम और तुम्हारे शिया कामयाब होगे” फरमाया था।
📖 सूरह अल-बय्यिनह (98:7–8)
القرآن الكريم (अरबी मतन):
> إِنَّ الَّذِينَ آمَنُوا وَعَمِلُوا الصَّالِحَاتِ أُولَٰئِكَ هُمْ خَيْرُ الْبَرِيَّةِ (7)
جَزَاؤُهُمْ عِندَ رَبِّهِمْ جَنَّاتُ عَدْنٍ تَجْرِي مِن تَحْتِهَا الْأَنْهَارُ خَالِدِينَ فِيهَا أَبَدًا ۖ رَّضِيَ اللَّهُ عَنْهُمْ وَرَضُوا عَنْهُ ۚ ذَٰلِكَ لِمَنْ خَشِيَ رَبَّهُ (8)
तर्जुमा
> “जो लोग ईमान लाए और नेक अमल किए —
वही हैं जो सारी मख़लूक़ में सबसे बेहतर हैं।
उनके लिए उनके रब के पास सदा रहने वाले बाग़ हैं,
जिनके नीचे नहरें बहती हैं;
वे उनमें हमेशा रहेंगे।
अल्लाह उनसे राज़ी हुआ और वे अल्लाह से राज़ी हुए —
यह इनाम है उन लोगों के लिए जो अपने रब से डरते हैं।”
🌹 हदीस का संदर्भ (नबी ﷺ का बयान)
जब यह आयत उतरी, तो हज़रत अली (अ.स.) मस्जिद-ए-नबवी में मौजूद थे।
इब्न अब्बास (रज़ि.) बयान करते हैं:
> لما نزلت هذه الآية “إِنَّ الَّذِينَ آمَنُوا وَعَمِلُوا الصَّالِحَاتِ أُولَٰئِكَ هُمْ خَيْرُ الْبَرِيَّةِ”
قال رسول الله ﷺ لعليٍّ:
“هو أنت وشيعتك، يوم القيامة راضين مرضيين.”
> जब यह आयत “जो ईमान लाए और नेक अमल किए — वही सबसे बेहतर मख़लूक़ हैं” नाज़िल हुई,
तो रसूलुल्लाह ﷺ ने हज़रत अली (अ.स.) से फ़रमाया:
“ऐ अली! इसका मतलब तुम और तुम्हारे शिया हैं —
क़यामत के दिन तुम रज़ामंद और रज़ामंदी वाले होगे।”
📘 हवाला:
तफ़्सीरुद-दुर्रुल मन्सूर (जलालुद्दीन सुयूती),
तफ़्सीर फ़ख़्रुद्दीन राज़ी (अल-तफ़्सीर अल-कबीर),
तफ़्सीर अल-शवक़ानी (फ़त्हुल क़दीर),
शैख़ सदूक – अल-अमाली,
बिहारुल अनवार – अल्लामा मजलिसी (जिल्द 7, सफ़्हा 161)
💫 मतलब और मअनी:
“शिया” शब्द यहाँ अली अ.स. के मानने वालों, हक़ और इंसाफ़ पर चलने वालों के लिए आया है —
यानी वो लोग जो अली अ.स. की इल्म, इमान और सच्चाई की राह पर चलेंगे।
“ख़ैरुल बरीयह” (सबसे बेहतर मख़लूक़) का तात्पर्य —
ऐसे लोग जो ईमान, नेक अमल और वफ़ादारी में सबसे आगे हैं।
> जब सूरह बय्यिनह की आयत “إِنَّ الَّذِينَ آمَنُوا … خَيْرُ الْبَرِيَّةِ” नाज़िल हुई,
तब नबी-ए-अकरम ﷺ ने फ़रमाया —
“ऐ अली! यह तुम और तुम्हारे शिया हैं —
जो क़यामत के दिन कामयाब और अल्लाह के राज़ी किए हुए होंगे।”



