अर-रहीकुल मख़्तूम पार्ट 37

चांद के दो टुकड़े

इस्लामी दावत मुश्किों के साथ इसी संघर्ष के मरहले से गुज़र रही थी कि इस सृष्टि का अति शानदार और विचित्र मोजज़ा ज़ाहिर हुआ। नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के साथ मुश्किों के बहस व तकरार के जो कुछ नमूने गुज़र चुके हैं, उनमें यह बात भी मौजूद है कि उन्होंने आपकी नुबूवत पर ईमान लाने के लिए अप्राकृतिक निशानियों की मांग की थी और कुरआन के बयान के अनुसार उन्होंने पूरा ज़ोर देकर क़सम खाई थी कि अगर आपने मांगी गई निशानियां पेश कर दी तो वे ज़रूर ईमान लाएंगे, मगर इसके बाद भी उनकी यह मांग पूरी नहीं की गई और उनकी तलब की गई कोई निशानी पेश नहीं की गई। इसकी वजह यह है कि यह अल्लाह की सुन्नत रही है कि जब कोई क़ौम अपने पैग़म्बर से कोई खास निशानी तलब करे और दिखलाए जाने के बाद भी ईमान न लाए, तो उसकी क़ौम की मोहलत ख़त्म हो जाती है और उसे आम अज़ाब से हलाक कर दिया जाता है। चूंकि अल्लाह की सुन्नत तब्दील नहीं होती और उसे मालूम था कि अगर क़ुरैश को उनकी तलब की हुई कोई निशानी दिखला भी दी जाए तो वह अभी ईमान नहीं लाएंगे, जैसा कि उसका इर्शाद है-

‘अगर हम इन पर फ़रिश्ते उतार दें और मुर्दे इनसे बातें करें और हर चीज़ इनके सामने लाकर इकट्ठा कर दें, तो भी वे ईमान नहीं लाएंगे, सिवाए इस शक्ल के कि अल्लाह चाहे, मगर इनमें से अधिकतर नासमझ हैं।’

और अल्लाह को भी मालूम था कि उनको अगर कोई निशानी न भी दिखलायी जाए, लेकिन और मोहलत दे दी जाए, तो आगे चलकर यही लोग कोई निशानी देखे बिना ईमान लाएंगे, इसलिए इन्हें अल्लाह ने इनकी तलब की हुई कोई निशानी नहीं दिखाई और खुद नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को भी अधिकार दिया कि अगर आप चाहें तो इनकी तलब की हुई निशानी इन्हें दिखा दी जाए, लेकिन फिर ईमान लाने पर इन्हें सारी दुनिया से सख्त अज़ाब दिया जाए और अगर चाहें तो निशानी न दिखाई जाए और तौबा और रहमत का दरवाज़ा इनके लिए खोल दिया जाए। इस पर नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने यही आखिरी शक्ल अख्तियार फ़रमाई कि इनके लिए तौबा व रहमत का दरवाज़ा खुला रखा जाए।’

तो यह थी मुश्रिकों को उनकी तलब की हुई चीज़ न दिखाई जाने की असल

1. मुस्नद अहमद, 1/342, 34,

वजह, चूंकि मुश्किों को इस बात से कोई सरोकार न था, इसलिए उन्होंने सोचा कि निशानी तलब करना आपको खामोश और बेबस करने का बेहतरीन ज़रिया है, इस तरह आम लोगों को सन्तुष्ट भी किया जा सकता है कि आप पैग़म्बर नहीं, बल्कि बातें बनाने वाले हैं, इसलिए उन्होंने फ़ैसला किया कि चलो अगर यह नामजद निशानी नहीं दिखाते तो बिन कुछ तय किए ही कोई भी निशानी तलब की जाए। चुनांचे उन्होंने सवाल किया कि कोई भी निशानी ऐसी ही दिखा दें, जिससे हम यह जान सकें कि आप वाक़ई अल्लाह के रसूल हैं? इस पर आपने अपने पालनहार से सवाल किया कि इन्हें कोई निशानी दिखला दे। जवाब में हज़रत जिब्रील तशरीफ़ लाए और फ़रमाया कि इन्हें बतला दो, आज रात निशानी दिखलाई जाएगी’ और रात हुई तो अल्लाह ने चांद को दो टुकड़े करके दिखला दिया।

सहीह बुखारी में हज़रत अनस बिन मालिक रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि मक्का वाले ने अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से सवाल किया कि आप उन्हें कोई निशानी दिखाएं। आपने उन्हें सिखलाया कि चांद के दो टुकड़े हो गए हैं, यहां तक कि उन्होंने दोनों टुकड़ों के बीच में हिरा पहाड़ को देखा 12

हज़रत अब्दुल्लाह बिन मस्ऊद रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि चांद दो टुकड़े हुआ। उस वक़्त हम लोग अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के साथ मिना में थे। आपने फ़रमाया, गवाह रहो और चांद का एक टुकड़ा फट कर पहाड़ (यानी जबल अबू कुबैस) की ओर जा रहा। 3

चांद के दो टुकड़े होने का यह मोजज़ा बहुत साफ़ था । कुरैश ने इसे स्पष्ट रूप से बड़ी देर तक देखा और आंख मल-मल कर साफ़ करके देखा और स्तब्ध रह गए, लेकिन फिर भी ईमान नहीं लाए, बल्कि कहा तो यह कहा कि यह तो चलता हुआ जादू है और सच तो यह है कि मुहम्मद ने हमारी आंखों पर जादू कर दिया है। इस पर बहस व मुबाहसा भी किया। कहने वालों ने कहा कि अगर मुहम्मद ने तुम पर जादू कर दिया है, तो वह सारे लोगों पर तो जादू नहीं कर सकते। बाहर वालों को आने दो, देखो, क्या ख़बर लेकर आते हैं। इसके बाद ऐसा हुआ कि बाहर से जो कोई भी आया, उसने इसी घटना की पुष्टि की’,

1. अद्-दुर्रुल मंसूर, अबू नुऐम, दलाइल 6/177

2. सहीह बुखारी मय फ़हुल बारी 7/221, भाग 8/386

3. वही, वही, भाग 9, पृ० 386 4. फ़हुल बारी 7/223, अबू नुऐम, दलाइल व अबू अवाना, अद्दुर्रुल मंसूर 6/176, इब्ने जरीर, हाकिम, बैहक़ी

लेकिन ज़ालिम फिर भी ईमान नहीं लाए और अपनी डगर पर चलते रहे।

यह घटना कब घटित हुई, इब्ने हजर ने इसका वक़्त हिजरत से लगभग पांच साल पहले लिखा है।’ अर्थात सन् 08 नबवी अल्लामा मंसूरपुरी ने सन् 09 नववी लिखा है। मगर ये दोनों बयान विचारणीय हैं, क्योंकि सन् 08 और 09 नबवी में कुरैश की तरफ़ से आप और बनू हाशिम और बनू अब्दुल मुत्तलिब का पूरी तरह से बाइकाट चल रहा था, बात-चीत तक बन्द थी और मालूम है कि यह घटना इस प्रकार की परिस्थितियों में नहीं घटित हुई थी। हज़रत आइशा रज़ि० ने इस एक आयत का उल्लेख करके इस सूर: की ओर संकेत करते हुए फ़रमाया है कि वह जब उतरी तो मैं मक्का में एक खेलती हुई बच्ची थी। यानी यह उम्र का वह मरहला था, जिसमें इस प्रकार की बातें याद भी हो जाती हैं और बचपन का खेल भी जारी रहता है यानी 5-6 वर्ष की उम्र। इसलिए चांद के दो टुकड़े होने की घटना सन् 10 या 11, सही होने के ज़्यादा क़रीब है। हज़रत अब्दुल्लाह बिन मसऊद रजि० के इस बयान से कि उस वक़्त हम मिना में थे, ऐसा लगता है कि यह हज का ज़माना था, यानी चांद का साल अपने अंत पर था।

चांद के दो टुकड़े होने की यह निशानी शायद इस बात की भी प्रस्तावना रही हो कि आगे मेराज की घटना हो तो मन उसकी संभावना को स्वीकार कर सकें। वल्लाहु आलम (अल्लाह ही बेहतर जाने)

1. फ्रत्हुल बारी 6/635 2. रहमतुल लिल आलमीन 3/159 3. सहीह बुखारी, तफ़्सीर सूरः क़मर

EZRA (UZAIR) Alahissalam

EZRA (UZAIR)

The Babylonian king Nabukatnazar (Bakht Nasr) ransacked the dwellings of Bani Israel and their dead bodies lay decaying in the desert sun. Ezra (Uzair) was grieved at the total annihilation of life and wondered how could the lost glory of the cities of Bani Israel be ever revived again. A sudden slumber came upon him and he remained in that state for one hundred years.

Then God made him rise from his sleep. When he got up. he looked at his donkey. He was s surprised to see only the bones of its decaying skeleton. He wondered what had happened. to his donkey. He then noted that his food was as fresh as it was when he fell sleep. He was wondering about all this when God asked him if he knew how long he had been asleep. He said, ” for a day, or even less!” God then told him that he had slept for a hundred years. During this period. his perishables remained fresh by His permission, but his living animal had undergone the natural process of death and dissolution. Then God made his donkey also come to life in front of his eyes. Ezra acknowledged that God had total command over all things.

He then headed for the “ruins” of the dwellings he had seen before his “sleep” and saw that the cities had been totally rebuilt and life was bustling again. He was received by the king with great curiosity and when they heard his strange story, they said he must be the Son of God to have come back from amongst the dead! In the Qur’an, God has admonished Bani Israel who had this false belief,

(Uzair is known as Ezra in Torah)

References: The Qur’an: Sura Baqarah and Taubah..